तेजस्वी कैंप के पत्रकारों ने उड़ायी लोजपा में टूट की अफवाह, बिना तथ्य समझे सियासी हलके में मची खलबली

तेजस्वी कैंप के पत्रकारों ने उड़ायी लोजपा में टूट की अफवाह, बिना तथ्य समझे सियासी हलके में मची खलबली

PATNA : बिहार में आज मीडिया के एक वर्ग ने खबर फैलायी-एनडीए में शामिल एक दल के तीन सांसद नीतीश-तेजस्वी के साथ आ रहे है. इशारा ये था कि पशुपति पारस के खेमे वाले लोजपा के तीन सांसद पाला बदल कर महागठबंधन के साथ आयेंगे. देश में जो संवैधानिक व्यवस्था है, उसमें तीन सांसदों का टूटना नामुमकिन है. लेकिन इस कोरी अफवाह ने पूरे मीडिया जगत से लेकर सियासी गलियारे में खलबली मचाये रखा. देर शाम ये क्लीयर हुआ कि तेजस्वी कैंप के कुछ पत्रकारों ने ये अफवाह फैलायी थी.


पारस के खेमे में मच गयी खलबली

शनिवार की दोपहर जब ये खबर फैलायी गयी कि पशुपति पारस के पांच सांसदों में से तीन पाला बदल कर महागठबंधन में शामिल हो रहे हैं तो पूरे सियासी जगत में चर्चा होने लगी. लेकिन सबसे ज्यादा बेचैनी पशुपति पारस के घऱ फैली. पारस ने दिल्ली में अपने आवास पर आनन फानन में अपने भतीजे और सांसद प्रिंस राज के साथ साथ सूरजभान सिंह को बुलाया. सूरजभान सिंह के छोटे भाई चंदन सांसद हैं. पारस ने अपनी सांसद वीणा सिंह से बात की. सबने बारी-बारी से बयान जारी किया कि ये कोरी अफवाह है और गलत नियत से इसे फैलाया जा रहा है. 


उधर सांसद चंदन सिंह पटना में अपने घर पर सो रहे थे. वे आनन फानन में पटना में पार्टी के प्रदेश कार्यालय पहुंचे. वहां मीडियाकर्मियों को बुलाया गया. चंदन सिंह ने कहा कि ऐसी अफवाह खास मकसद से फैलायी जा रही है. वे किसी सूरत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साथ नहीं छोडेंगे. वे चिराग पासवान से भी इसलिए अलग हुए थे कि चिराग ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था.


पांच में से तीन सांसदों का टूटना असंभव

अब हम आपको समझाते हैं कि कैसे संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक पांच में तीन सांसदों का टूटना असंभव है. दरअसल देश में दल बदल कानून लागू है. किसी पार्टी में टूट के लिए कम से कम दो-तिहाई सांसदों का टूट कर अलग होना जरूरी है. पांच सांसदों वाली पार्टी में टूट के लिए तीन से ज्यादा यानि चार सांसदों का टूटना जरूरी है. पांच में से तीन सांसद अगर पार्टी छोड़ने की कोशिश करेंगे तो तीनों की संसद की सदस्यता ही खत्म हो जायेगी. लिहाजा पांच में से तीन सांसद अलग हो रहे हैं ये अफवाह के सिवा कुछ औऱ नहीं था. 


वैसे भी पारस की पार्टी का समीकरण ऐसा है जिसमें टूट होना लगभग असभंव है. पारस खुद सांसद हैं और उनके दूसरे सांसद प्रिंस राज हैं. प्रिंस राज ने चाचा पशुपति पारस का साथ देने के लिए अपने चचेरे भाई चिराग पासवान को छोड़ दिया. कुल मिलाकर पारस की पार्टी के पांच सांसदों में से दो उनके घर में हैं. लिहाजा बाकी तीनों अगर अलग होने की सोंचे तो भी वे अपनी संसद सदस्यता गंवाने के अलावा कुछ और नहीं कर सकते. 


वहीं, पारस की पार्टी के एक औऱ सांसद चंदन सिंह औऱ उनके भाई सूरजभान एनडीए के वोट बैंक के सहारे सियासत में पैर जमा पाये हैं. चंदन सिंह नवादा से सांसद हैं और वहां उनकी चुनावी लड़ाई यादव जाति के उम्मीदवार से हुई है. चंदन सिंह की सियासत को कंट्रोल करने वाले उनके भाई सूरजभान सिंह समझते हैं कि अगर भाजपा का साथ नहीं मिला तो भूमिहार वोट जायेगा. नवादा में यादव तो किसी सूरत में वोट देने से रहे. ऐसा भी नहीं है कि चंदन सिंह की नजर में कोई ऐसी दूसरी सीट जहां वे महागठबंधन के उम्मीदवार बन सांसद बन सकें. 2014 में चंदन सिंह की भाभी औऱ सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा सिंह मुंगेर लोकसभा सीट से चुनाव जीती थीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में जब एनडीए में सीटों का बंटवारा हुआ तो बीजेपी ने मुंगेर सीट जेडीयू को देकर सूरजभान को नवादा सीट दिया जो पहले भाजपा के कब्जे में थी. मुंगेर से ही जेडीयू के ललन सिंह सांसद हैं. अगर चंदन सिंह महागठबंधन के खेमे में जायें भी तो मुंगेर सीट से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. लिहाजा उन्हें किसी सूरत में महागठबंधन रास नहीं आय़ेगा.