Premanand Maharaj: गलत तरीके से कमाए गए धन का दान भगवान स्वीकार करते हैं या नहीं? प्रेमानंद महाराज ने दिया सटीक जवाब

Premanand Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि गलत तरीके से कमाए गए धन का दान पुण्य नहीं देता। शुद्ध कमाई, सच्ची भक्ति और राधा नाम जप से ही पाप नाश और पुण्य की प्राप्ति संभव है।

1st Bihar Published by: FIRST BIHAR Updated Tue, 23 Dec 2025 11:56:37 AM IST

Premanand Maharaj

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Premanand Maharaj: कलियुग में धन कमाने के तरीके काफी बदल गए हैं। आज कई लोग धोखा, ठगी, रिश्वत और अन्य अनैतिक उपायों से धन अर्जित कर लेते हैं और फिर यह सोचते हैं कि उस धन का दान कर देने से उनके पाप धुल जाएंगे और पुण्य की प्राप्ति होगी। लेकिन वृंदावन के प्रसिद्ध संत श्री हित प्रेमानंद जी महाराज अपने सत्संगों में इस धारणा को स्पष्ट रूप से गलत बताते हैं।


प्रेमानंद जी महाराज शास्त्रों का हवाला देते हुए कहते हैं कि दान की शुद्धता पूरी तरह धन की शुद्धता पर निर्भर करती है। गलत तरीके से कमाए गए धन का दान न तो भगवान स्वीकार करते हैं और न ही उससे पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसे दान से व्यक्ति का पाप कम होने के बजाय और बढ़ जाता है।


प्रेमानंद महाराज समझाते हैं कि जैसे चोरी का माल भगवान को चढ़ाने से वे प्रसन्न नहीं होते, वैसे ही गलत कमाई का दान भी व्यर्थ है। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि दान तभी पुण्यदायी होता है, जब वह ईमानदारी और मेहनत से अर्जित धन से किया जाए। गलत कमाई पाप का फल होती है। 


भले ही दान लेने वाले को उससे कुछ लाभ मिल जाए, लेकिन दान करने वाले को उसका पुण्य नहीं मिलता। महाराज जी उदाहरण देते हैं कि यदि चोरी का सोना मंदिर में चढ़ाया जाए, तो क्या भगवान उसे स्वीकार करेंगे? निश्चित रूप से नहीं। गलत धन का दान भगवान का अपमान है और कर्मबंधन को और मजबूत करता है।


प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि दान केवल धन से नहीं, बल्कि मन और श्रद्धा से भी किया जाता है। यदि धन अपवित्र है, तो दान भी अपवित्र हो जाता है। भगवद्गीता और मनुस्मृति में दान की शुद्धता के तीन आधार बताए गए हैं—दाता की शुद्धता, धन की शुद्धता और प्राप्तकर्ता की शुद्धता। यदि धन ही अशुद्ध है, तो दान से पाप नहीं धुलता। महाराज जी बताते हैं कि कलियुग में लोग मान लेते हैं कि दान से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं, लेकिन भगवान हर कर्म का सूक्ष्म हिसाब रखते हैं। सच्चा दान वही है, जो शुद्ध कमाई और सच्चे मन से किया जाए। ऐसा दान ही पुण्य देता है और जीवन में सुख लाता है।


यदि किसी व्यक्ति ने गलत तरीके से धन कमाया है, तो महाराज जी उसे पश्चाताप करने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि ऐसे धन को सही स्थान पर लौटाना चाहिए या जरूरतमंदों को दे देना चाहिए, लेकिन उससे पुण्य की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। महाराज जी के अनुसार सबसे बड़ा उपाय राधा नाम का जप है। वे कहते हैं कि सच्चे मन से किया गया राधा नाम जप पापों को जला देता है। साथ ही व्यक्ति को भविष्य में सही मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। दान अवश्य करें, लेकिन शुद्ध धन से करें।


प्रेमानंद जी महाराज का संदेश स्पष्ट है कि सच्चा दान वही है, जो मेहनत की कमाई से और बिना दिखावे के किया जाए। भक्ति और नाम जप से मन शुद्ध होता है और गलत कमाई की इच्छा स्वतः समाप्त हो जाती है। महाराज जी कहते हैं कि राधा नाम में लीन हो जाइए, धन की चिंता छोड़ दीजिए—भगवान सब आवश्यकताएं पूरी करते हैं। गलत धन का दान पुण्य नहीं देता, बल्कि कर्मबंधन को और बढ़ाता है। सच्ची भक्ति और शुद्ध कर्म से ही वास्तविक पुण्य की प्राप्ति होती है।


प्रेमानंद जी महाराज की ये शिक्षाएं हमें यह सिखाती हैं कि पाप का धन दान से शुद्ध नहीं होता। ईमानदारी, पश्चाताप और सच्ची भक्ति ही जीवन को पवित्र और पुण्यवान बनाती है। यदि कभी भूल हो जाए, तो उसका पश्चाताप करें और आगे सत्पथ पर चलें—भगवान की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।


डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारियों की पूर्ण सत्यता का हम दावा नहीं करते हैं। अधिक और विस्तृत जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ या विद्वान की सलाह अवश्य लें।