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17-May-2025 01:41 PM
By First Bihar
Bihar News: बिहार के पौराणिक और धार्मिक रूप से प्रसिद्ध शहर गया का नाम अब गयाजी होगा। नीतीश कुमार की अध्यक्षता वाली बिहार कैबिनेट ने शुक्रवार को इस ऐतिहासिक नाम परिवर्तन को मंजूरी दे दी। यह फैसला न केवल एक भूगोलिक नाम में बदलाव है, बल्कि यह सनातन परंपराओं, आस्था और पितृधर्म के सम्मान का प्रतीक भी है।
गया का नाम बदलने की मांग 1971 से की जा रही थी। इस आंदोलन की शुरुआत गयापाल समाज और पंडा समाज के धार्मिक संगठनों ने की थी। इस मांग के साथ रेल मंत्रालय को भी पत्र भेजकर गया रेलवे स्टेशन का नाम ‘गयाजी जंक्शन’ करने की मांग की गई थी। इस बदलाव को लेकर गयापाल समाज, पंडा समाज, और विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति वर्षों से प्रयासरत थे।
गया, विशेष रूप से विष्णुपद मंदिर और पिंडदान संस्कार के लिए विश्वप्रसिद्ध है। यह स्थान पितरों के मोक्ष के लिए अर्पित पिंडदान और श्राद्ध के लिए सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में गिना जाता है। सालभर देश-विदेश से हजारों तीर्थयात्री अपने पितरों की मुक्ति के लिए यहां आते हैं। विष्णुपद मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने वर्ष 1787 में कराया था। मंदिर में स्थित भगवान विष्णु का 13 इंच लंबा चरणचिह्न पत्थर पर अंकित है, जो इसकी दिव्यता का प्रमुख केंद्र है।
गया के दक्षिणी छोर पर भस्मकूट पर्वत पर स्थित है मां मंगलागौरी शक्तिपीठ, जो देश के 51 शक्तिपीठों में एक है। यहां की महिमा न केवल धार्मिक पुस्तकों में वर्णित है, बल्कि नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। मंदिर की स्थापना 1350 ई. में माधव गिरि दंडी स्वामी जी द्वारा की गई थी। आचार्य नवीनचंद्र मिश्र ‘याज्ञिक’ के अनुसार, गयाधाम का उल्लेख वाल्मीकि रामायण, शंख स्मृति, और वायुपुराण जैसे ग्रंथों में किया गया है। यहां किया गया श्राद्ध और तर्पण अक्षय पुण्य प्रदान करता है। यही कारण है कि यह तीर्थ तीर्थों का तीर्थ माना गया है।
शंभूलाल विट्ठल, गयापाल समाज व विष्णुपद मंदिर समिति के अध्यक्ष ने बताया कि देश-विदेश से आने वाले अधिकांश श्रद्धालु पहले से ही गया को ‘गयाजी’ नाम से ही पुकारते रहे हैं। स्थानीय लोग भले ही इसे "गया" कहें, लेकिन सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान ‘गयाजी’ के रूप में रही है ठीक वैसे ही जैसे लोग 'काशी' को 'काशीजी' कहते हैं।