PATNA : बोचहां विधानसभा उपचुनाव का परिणाम आने के बाद एक तरफ जहां कांग्रेस का कलह सतह पर आ गया है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के अंदर नए प्रदेश नेतृत्व को लेकर कई नामों की चर्चा हो रही है। कांग्रेस में नए प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में जिन नामों की चर्चा हो रही है उन्हें देखते हुए लगता है कि हर तीसरा बड़ा नेता दावेदारों की लिस्ट में शामिल है। इस लिस्ट में भूमिहार जाति से आने वाले नेताओं की फेहरिस्त सबसे लंबी नजर आती है। हालांकि दावेदारों की लिस्ट में जिन नामों की चर्चा हो रही है उनमें राजपूत, ब्राह्मण, यादव और उसके साथ-साथ मुस्लिम तबके से आने वाले नेता भी शामिल हैं। यह अलग बात है की केंद्रीय आलाकमान पार्टी की कमान किसे देने जा रहा है ये किसी को नहीं मालूम।
कांग्रेस से जुड़े सियासी गलियारे में जिन नामों की चर्चा है उनमें भूमिहार जाति से आने वाले कन्हैया कुमार, अमिता भूषण, अखिलेश सिंह का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है। इसके अलावा यादव तबके से आने वाले चंदन यादव के साथ-साथ पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन का नाम भी इस रेस में शामिल बताया जा रहा है। ब्राह्मण जाति से आने वाले प्रेमचंद मिश्रा, मुस्लिम समाज से आने वाले जावेद अहमद और शकील अहमद के नामों की भी चर्चा है। हालांकि इनमें से कोई भी नेता यह मानने को तैयार नहीं कि प्रदेश अध्यक्ष की रेस में उनका नाम चल रहा है कोई भी जुबान खोलने को तैयार नहीं है लेकिन इन नेताओं के आसपास रहने वाले कार्यकर्ता और समर्थकों को लग रहा है कि उनके नेता को ही अब बिहार में पार्टी की बागडोर मिलने वाली है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी के लिए सबसे पहले राजेश राम के नाम की चर्चा हुई थी। राजेश राम दलित तबके से आते हैं और भक्त चरण दास के वह पहली पसंद थे। कांग्रेस के एक खेमे का मानना है कि विजय शंकर दुबे जैसे नेताओं को भी पार्टी की बागडोर मिल सकती है। कांग्रेस आलाकमान अगर बिहार में सवर्ण कार्ड खेलना चाहेगा तो भूमिहार जाति सही आने वाले अजीत शर्मा को भी कमान मिल सकती है। अजीत शर्मा फिलहाल विधायक दल के नेता है हालांकि अध्यक्ष पद संभालने के बाद विधायक दल के नेता की कुर्सी वह छोड़ सकते हैं। एक तरफ मदन मोहन झा ने अपने इस्तीफे को आलाकमान के पास रखकर गेंद आलाकमान के पाले में डाल दी है तो दूसरी तरफ कांग्रेस में इन दिनों केवल कयासों का ही दौर चल रहा है। जब तक के प्रदेश नेतृत्व को लेकर फैसला नहीं हो जाता तब तक कांग्रेस पार्टी जमीनी तौर पर संगठन को मजबूत करने के लिए पहल करेगी इसकी उम्मीद कम दिखती है।