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DESK: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को बिहार सरकार को निर्देश दिया कि मुजफ्फरपुर आश्रय गृह यौन हमला मामले के सिलसिले में वह कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करे। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 16 लंबित मामलों में दोषी सरकारी अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाइयों के अलावा मुकदमों की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है।
मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। सीबीआई द्वारा दोषी करार दिये गए अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और मामले में शामिल एनजीओ को काली सूची में डालने की सिफारिशों के अनुसार कार्रवाई के बारे में जानकारी कोर्ट ने मांगी है।
पत्रकार निवेदिता झा की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश दिए। उन्होंने इस मामले की मीडिया रिपोर्टिंग पर पटना उच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए व्यापक प्रतिबंध को चुनौती दी थी।
बिहार सरकार की ओर से अधिवक्ता मनीष कुमार ने कहा कि सीबीआई की सिफारिशों के अनुसार दोषी अधिकारियों के खिलाफ अदालती कार्रवाई की गई है। इस मामले में की गई कार्रवाई की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में वे दाखिल करेंगे।
कोर्ट ने सवाल किया कि सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट क्यों दाखिल की जा रही है। बिहार सरकार के वकील मनीष कुमार ने जवाब दिया कि शीर्ष अदालत के आदेश और संबंधित लड़कियों की गोपनीयता के तहत इन रिपोर्टों को केवल इस अदालत के समक्ष सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किया था।
गौरतलब है कि मुजफ्फरपुर में एक एनजीओ की ओर से चलाए जा रहे शेल्टर होम में 30 से अधिक लड़कियों के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म और यौन शोषण का सनसनीखेज मामला सामने आया था। न्यायालय ने मुजफ्फरपुर मामले में भारतीय दंड विधान की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन शोषण के आरोपों की जांच के लिए भी CBI को निर्देश दिए थे।
मुजफ्फरपुर में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाये जा रहे आश्रय गृह में कई लड़कियों के साथ कथित दुष्कर्म एवं यौन शोषण किया गया था और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की एक रिपोर्ट के बाद यह मामला सुर्खियों में आया था। इसके बाद पुलिस की जांच में यह सामने आया था कि शेल्टर होम से छह लड़कियां गायब हुई हैं। वर्ष 2013 से 2018 के बीच ये पीड़ित लड़कियां गायब हुई थीं। इसके बाद राज्य के समाज कल्याण विभाग ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी।