तेजस्वी ने RJD को ए टू जेड की पार्टी बना ही दिया: 32 साल तक लालू से लड़ने वाले भूमिहारों ने भी माथे पर उठा लिया लालटेन

तेजस्वी ने RJD को ए टू जेड की पार्टी बना ही दिया: 32 साल तक लालू से लड़ने वाले भूमिहारों ने भी माथे पर उठा लिया लालटेन

PATNA: 2020 के विधानसभा चुनाव में ही तेजस्वी ने नया नारा दिया था. उनकी पार्टी राजद सिर्फ एमवाई की पार्टी नहीं है. राजद ए टू जेड की पार्टी है. 2020 में तेजस्वी अपने दल को ए टू जेड की पार्टी बनाने में पूरी तरह सफल तो नहीं हो पाये लेकिन डेढ़ साल बाद उनका नारा सच होता दिख रहा है. शनिवार को जब बोचहां उप चुनाव का रिजल्ट आया तो मैसेज यही है-राजद ए टू जेड की पार्टी बनने की ओर बढ़ चली है। 


बोचहां की जीत ऐतिहासिक है

बोचहां के उप चुनाव में राजद की जीत के बड़े मायने हैं. ये सच है कि इस सीट के परिणाम से बिहार में सरकार नहीं बदल जायेगी. लेकिन इस उप चुनाव के रिजल्ट ने बिहार में सियासी परसेप्शन को बदल दिया है. जिस बोचहां सीट पर रमई राम जैसे दिग्गज उम्मीदवार को खड़ा करने के बावजूद राजद 2015 और 2020 दोनों चुनाव में बुरी तरह हारी, उसी सीट पर उप चुनाव में राजद ने सबसे बड़ी जीत हासिल की. बोचहां में राजद के उम्मीदवार अमर पासवान ने 36 हजार 653 वोटों से जीत हासिल की. राजद को इस क्षेत्र में साढ़े 48 प्रतिशत से भी ज्यादा वोट मिले. राजद को मिले वोट परसेंटेंज ही बताने के लिए काफी है कि उसे समाज के हर तबके का वोट मिला।


तेजस्वी की सबसे बड़ी सफलता

तेजस्वी जब अपनी पार्टी को ए टू जेड की पार्टी बताते थे तो सियासी जानकार A के बाद B पर आकर अटक जाते थे. बिहार की सियात में B का मतलब भूमिहार होता था. 1990 में लालू यादव के सत्ता में आने के बाद लालू की सियासत भूमिहार विरोध की धुरी पर ही आगे बढती रही. भूमिहारों ने ही लालू यादव के खिलाफ सबसे उग्र लडाई लड़ी. लालू विरोध की राजनीति का नतीजा ये हुआ कि भूमिहार खुद ब खुद बीजेपी और जेडीयू के वोट बैंक बन गये. इसके लिए बीजेपी-जेडीयू को कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ी. लेकिन बोचहां ने मैसेज दे दिया है कि सियासी हवा का रूख बदल गया है।


विधान परिषद चुनाव से दिया बड़ा मैसेज

2020 में मामूली अतंर से सत्ता से दूर रह जाने का मलाल झेल रहे तेजस्वी यादव को लग रहा था कि उन्हें अपनी सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए रणनीति बदलनी पड़ेगी। इसलिए उनकी निगाहें उस तबके पर गयी जिसे वह चाह कर भी अपने पाले में नहीं ला पा रहे थे. इसी बीच स्थानीय निकाय कोटे से बिहार विधान परिषद का चुनाव आया. 


तेजस्वी ने 23 सीटें लड़ीं, जिनमें से 5 पर भूमिहार प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया. बिहार की सियासत के लिए ये अजूबा वाकया था. लेकिन तेजस्वी प्रयोग करने पर आमदा थे. उन्होंने पटना, मुंगेर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण जैसे विधान परिषद सीट पर अपने परंपरागत वोट बैंक के उम्मीदवारों को खारिज कर भूमिहार उम्मीदवार खड़ा कर दिया. इसका नतीजा भी सामने आया. राजद के 5 भूमिहार उम्मीदवार में से तीन चुनाव जीत गये. एक और उम्मीदवार बबलू देव बेहद कम अंतर से चुनाव हारे। 


सियासी जानकार बताते हैं कि विधान परिषद चुनाव में तेजस्वी के इस एक कदम ने राजद और भूमिहारों के बीच फासले को काफी कम कर दिया. भूमिहारों का एक तबका भले ही अब भी लालू यादव के दौर में नरसंहारों की बात करता है. लेकिन उसी समाज का बडा तबका पुरानी बातों को भूल कर नयी शुरूआत करने की बात।


भूमिहारों ने माथे पर उठा लिया लालटेन

बोचहां उप चुनाव परिणाम ने तेजस्वी के ए टू जेड वाले नैरेटिव पर एक तरीके से मुहर लगा दिया है. इसके लिए आप बोचहां विधानसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरण को समझिये. जाति के आधार पर देखें तो बोचहां विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा वोट भूमिहारों के है. उप चुनाव परिणाम से ये स्पष्ट है कि इस तबके के वोट का बड़ा हिस्सा राजद उम्मीदवार को मिला. फर्स्ट बिहार से बात करते हुए बोचहां विधानसभा क्षेत्र के शेरपुर गांव के रोहित ने कहा-हां, हमलोगों ने माथे पर लालटेन उठा लिया है. बहुत दिन कमल और तीर उठा लिया. हम किसी के बंधुआ मजदूर बन कर नहीं रहेंगे। 


बड़ा सियासी परिवर्तन होगा

बोचहां के रिजल्ट से दिख रहा परिवर्तन बड़ा सियासी उलटफेर करा सकता है. मुजफ्फरपुर के एक पत्रकार ने कहा-आप पूरे बिहार की नहीं सिर्फ मुजफ्फरपुर जिले की ही बात कर लीजिये. मुजफ्फरपुर में लोकसभा की दो औऱ विधानसभा की 11 सीटें हैं. लोकसभा की दोनों सीटों पर एनडीए के सांसद जीते हैं. उन्हें मिले वोटों में से भूमिहारों का वोट निकाल कर राजद उम्मीदवार में जोड़ दीजिये. रिजल्ट क्या होगा इसका अंदाजा हो जायेगा. मुजफ्फरपुर जिले में साहेबगंज, पारू, औराई जैसी विधानसभा सीटों पर एनडीए के विधायक हैं. 


ये सारी सीटें ऐसी हैं जहां भूमिहारों का अच्छा खासा वोट है और वहां भाजपा के गैर भूमिहार उम्मीदवार जीते. तेजस्वी का ए टू जेड का फार्मूला अगर अगले विधानसभा चुनाव तक कायम रहा तो बीजेपी समझ रही होगी कि उसका क्या होने वाला है। कुल मिला कर कहें तो बोचहां सीट पर उपचुनाव के रिजल्ट से बिहार में सत्ता परिवर्तन तो नहीं होने वाला है लेकिन सियासी समीकरणों में बड़ा उलटफेर हो गया है. आने वाले दिनों में इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है.