PATNA: बिहार में जातीय गणना के बाद गरीबों के विकास के लिए विशेष राज्य का दर्जा और केंद्र सरकार से मदद मांग रही राज्य सरकार को पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्रा ने विकास का रास्ता सुझाया है. पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा ने मुख्यमंत्री कार्यालय को कॉन्सेप्ट नोट सौंप कर ये बताया है कि जातीय गणना में गरीब पाये गये करीब 94 लाख परिवारों की गरीबी कैसे दूर की जा सकती है.
बता दें नीतीश मिश्रा ने नीदरलैंड के मास्ट्रिच स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से मैनेजमेंट की मास्टर डिग्री ले रखा है. इसके साथ साथ वे ब्रिटेन के हावर्ड यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ हल में भी राजनीति और अर्थशास्त्र की पढाई पढ़ चुके हैं.
ऐसे होगा बिहार का विकास?
नीतीश मिश्रा ने अपने अध्ययन और राजनीतिक जीवन के अनुभवों के आधार पर बिहार से गरीबी दूर करने की पूरी योजना तैयार की है. उन्होंने इसकी विस्तृत रूप रेखा बिहार के मुख्यमंत्री के कार्यालय को सौंपा है. नीतीश मिश्रा ने अपने कॉन्सेप्ट नोट में कहा है कि आज का युग आंकड़ों यानि डेटा का है. जाति आधारित गणना से प्राप्त आंकड़ें बेहद अहम हैं. सरकार अपनी नीति बनाने में इन आंकड़ो का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल करे. खास बात ये भी है कि राज्य सरकार के पास लोगों के जातिवार आंकड़ो के अतिरिक्त सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आंकड़े भी हैं. यानि सरकार को पता है कि राज्य के किस परिवार में किस चीज की कमी है. अब अगर बिहार सरकार अपने कार्यप्रणाली को ठीक कर ले तो बिहार की ज्यादातर समस्यायें दूर हो जायेंगी और बिहार विकसित राज्यों की श्रेणी में आ जायेगा.
नीतीश मिश्रा ने अपने सुझाव में कहा है कि जाति आधारित गणना में बिहार में 94.4 लाख परिवार गरीब हैं. यानि सरकार को अब ये मालूम है कि बिहार में कौन लोग गरीब है. इससे पहले 2011 में केंद्र सरकार की ओर आर्थिक सामाजिक सर्वेक्षण कराया गया था. बिहार सरकार दोनों के आंकड़ों को एकीकृत करे. इससे पता चलेगा कि कौन से ऐसे गरीब परिवार हैं, जिनका जानकारी 2011 की रिपोर्ट में नहीं मिल पायी थी. अगर सारे आंकड़े का गहराई से अध्ययन किया जाये तो पता चल जायेगा कि बिहार में ऐसे कौन परिवार हैं, जो गरीब हैं लेकिन उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. उससे उनका विकास नहीं हो रहा था. ऐसे छूटे हुए परिवार के लिए खास तौर पर योजना बना कर उन्हें गरीबी से बाहर निकाला जा सकता है.
नीतीश मिश्रा ने कहा है कि बिहार के गरीब परिवारों की स्थिति पर लगातार नजर रखने के लिए सरकार को डिजिटल निगरानी करनी पड़ेगी. राज्य औऱ केंद्र सरकार गरीबों के लिए कई योजनायें चला रही हैं. बिहार सरकार ऐसा डिजिटल प्लेटफार्म तैयार करे, जिससे ये पता चलता रहे कि किसी भी गरीब परिवार को किस योजना का कितना लाभ नहीं मिला. अगर किसी योजना से लाभ मिला तो उसका क्या असर हुआ. अगर उस परिवार को किसी योजना का लाभ नहीं मिला तो उसका कारण क्या था. इससे न सिर्फ गरीब परिवार को लाभ मिलेगा बल्कि भ्रष्टाचार से लेकर सरकारी तंत्र की लापरवाही औऱ विफलता भी पकड़ी जायेगी.
पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा ने उदाहरण देते हुए कहा है कि 2011 के सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण में जो लोग गरीब के तौर पर पहचाने गये उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिया जा रहा है. अब बिहार सरकार के पास जातीय गणना से आया आकंड़ा है. दोनों के विश्लेषण से ये पता चल जायेगा कि कितने ऐसे परिवार हैं जो वाकई गरीब हैं और उन्हें आवास योजना का लाभ नहीं मिला. ऐसे छूटे हुए परिवारों के लिए मुख्यमंत्री आवास योजना जैसा कोई स्कीम चला कर उन्हें लाभ दिया जा सकता है.
सरकार के पास पूरी जानकारी आ गयी है किस परिवार के पास किस चीज की कमी है. अगर किसी परिवार के पास रोजगार नहीं है तो उसकी खास तौर पर पहचान कर मनरेगा से लेकर दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा सकता है. अगर किसी परिवार में शिक्षा की कमी है तो उन्हें विशेष तौर पर शिक्षा के चल रही योजनाओं का लाभ दिया जाए. यानि जिस परिवार की जो जरूरत है, उसे उसी तरीके की मदद दी जाये.
बिहार सरकार को करना सिर्फ ये है कि इसके लिए एक डिजिटल प्रक्रिया शुरू करे, जिसमें गरीब परिवारों का सारा लेखा जोखा हो. हर गरीब परिवार को एक खास आईडी दिया जाये, जिससे उनके बारे में पूरी जानकारी लेने के लिए खास मशक्कत नहीं करनी पड़े. फिर उस आधार पर योजना बनायी जाये. उसके बाद सारी योजनाओं का डिजिटल तरीके से ट्रैंकिंग की जाये. सरकार अगर ऐसे प्रक्रिया अपनाये तो ज्यादातर गरीब परिवार का जीवन स्तर सही हो जायेगा. इसके बाद बिहार खुद ब खुद विकसित राज्यों की कतार में आ खड़ा होगा.