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DESK : पति पत्नी के तलाक के एक केस की सुनवाई करते हुए बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. बिलासपुर हाईकोर्ट ने तलाक की याचिका को स्वीकार करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी भी की. कोर्ट ने कहा है कि विवाह के बाद पति या पत्नी दोनों में से अगर कोई भी शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करता है तो इसे क्रूरता के बराबर माना जाएगा. पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध विवाहित जीवन के स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है. एक पति या पत्नी के साथ शारीरिक संबंध से इनकार करना क्रूरता के बराबर है. कोर्ट का विचार है कि इस मामले में पत्नी ने पति के साथ क्रूरता का व्यवहार किया है.
दरअसल, एक महिला अपने पति को भद्दा और मोटा कहकर नापसंद करती थी. इतना ही नहीं शादी के दस साल बीत जाने के बाद भी शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करती थी. परेशान पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की. हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया. फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की. पत्नी की तरफ से अपने बचाव में तर्क प्रस्तुत किए गए, लेकिन कोर्ट ने पत्नी के बयानों के आधार पर पाया कि दंपती का वर्ष 2010 से ही शारीरिक संबंध नहीं था. वह पति को भारी और दिखने में भद्दा कहती थी और नापसंद करती थी. उसने पति को जानकारी दिए बिना ही शिक्षाकर्मी की नौकरी ज्वाइन कर ली थी, जिसमें अपने पति के बजाए मायके वालों को नॉमिनी बनाया था.
अब हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि, यह स्पष्ट है कि अगस्त 2010 से पति-पत्नी के रूप में दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है, जो यह निष्कर्ष निकालने के लिए काफी है कि उनके बीच कोई शारीरिक संबंध नहीं है. पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध विवाहित जीवन के स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है. एक पति या पत्नी के साथ शारीरिक संबंध से इनकार करना क्रूरता के बराबर है. कोर्ट का विचार है कि इस मामले में पत्नी ने पति के साथ क्रूरता का व्यवहार किया है.
बता दें, बिलासपुर के विकास नगर में रहने वाले याचिकाकर्ता (पति) की शादी 25 नवंबर, 2007 को हुई थी. याचिकाकर्ता की पत्नी अब ससुराल छोड़कर बेमेतरा में रहती है. याचिकाकर्ता ने पत्नी के अलग रहने पर तलाक के लिए फैमिली कोर्ट में परिवाद प्रस्तुत किया था. इसमें उन्होंने बताया था कि शादी के कुछ महीने तक साथ रहने के बाद वह (पत्नी) अगस्त 2008 में तीज पर्व और रक्षाबंधन मनाने के लिए मायके चली गई.
2008 से 2015 तक बहुत कम समय ससुराल में बिताई और पति और ससुराल वालों को बताए बिना ही साल 2011 में बेमेतरा में शिक्षाकर्मी की नौकरी ज्वाइन कर ली. ऐसे में वह पति को घर छोड़कर बेमेतरा में रहने के लिए दबाव बना रही थी. परेशान होकर पति ने हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत तलाक के लिए आवेदन दिया, जिसे फैमिली कोर्ट ने 13 दिसंबर, 2017 को खारिज कर दिया.