PATNA: पटना के बहुचर्चित जिम ट्रेनर विक्रम की हत्या के लिए गोलीकांड में सनसनीखेज खुलासा हुआ है। इस मामले में आऱोपी फिजियोथेरेपिस्ट राजीव कुमार सिंह औऱ उसकी पत्नी खुशबू सिंह को बचाने के लिए बड़ा खेल कर दिया गया है। सूबे के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच ने 5 गोली लगने से घायल विक्रम के इलाज के कागज में बड़ा फर्जीवाड़ा कर दिया। ये फर्जीवाड़ा ऐसा है कि आरोपी बेदाग बच निकलेंगे। विक्रम के वकील कह रहे हैं कि खुशबू सिंह से जुड़े रसूखदारों के कारण 3 लाख रूपये में ये खेल किया गया है।
सबसे बड़े अस्पताल में ऐसा खेल
दरअसल जिम ट्रेनर विक्रम सिंह गोलीकांड मामले में सामने आया तथ्य चौंकाने वाला है। अपराधियों ने विक्रम सिंह को गोली मारी थी और उसके बाद वह खुद स्कूटी चलाकर पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल गया था। जहां उसका इलाज हुआ। किसी तरह विक्रम की जान बची। लेकिन इलाज के बाद जब उसे डिस्चार्ज किया गया तो डिस्चार्ज पेपर पर मरीज का नाम सचिन लिख दिया गया। यानि अस्पताल का कागज ये कह रहा है कि विक्रम को गोली लगी ही नहीं और ना ही वह अस्पताल में भर्ती हुआ। इलाज तो सचिन नाम के आदमी का हुआ था।
रसूखदारों के इशारे पर खेल
मामले को विक्रम के वकील द्विवेदी सुरेंद्र ने मीडिया के सामने लाया है। वकील कह रहे हैं कि ये बड़ा खेल है और इसके लिए 3 लाख रूपये दिये गये हैं। द्विवेदी सुरेंद्र का आरोप है कि फिजियोथेरेपिस्ट राजीव कुमार सिंह बहुत पैरवी वाला है। उसका रसूख जगजाहिर है औऱ उसने साबित कर दिया कि वह किसी भी रिपोर्ट को किसी भी वक्त समय चेंज करवा सकता है। पीएमसीएच के कागज का असर ये हो सकता है कि गोलीकांड के आऱोपी कोर्ट से बेदाग बरी हो सकते हैं।
क्या किया पीएमसीएच ने?
दरअसल पिछले 18 सितंबर को विक्रम सिंह को गोली मारी गई थी औऱ उसके बाद वह PMCH में एडमिट हुआ था. ये इतना हाई प्रोफाइल मामला था कि पुलिस को कार्रवाई करनी पड़ी थी वर्ना राजीव सिंह की पत्नी खुशबू सिंह के लिंक कहां-कहां तक थे ये जानकर पुलिस भी सकते में थे. लेकिन विक्रम के साथ अस्पताल में खेल हो गया. अस्पताल में विक्रम भर्ती हुआ, 11 दिनों तक उसका इलाज चला. लेकिन 29 सितंबर को जब वह पीएमसीएच से डिस्चार्ज हुआ तो डिस्चार्ज पेपर पर मरीज का नाम विक्रम के बजाय सचिन लिख दिया गया. सचिव विक्रम के भाई का नाम है.
डेढ़ महीने से दौड़ रहा है विक्रम
अस्पताल से डिस्चार्ज होते वक्त विक्रम ने कागज नहीं देखा था लेकिन घऱ जाकर कागज देखा तो चौंक गया. अगले ही दिन वह पीएमसीएच पहुंचा और वहां के डॉक्टरों से मिला. विक्रम ने डॉक्टरों को बताया कि वह अस्पताल में भर्ती हुआ था. एडमिट होने का स्लीप विक्रम के नाम पर है तो फिर डिस्चार्ज सर्टिफिकेट पर सचिन का नाम कैसे आ गया. PMCH प्रशासन के सानने जब विक्रम ने उसकी पोल खोल दी तो उसे कहा गया कि वह एफिडेविट करा कर आवेदन दे कि वह ही अस्पताल में भर्ती हुआ था. या फिर थाने जाकर पुलिस से शिकायत करे. पुलिस कहेगी तो डिस्चार्ज सर्टिफिकेट में नाम बदल देंगे. विक्रम वहां से कदमकुआं थाने गया औऱ अपने केस के आईओ संतोष कुमार से मिला. आईओ ने मामले से पल्ला झाड़ लिया औऱ कहा कि वह पीएमसीएच जाकर खुद बात करे.
अब विक्रम पिछले डेढ़ महीने से दौड रहा है. पीएमसीएच ने डिस्चार्ज स्लीप पर उसका नाम नहीं लिखा है. उसके वकील कह रहे हैं कि विक्रम ने एफिडेविट करा कर पीएमसीएच अधीक्षक को आवेदन दिया है. 3 नवंबर को दिया गया आवेदन 22 नवंबर को स्वीकृत किया गया. लेकिन काम नहीं हुआ.
ऐसा ही रहा तो बरी हो जायेंगे आरोपी
वकील द्विवेदी सुरेंद्र के मुताबिक जिम ट्रेनर गोलीकांड में राजीव सिंह को सबूतों के अभाव में बेल मिल चुकी है. उसकी पत्नी खुशबू सिंह फिलहाल जेल में है लेकिन कोर्ट उसके मामले की सुनवाई के लिए जब इंज्यूरी रिपोर्ट मांगेगी तो वह सचिन कुमार के नाम पर होगी. ऐसे में कोर्ट के सामने यही तथ्य आयेगा कि विक्रम तो घायल हुआ ही नहीं. ट्रायल के दौरान तो आरोपी बेदाग बरी हो सकते हैं।
वकील कह रहे हैं कि विक्रम पर गोली चलवाने वाला राजीव कुमार सिंह सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर धमका रहा है। 28 नवंबर को राजीव ने सोशल मीडिया पर विक्रम के खिलाफ लिखा। राजीव ने इंज्यूरी रिपोर्ट को आधार बनाकर कहा कि विक्रम के साथ तो कुछ हुआ ही नहीं. उसे और उसकी पत्नी को साजिश के तहत जेल भेजा गया। सबूत की कमी को आधार बनाकर डॉ. राजीव पहले ही कोर्ट से जमानत ले चुका है. उसकी तरह खुशबू सिंह को भी बेल मिल जाये तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी।
हालांकि इस मामले पर कदमकुआं के थानाध्यक्ष विमलेंदु से जब मीडिया ने बात की तो उन्होने कहा कि पीएमसीएच के कागजात में सुधार कराया जायेगा। अपराधियों ने विक्रम को ही गोली मारी थी और इंज्यूरी रिपोर्ट उसकी ही बनेगी।