SITAMARHI : सीतामढ़ी में एक महिला ने लॉकडाउन के दौरान सामाजिक बंधन को तोड़ और लोक लाज को छोड़कर हाथ में कैंची और अस्तूरा थाम लिया. पुरुष प्रधान समाज में किसी महिला के पुरुष को हजामत बनाने की बात हर किसी को थोड़ी लोक लाज और शर्मिंदगी भरी लगे, लेकिन सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी प्रखंड के बसौल गांव की सुखचैन देवी ने यह काम बखूबी करना शुरू कर दिया है.
आज इस काम को सुखचैन देवी गर्व से कर रही है और अपने बच्चों को पाल रही है. सुखचैन देवी के पति लॉकडाउन के दौरान जब बेरोजगार हो गया तब उसके सामने बच्चों के पालने का संकट आन पड़ा. बच्चों को भूख से तड़पता देख सुखचैन देवी ने समाजिक सीमाओं को लांघ कर हाथ में अस्तूरा और कैंची थाम लिया और आज आत्मनिर्भर बन अपने बच्चों का पेट पाल रही है.
लोगों का हजामत करने वाली 35 साल की सुखचैन देवी ने बताया कि वह पहले से हजामत करने का कला जानती थी. लेकिन कभी उसने इस काम को नहीं किया. उसके पति रमेश ठाकूर पंजाब में रहकर बिजली मिस्त्री का काम करते थे और ये यहां गांव में परिवार के साथ रहकर बच्चों को पालती थी. पर कोरोना संकट के इस काल में उसके पति की नौकरी छूट गई और वह बेरोजगार हो गया. पति पंजाब में ही फंस गए और यहां घर में बच्चों के खाने के लिए भी कुछ नहीं रहा. अभाव के कारण सुखचैन देवी ने अपने परिवार का जिम्मा खुद उठाने की ठानी और सामाजिक ताने-बाने को ताक पर रखकर हाथ में कैंची-अस्तूरा थाम लिया और घर-घर जाकर पुरुषों के बाल और दाढ़ी बनाने लगी. अब सुखचैन देवी बाल -दाढ़ी बना कर रोज 200 से 300 रुपये तक कमा लेती है औऱ अरने परिवार और बच्चों को पाल रही है.