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15-Jun-2025 09:05 AM
By First Bihar
Bihar News: बिहार के रोहतास जिले के प्रगतिशील किसान लाल बाबू सिंह ने जैविक खेती में एक मिसाल कायम की है। उन्होंने रासायनिक खादों, खासकर यूरिया, का पूरी तरह बहिष्कार कर देसी जैविक खाद 'जीवामृत' का उपयोग शुरू किया है। पिछले तीन साल से इस खाद के इस्तेमाल से उनकी फसलों की गुणवत्ता और पैदावार में जबरदस्त इजाफा हुआ है, साथ ही मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ी है। उनके इस प्रयोग की सराहना सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं ने की है और उन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं। यह देसी ट्रिक अब बिहार के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन रही है।
लाल बाबू सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्र, रोहतास से जीवामृत बनाने की ट्रेनिंग ली है। जीवामृत एक प्राकृतिक खाद है, जो मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों को बढ़ाता है। इसे बनाने के लिए 200 लीटर पानी में 10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र, 20 किलो ताजा गोबर, 2 किलो गुड़, 2 किलो चने का बेसन और 1 किलो ऐसी मिट्टी मिलाई जाती है, जहां रासायनिक खाद कभी न डाली गई हो। इस मिश्रण को 7 दिन तक सुबह-शाम लकड़ी से हिलाया जाता है। 200 लीटर जीवामृत एक एकड़ खेत के लिए काफी है, जिसे छिड़काव या सिंचाई के पानी के साथ डाला जाता है। यह मिट्टी को उर्वर बनाता है और रासायनिक खाद की जरूरत खत्म कर देता है।
लाल बाबू के अनुसार चार फसल चक्र तक जीवामृत के लगातार इस्तेमाल से खेत पूरी तरह जैविक हो जाता है। उनका दावा है कि जीवामृत से रासायनिक खाद जितनी पैदावार मिलती है, लेकिन मिट्टी की सेहत और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है। तीन साल में उनके खेतों की मिट्टी की बनावट सुधरी और धान, गेहूं व सब्जियों का उत्पादन संतोषजनक रहा है। बिहार सरकार की जैविक कॉरिडोर योजना के तहत रोहतास सहित 13 जिलों में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसमें किसानों को प्रति एकड़ 11,500 रुपये की सब्सिडी भी मिलती है।
किसान लाल बाबू सिंह की सफलता बिहार के किसानों के लिए एक सबक है कि देसी तरीकों से भी खेती लाभकारी हो सकती है। बता दें कि बिहार सरकार ने 2025 तक जैविक कॉरिडोर योजना को बढ़ाया है और किसानों को विदेश में जैविक खेती की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। किसानों से अपील है कि वे जीवामृत जैसे जैविक खाद अपनाएं और रासायनिक खादों से होने वाले नुकसान से बचें।