राहुल गांधी जैसे कद और पद वाले नेता को सोच समझ कर बोलना चाहिये था: जानिये सूरत कोर्ट ने राहुल की सजा पर क्यों नहीं लगायी रोक

राहुल गांधी जैसे कद और पद वाले नेता को सोच समझ कर बोलना चाहिये था: जानिये सूरत कोर्ट ने राहुल की सजा पर क्यों नहीं लगायी रोक

DESK: गुजरात की सूरत डिस्ट्रीक्ट कोर्ट ने आज कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका को खारिज कर दिया। राहुल गांधी ने सूरत की सीजेएम कोर्ट से मिली दो साल की सजा के खिलाफ जिला एवं सत्र न्यायालय में याचिका दायर की थी। पिछले 23 मार्च को सूरत की सीजेएम कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनायी थी, जिसके बाद उनकी संसद सदस्यता समाप्त कर दी गयी थी। लेकिन सूरत के एडिशनल सेशन जज रॉबिन पी. मोगरा ने सजा को खत्म करने के लिए दायर की गयी राहुल गांधी की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट औऱ हाईकोर्ट द्वारा ऐसे मामलों में दिये गये फैसलों का जिक्र करते हुए राहुल गांधी पर कई टिप्पणी की है औऱ उनके वकील की जिरह को सही नहीं माना।


राहुल गांधी ने ये सब दी दलील

फर्स्ट बिहार के पास सूरत के सेशन कोर्ट का फैसला है. 27 पन्ने के इस फैसले में उन तथ्यों का भी जिक्र किया गया जो राहुल गांधी के पक्ष में जिरह करते हुए वकील आरएस चीमा ने कोर्ट के सामने रखे. राहुल गांधी की ओर से कहा गया कि सीजेएम कोर्ट में इस केस का सही तरीके से ट्रायल नहीं हुआ. राहुल गांधी ने मोदी सरनेम को लेकर जो टिप्पणी की थी उसे गलत तरीके से कोर्ट में पेश किया गया. ये टिप्पणी अपमानजनक नहीं थी. कोर्ट की सजा के बाद उन्हें संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया है और वे 8 साल तक नहीं चुनाव नहीं लड़ सकते. ये उनके लिए अपूरणीय क्षति है. 


राहुल गांधी की ओर से कोर्ट में ये भी कहा गया कि वे वायनाड संसदीय क्षेत्र से 4,31,770 वोटों के रिकॉर्ड अंतर से चुनाव जीत कर आये हैं. उनकी संसद सदस्यता खत्म हो जाने से वायनाड संसदीय क्षेत्र की जनता की पसंद और आकांक्षाओं को भी नुकसान पहुंचेगा. उनकी संसद सदस्यता खत्म होने के कारण उपचुनाव कराना होगा और कोर्ट के कई फैसलों में ये कहा जा चुका है उपचुनाव कराने से सरकारी खजाने पर बहुत बोझ पड़ता है. राहुल गांधी की ओर से मानहानि के मामले में उन्हें अधिकतम सजा सुनाने पर भी सवाल उठाये गये।


कोर्ट ने कहा-सोच समझ कर बोलना होगा

इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए एडिशनल सेशन जज ने कहा कि जहां तक राहुल गांधी को अधिकतम सजा देने का सवाल है, यह देखना सही होगा कि राहुल गांधी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं और सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए मौजूदा सांसद थे. उनके द्वारा बोले गए किसी भी शब्द का आम जनता के मन में बड़ा प्रभाव होगा. राहुल गांधी जैसे कद औऱ पद पर बैठे व्यक्ति से उच्च स्तर की नैतिकता निभाने की उम्मीद की जाती है। ट्रायल कोर्ट ने जो सजा सुनाई है, वह कानून में स्वीकार्य है. इसके अलावा, रिकॉर्ड से यह दिख रहा है कि राहुल गांधी के वकील को गवाहों से जिरह करने के लिए सभी अवसर दिए गए थे. कोर्ट ने कहा है- इसलिए मैं राहुल गांधी के वकील आरएस चीमा के तर्कों से सहमत नहीं हूं कि उन्हें सीजेएम कोर्ट में निष्पक्ष सुनवाई से वंचित किया गया।


