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12-Apr-2025 05:38 PM
By First Bihar
Trump tariff war impact on Bihar : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कृषि उत्पादों पर 26% आयात शुल्क बढ़ाए जाने का असर बिहार के किसानों पर पड़ सकता है, जो देश में मखाना उत्पादन का लगभग 85% हिस्सा बिहार के किसानों का होता हैं। पिछले वर्ष भारत ने लगभग 600 टन मखाना (Fox nut) जो मुख्य रूप से बिहार से अमेरिका को निर्यात (export) किया जाता है|
बिहार की एक प्रमुख मखाना निर्यात कंपनी के प्रबंध निदेशक ने मीडिया को बताया कि अमेरिका में मखाना एक हेल्दी स्नैक के रूप में तेजी से लोकप्रिय हो रहा था और वहां के स्थानीय अखरोट और बादाम जैसे सूखे मेवों को टक्कर दे रहा था। उन्होंने कहा, “अब अमेरिका द्वारा मखाना पर कुल 29.5% टैक्स लगाने से इसकी लागत काफी बढ़ जाएगी। इससे अमेरिकी खरीदार भारतीय निर्यातकों पर दबाव बना रहे हैं कि वे अपने दाम 26% तक कम करें ताकि वहां ग्राहकों को वही पुरानी कीमत पर मखाना मिल सके। लेकिन यह भारतीय निर्यातकों के लिए घाटे का सौदा होगा।” सिंह ने आगे कहा कि यदि यह स्थिति बनी रही, तो भारत को यूरोप, मिडिल ईस्ट या साउथ-ईस्ट एशिया जैसे नए बाजार तलाशने होंगे। अन्यथा भारत का मखाना को 'ग्लोबल सुपरफूड' के रूप में स्थापित करने का सपना धीमा पड़ सकता है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल के बजट भाषण में बिहार में ‘मखाना बोर्ड’ गठित करने की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य मखाना के उत्पादन, प्रोसेसिंग, ब्रांडिंग और विपणन को बढ़ावा देना है। हालांकि, देश में सबसे ज्यादा मखाना बिहार में पैदा होता है, लेकिन सबसे ज्यादा निर्यात पंजाब और असम से होता है। हैरानी की बात है कि पंजाब में मखाना उगाया ही नहीं जाता, फिर भी वहां से निर्यात सबसे अधिक होता है। इसका कारण यह है कि बिहार में न तो मखाना प्रोसेसिंग की अच्छी व्यवस्था है, न ही एयर कार्गो जैसी आधारभूत सुविधाएं। इसलिए बिहार के किसान मखाना के बीज पंजाब और अन्य राज्यों को बेच देते हैं, जहां उसे प्रोसेस कर के एक्सपोर्ट किया जाता है।
President ट्रंप के इस (tariff war) टैक्स का असर बिहार के अन्य उत्पादों जैसे जर्दालू आम, मालदा आम और मुजफ्फरपुर की लीची पर भी पड़ सकता है, जो अमेरिका को निर्यात किए जाते हैं। अगर अमेरिकी बाजार में मांग घटी, तो निर्यात भी घटेगा और भारतीय निर्यातकों को या तो दाम घटाने पड़ेंगे या नए बाजार तलाशने होंगे। हालांकि, बिहार के एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस टैरिफ का बिहार पर व्यापक असर नहीं पड़ेगा।जैसा कि बिहार एक उपभोक्ता राज्य है, यहां बड़ी इंडस्ट्रीज नहीं हैं। मखाना जैसे कुछ ही उत्पाद हैं जिनपर असर हो सकता है, बाकी ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। चीन ने शुक्रवार को मुहतोड़ जबाब देते हुए अमेरिका से आने वाले उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर 125% कर दिया, जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीनी सामानों पर शुल्क बढ़ाने के जवाब में किया गया कदम है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध और गहरा गया है, एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये ट्रेड वॉर वर्ल्ड सप्लाई चेन को प्रभावित करने की कगार पर है।
आपको बता दे कि अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने के ऐलान के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता और बढ़ गई। हालांकि अमेरिकी शेयर बाज़ार हफ्ते के अंत में कुछ बढ़त के साथ बंद हुआ, लेकिन सोने की कीमतों ने रिकॉर्ड ऊंचाई छू ली,इसका सबसे बड़ा असर भारत में पड़ा ,लिहाजा सोने की कीमत बढ़ गयी और अमेरिकी 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड की यील्ड यानि (return) 2001 के बाद सबसे तेज़ साप्ताहिक बढ़त पर रही। डॉलर की गिरावट ने अमेरिका की आर्थिक स्थिरता को लेकर चिंता को और गहरा कर दिया। एक अमेरिकी उपभोक्ता सर्वेक्षण में बताया गया कि मुद्रास्फीति को लेकर लोगों की चिंता 1981 के बाद सबसे अधिक है। वहीं, कई वित्तीय संस्थानों ने मंदी की आशंका और अधिक बढ़ने की चेतावनी दी है।
हालांकि, ट्रंप ने बाज़ार में मची इस उथल-पुथल को हल्के में लिया और कहा कि डॉलर और मजबूत होगा। उन्होंने अपने 10% 'क्रॉस-द-बोर्ड' टैरिफ यानि एक ही प्रतिशत दर पर सभी आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला टैरिफ। यह एक प्रकार का टैरिफ है जो सभी उत्पादों पर समान रूप से लागू होता है, बजाय कि कुछ उत्पादों या देशों पर अलग-अलग दरों का उपयोग करने के. अधिकांश मामलों में एक 'नींव' बताया, जिससे अन्य देश अमेरिका से व्यापार समझौते करने को मजबूर हो सकें। लेकिन 9 अप्रैल को ट्रंप ने अप्रत्याशित रूप से पलटते हुए 75 से अधिक देशों को उच्च टैरिफ से 90 दिनों की राहत देने का ऐलान किया।
इस घोषणा के साथ ही वैश्विक शेयर बाजारों में तेजी देखी गई। ट्रंप ने कहा, “मैंने 90 दिनों के लिए टैरिफ पर रोक की अनुमति दी है, साथ ही इस अवधि में आपसी शुल्क में 10% की कटौती की जा रही है, जो तुरंत प्रभाव से लागू होगी।”यह फैसला ऐसे समय आया जब कुछ घंटे पहले ही अमेरिका ने 56 देशों और यूरोपीय संघ पर भारी शुल्क लागू किया था, जिससे निवेशकों के बीच घबराहट फैल गई थी और मंदी की आशंकाएं और तेज हो गई थीं।