SAHARSA : बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन को गुरुवार अहले सुबह जेल से रिहा कर दिया गया। वहीं अब इनकी रिहाई के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि, क्या आनंद मोहन रिहाई के लिए जेल नियमों उल्लंघन किया गया या फिर सबकुछ नियमों के अनुकूल हुआ।
दरअसल, बिहार के बाहुबली नेता को आज सुबह साढ़े 4 बजे जेल से रिहा कर दिया गया। इनकी रिहाई के बाद अब यह सवाल उठना शुरू हो गया कि , जब नियमों के अनुसार किसी भी कैदी को सुबह सूर्योदय के उपरांत रिहा किया जाता है तो फिर आनंद मोहन को कैसे रिहा कर दिया गया। हालांकि, यह बात भी कही जा रही है कि आनंद मोहन की रिहाई को लेकर जेल मैनुअल में बदलाव किया गया था। इस दौरान उनकी रिहाई को लेकर भी बात हुई थी। इसके साथ ही जिस तरह से उनके समर्थकों का जुटान हो रहा था इसी बातों को ध्यान में रखते हुए इन्हें चोरी - चुपके सुबह 4:30 बजे ही रिहा कर दिया गया।
सूत्रों के अनुसार आनंद मोहन को जेल के पीछे वाले गेट से निकाला गया है. नियम के मुताबिक सूर्योदय से पहले किसी भी कैदी को या रिहा होने वाले को नहीं निकाला जा सकता है।अब ऐसे में आनंद मोहन की रिहाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि कहीं इस तरीके से की गई रिहाई गलत तो नहीं है।
वहीं, दूसरी तरफ आनंद मोहन के जेल से रिहा होने के साथ ही पटना हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर दिया गया है। यह पीआईएल जेल नियमों में बदलाव के खिलाफ दायर किया गया है। पटना हाईकोर्ट में बिहार सरकार की ओर से जारी उस अधिसूचना को निरस्त करने के लिए लोकहित याचिका दायर की गई है। जिसके तहत बिहार कारागार नियमावली 2012 के नियम और 481(i) (क) में संशोधन का ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या वाक्य को हटा दिया गया।
इस लोकहित याचिका को सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति ने अपने अधिवक्ता अलका वर्मा के माध्यम से दायर किया है। याचिका में राज्य सरकार की ओर से बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i) (क) में किए गए संशोधन को गैरकानूनी बताया गया है। यह अधिसूचना कानून व्यवस्था पर प्रतिकूल असर डालने वाली है और ड्यूटी पर मौजूद लोक सेवकों और आम जनता के मनोबल को गिराती है।
इधर, आनंद मोहन की रिहाई पर DM जी कृष्णैया की बेटी पद्मा ने नाराजगी जताई है। उन्होंने एक समाचार एजेंसी से बात करते हुए कहा कि, बिहार सरकार को अपने इस फैसले पर दोबारा सोचना चाहिए। सरकार ने एक गलत उदाहरण पेश किया है। ये सिर्फ एक परिवार के साथ अन्याय नहीं है, बल्कि देश के साथ अन्याय है। उनकी बेटी ने रिहाई के खिलाफ अपील करने की भी बात कही है।
आपको बताते चलें कि, आनंद मोहन को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके तहत उन्हें 14 साल की सजा हुई थी। ऐसा बताया जाता है कि, आनंद मोहन ने सजा पूरी कर ली थी, लेकिन मैनुअल के मुताबिक, सरकारी कर्मचारी की हत्या के मामले में दोषी को मरने तक जेल में ही रहना पड़ता है। लेकिन, पिछले दिनों नीतीश सरकार ने इसमें बदलाव कर दिया। 10 अप्रैल 2023 को जेल मैनुअल से ‘काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या’ अंश को हटा दिया गया। इसी से आनंद मोहन या उनके जैसे अन्य कैदियों की रिहाई का रास्ता साफ हुआ।