सूरत की सेशन कोर्ट ने कहा है कि जिस समय का ये वाकया है उस समय राहुल गांधी संसद सदस्य और देश के दूसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल के अध्यक्ष थे. उनके ऐसे कद को देखते हुए उन्हें अपने शब्दों के साथ अधिक सावधान रहना चाहिए था. क्योंकि इसका लोगों के मन पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. राहुल गांधी जैसे कद औऱ पद वाले व्यक्ति के मुंह से निकला कोई भी अपमानजनक शब्द पीड़ित व्यक्ति को मानसिक पीड़ा देने के लिए पर्याप्त है।


इस मामले में, मानहानिकारक शब्दों का उच्चारण किया गया. 'मोदी' उपनाम वाले व्यक्तियों की तुलना चोरों से करने से शिकायतकर्ता को निश्चित रूप से मानसिक पीड़ा होगी और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान होगा, सामाजिक रूप से सक्रिय और सार्वजनिक व्यवहार वाले व्यक्ति को इससे पीड़ा होगी. कोर्ट ने राहुल गांधी के वकील की इस दलील पर भी टिप्पणी की कि वे संसद सदस्य हैं और उनका मामला अलग है. संसद सदस्यता रद्द होने से उन्हें अपूरणीय क्षति होगी।


सूरत की कोर्ट ने कहा कि देश में लागू  जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) में उल्लिखित अयोग्यता के मानदंडों की चर्चा की है. कोर्ट ने कहा है- माननीय गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा नारनभाई भीखाभाई कच्छड़िया के मामले में इ स संबंध में फैसला सुनाया है. इस फैसले को ध्यान में रखते हुए, मैं मानता हूं कि संसद सदस्य के रूप में निष्कासन को किसी की अपरिवर्तनीय या अपूरणीय क्षति के रूप में नहीं कहा जा सकता है।


सूरत की कोर्ट में राहुल गांधी के वकील ने दलील रखते हुए नवजोत सिंह सिद्धू को सजा मिलने के मामले का भी जिक्र किया था. कोर्ट ने कहा कि यह नोट करना होगा कि नवजोत सिंह सिद्धू मामले में घटना का उनके सार्वजनिक जीवन से कोई संबंध नहीं था. उस मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने नवजोत सिंह सिद्धू की सराहना की थी कि उन्होंने एक नैतिक मार्ग को चुना था और अपनी सीट से इस्तीफा देकर सार्वजनिक जीवन में उच्च मानक स्थापित किया था. लेकिन राहुल गांधी के मामले में  तथ्य पूरी तरह से अलग हैं और इसलिए नवजोत सिंह सिद्धू का मामला राहुल गांधी के मामले में सहायक नहीं होगा।


सूरत की कोर्ट ने कहा कि इन सारे तथ्यों के आधार मैं मानता हूं कि अपीलकर्ता राहुल गांधी के वकील ये प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं कि सजा पर रोक नहीं लगाकर और अयोग्यता के कारण उन्हें चुनाव लड़ने का अवसर नहीं दिया जा रहा है और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के अनुसार राहुल गांधी को इससे अपूरणीय नुकसान होने की संभावना है. सूरत की कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कई जजमेंट में कहा है कि किसी व्यक्ति को कोर्ट द्वारा सुनायी गयी सजा को निलंबित करने या रोकने के लिए दी गई शक्तियों का सावधानी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिये।


यदि सजा को निलंबित करने या रोकने की शक्ति का प्रयोग सही तरीके से नहीं किया गया तो इससे न्याय प्रणाली पर जनता की धारणा पर गलत प्रभाव पड़ेगा। इस तरह के आदेश से न्यायपालिका से जनता का विश्वास हिल जाएगा। सूरत की कोर्ट ने कहा है कि इसलिए  मेरा विचार है कि अपीलकर्ता राहुल गांधी अपनी सजा को निलंबित करने के लिए कोई ठोस तथ्य नहीं दे पाये। इन सारे तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए सूरत की सेशन कोर्ट ने राहुल गांधी को सीजेएम कोर्ट से मिली सजा के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है।