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Ganesh Chaturthi 2025: बाप्पा को क्यों कहा जाता है लालबागचा राजा? जानिए... इस नाम के पीछे की कहानी

Ganesh Chaturthi 2025: भाद्रपद में कई प्रमुख व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें गणेश चतुर्थी का पर्व विशेष महत्व रखता है।क्या आप जानते हैं कि गणपति बप्पा के इस रूप को 'लालबागचा राजा' क्यों कहा जाता है? जानें...

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 24 Aug 2025 12:01:23 PM IST

Ganesh Chaturthi 2025

गणेश चतुर्थी 2025 - फ़ोटो GOOGLE

Ganesh Chaturthi 2025: भाद्रपद माह सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस माह में कई प्रमुख व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें गणेश चतुर्थी का पर्व विशेष महत्व रखता है। यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार गणेश चतुर्थी 27 अगस्त 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह पर्व केवल एक दिन का न होकर, पूरे 10 दिनों तक चलने वाला गणेश महोत्सव होता है, जो पूरे भारत में, खासकर महाराष्ट्र में, अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है।


इस अवसर पर देश के प्रमुख शहरों में विशेष रूप से मुंबई में उत्सव का अलग ही रंग देखने को मिलता है। मुंबई में गणेश चतुर्थी के दौरान सबसे अधिक प्रसिद्ध पंडाल है, ‘लालबागचा राजा’। यह केवल एक पंडाल नहीं, बल्कि लाखों श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास का केंद्र है। यहां हर साल देशभर से करोड़ों श्रद्धालु आते हैं, क्योंकि मान्यता है कि यहां आकर जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह गणपति बप्पा अवश्य पूरी करते हैं। इसी कारण से इन्हें ‘मनोकामना पूरी करने वाले राजा’, ‘नवसाचा गणपति’ और ‘मन्नत का राजा’ भी कहा जाता है।


क्या आप जानते हैं कि गणपति बप्पा के इस रूप को 'लालबागचा राजा' क्यों कहा जाता है और इसकी शुरुआत कब हुई थी? इस ऐतिहासिक गणेशोत्सव की शुरुआत वर्ष 1934 में हुई थी। उस समय मुंबई का लालबाग क्षेत्र मुख्य रूप से मछुआरों और कपड़ा मिलों में काम करने वाले श्रमिकों की बस्ती हुआ करता था। यहां के स्थानीय निवासी लंबे समय से स्थायी बाजार की मांग कर रहे थे, लेकिन कई प्रयासों के बावजूद उनकी मांग पूरी नहीं हो सकी। इसके बाद उन्होंने अपनी आस्था और एकजुटता को केंद्र में रखते हुए गणेशोत्सव की शुरुआत की।


स्थानीय कामगारों और श्रमिक वर्ग ने मिलकर पहली बार गणपति बप्पा की मूर्ति की स्थापना की। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि सामाजिक एकता, संघर्ष और सामूहिक चेतना का प्रतीक बन गया। इसके बाद धीरे-धीरे इस पंडाल की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि यह संपूर्ण मुंबई ही नहीं, बल्कि देशभर में प्रसिद्ध हो गया।


‘लालबागचा राजा’ नाम भी इसी क्षेत्र के कारण पड़ा। 'लालबाग' उस इलाके का नाम है और 'चा राजा' का अर्थ है 'का राजा' अर्थात 'लालबाग का राजा'। इसके बाद से हर साल यहां गणपति बप्पा की मूर्ति विशेष रूप से सजाई जाती है, जो न केवल भव्यता में बल्कि आध्यात्मिकता में भी अद्वितीय होती है।


गणेशोत्सव के दौरान लालबागचा राजा के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु कई-कई घंटे लंबी कतारों में खड़े रहते हैं, कुछ तो पूरी रात भी इंतजार करते हैं। यहां दो प्रकार की दर्शन व्यवस्था होती है – एक नवसपूर्ति दर्शन, जिसमें श्रद्धालु बप्पा के चरण स्पर्श कर सकते हैं, और दूसरा मुख्य दर्शन, जिसमें दूर से दर्शन किए जाते हैं। इस पंडाल में कई नामचीन हस्तियाँ, फिल्मी सितारे, राजनेता और उद्योगपति भी दर्शन के लिए आते हैं।


यह पंडाल न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि यहां पर जुटने वाली भीड़, अनुशासन और व्यवस्थापन भी इसे एक आदर्श सार्वजनिक आयोजन का उदाहरण बनाता है। ‘लालबागचा राजा’ आज सिर्फ एक मूर्ति या पंडाल नहीं है, बल्कि यह बन चुका है जन-आस्था, संकल्प, संघर्ष और सफलता का प्रतीक। यह दर्शाता है कि जब लोग मिलकर एकजुट होते हैं और अपनी आस्था के साथ किसी कार्य की शुरुआत करते हैं, तो वह परंपरा बन जाती है। 


गणेश चतुर्थी का यह पर्व और लालबागचा राजा का स्वरूप लोगों को संघर्ष से उम्मीद और आस्था से शक्ति प्रदान करता है। इस वर्ष भी जब 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी, तब लालबाग में एक बार फिर 'मनोकामना पूरी करने वाले राजा' के जयघोष गूंजेंगे और देशभर के श्रद्धालु बप्पा से अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना करेंगे।