MUMBAI : महाराष्ट्र में सत्ता के लिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की बेकरारी ने उनकी पुरानी सहयोगी पार्टी BJP ही नहीं बल्कि उनकी खुद की पार्टी के ही कई सहयोगियों को हैरान कर रखा है. चुनाव में बीजेपी से लगभग आधी सीटें जीतने के बावजूद मुख्यमंत्री का पद मांग रहे उद्धव ठाकरे की जिद देश की राजनीति के लिए अजूबा वाकया बन गया है. शिवसेना के अंदर से आ रही खबरों को मानें तो सत्ता के लिए उद्धव ठाकरे की आक्रमकता और बेकरारी उनके नये सलाहकार की सलाहों का असर है. महाराष्ट्र में चुनाव से उद्धव ठाकरे ने प्रशांत किशोर से सलाह लेनी शुरू की थी, माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर ही उन्हें बीजेपी से निपटने के टिप्स दे रहे हैं.
प्रशांत किशोर की सलाह पर भाजपा से निपट रहे ठाकरे
शिवसेना के नेताओं का एक बडा तबका ये मान रहा है कि सत्ता के लिए उद्धव ठाकरे की आक्रमकता के पीछे प्रशांत किशोर जैसे उनके सलाहकारों का दिमाग काम कर रहा है. उनके मुताबिक महाराष्ट्र चुनाव के वक्त से ही उद्धव ठाकरे लगातार प्रशांत किशोर के संपर्क में रहे हैं. चुनाव परिणाम के बाद दोनों के बीच लगातार बातचीत और बढी है. उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे और उनकी टीम भी प्रशांत किशोर के संपर्क में रही है. शिवसेना के एक नेता के मुताबिक प्रशांत किशोर समेत दूसरे नये सलाहकारों की टीम ने ही उद्धव ठाकरे को ये बताया कि चुनाव परिणाम उनके लिए वरदान बन कर आया है और अब ठाकरे को भाजपा ही नहीं बल्कि दूसरी पार्टियों को भी अपने मनमुताबिक घुमाने की ताकत मिल गयी है. सलाहकारों ने ये समझाया कि अगर राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ भी शिवसेना की सरकार बनती है तो महाराष्ट्र में भाजपा का वर्चस्व खत्म हो जायेगा. BJP के वर्चस्व के कारण ही शिवसेना का आधार सिमटता कम होता जा रहा है.
उद्धव ने पुराने टीम को किनारे किया
जानकार बता रहे हैं कि शिव सेना प्रमुख ने सुभाष देसाई, अनिल देसाई, एकनाथ शिंदे और मिलिंद नारवेकर जैसे अपने पुराने सहयोगियों की राय को दरकिनार करते हुए उन्हें सत्ता के लिए खेले जा रहे खेल से किनारे कर दिया है. ये वो नेता हैं जिनकी राय थी कि शिवसेना को बीजेपी के साथ बने रहना चाहिये. दरअसल पार्टी में ऐसे कई नेता हैं जिन्हें अंदेशा है कि NCP और कांग्रेस के साथ शिवसेना का तालमेल भविष्य के लिए आत्मघाती कदम साबित होने जा रहा है. शिवसेना के एक नेता ने कहा “ BJP और शिवसेना की विचारधारा समान है. हमारा वोट बैंक भी एक जैसा है. जबकि कांग्रेस-एनसीपी का आधार वोट पूरी तरह से अलग है. हम सरकार में भले ही उन्हें साझीदार बना लें लेकिन चुनाव में उनके साथ तालमेल करके नहीं जा सकते.” शिवसेना नेताओं को डर इस बात का भी है देश में कहीं भी कांग्रेस के समर्थन से कोई दूसरी पार्टी की सरकार स्थायी रूप से काम नहीं कर पायी.
हालांकि शिवसेना में ही इससे अलग राय रखने वाले भी ढ़ेर सारे नेता हैं. राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र झोंडाले के मुताबिक उद्धव ठाकरे भविष्य के राजनीतिक परिदृश्य को देख रहे हैं. “ शिवसेना नेतृत्व संभवतः ये मान रहा है कि भाजपा अपना जनाधार खोती जा रही है और अपनी राजनीति ठीक करने का ये सही वक्त है. उद्धव ठाकरे न सिर्फ महाराष्ट्र की सियासत में भाजपा से बड़ा बनना चाहते हैं बल्कि अपने बेटे का भविष्य भी दुरूस्त करने की कोशिश में है. हालांकि उनकी महत्वाकांक्षा का परिणाम क्या होगा ये फिलहाल बता पाना मुशिकल है. “