PATNA : विधान परिषद चुनाव में अलग-अलग राजनीतिक दल के दिग्गजों को उनके घर में ही हार का सामना करना पड़ा। तेजस्वी यादव राघोपुर से विधायक हैं इसके बावजूद वैशाली सीट पर उनके उम्मीदवार की हार हुई। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर संजय जयसवाल और डिप्टी सीएम रेणु देवी पश्चिम चंपारण से आते हैं। इसके बावजूद वहां बीजेपी की हार हुई। मुंगेर से जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह सांसद हैं इसके बावजूद मुंगेर,जमुई और लखीसराय सीट पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार को हार का मुंह देखना पड़ा। उनके किले में क्यों मात मिली इसे समझने की जरूरत है।
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने मुंगेर, जमुई और लखीसराय वाली सीट पर अपने करीबी संजय प्रसाद को उम्मीदवार बनाया था। संजय प्रसाद इसके पहले विधानसभा चुनाव भी चकाई सीट से लड़ चुके थे। लेकिन चकाई में उन्हें निर्दलीय सुमित सिंह से हार का सामना करना पड़ा था। निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सुमित सिंह ने जीत हासिल करने के बावजूद नीतीश कैबिनेट में जगह बनाई। विधानसभा के अंकगणित को देखते हुए नीतीश कुमार ने सुमित सिंह को अपने पाले में कर लिया। मंत्री बनने के बावजूद सुमित सिंह ने संजय प्रसाद का विरोध नहीं छोड़ा। संजय प्रसाद और सुमित सिंह के बीच टकराव की खबरें अक्सर आती रही। वही विधान परिषद चुनाव में सुमित सिंह में संजय प्रसाद का समर्थन नहीं किया। इस वजह से संजय प्रसाद कमजोर पड़ गये।
ललन सिंह के लिए दूसरी बड़ी मुश्किल लखीसराय में थी। लखीसराय से स्थानीय विधायक और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा और ललन सिंह के बीच रिश्ते कैसे हैं यह किसी से छिपी नहीं है। विधानसभा में नीतीश कुमार और विजय कुमार सिन्हा के बीच जो कुछ हुआ उसे भी परिषद चुनाव पर असर डाला। विधानसभा अध्यक्ष होने के बावजूद ललन सिंह के करीबी और उनके समर्थक लगातार विजय कुमार सिन्हा पर निशाना साधते रहे। शुरुआत में इस सीट पर कोई लड़ाई नजर नहीं आ रही थी। माना जा रहा था कि जेडीयू उम्मीदवार संजय प्रसाद बेहद आसानी से जीत हासिल कर लेंगे।
स्पीकर विजय कुमार सिन्हा से लेकर तमाम लोगों पर हमला जारी रखा। जो ललन सिंह के विरोध में खड़े थे। इस पूरे अभियान को सोशल मीडिया पर भी ललन सिंह के गरीबी बनने में लगे लोगों ने रफ्तार दे दिया। नतीजा यह हुआ कि जो लोग शुरुआत में इस लड़ाई के अंदर ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे थे। बाद में वह जेडीयू के खिलाफ लामबंद होते गए। इस सीट पर विजय कुमार सिन्हा फैक्टर ने भी भरपूर काम किया। अजय सिंह और विजय सिन्हा के एक साथ पूजा करने वाली तस्वीरों को ललन सिंह के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर साझा किया था।
इसका भी असर हुआ जनता दल यूनाइटेड के नेता और कार्यकर्ता या यूं कहें कि ललन सिंह के करीबी जहां इन तस्वीरों के जरिए विजय सिन्हा को टारगेट करने की कोशिश कर रहे थे वही इसका गलत रियेक्शन होता गया। नतीजा यह हुआ कि ललन सिंह को उनके किले में ही शिकस्त मिल गई। जेडीयू उम्मीदवार की हार ऐसी सीट पर हुई जिस सीट पर किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो राज्य कैबिनेट में शामिल नीतीश कुमार के बेहद करीबी मंत्री ने भी जदयू उम्मीदवार के लिए ठीक तरीके से गोलबंदी नहीं की। यह पूरा मामला इस इलाके में वर्चस्व से जुड़ा है। सियासी कद किसका बड़ा और किसका छोटा ना हो जाए इस खेल में सभी लोग लगे रहे।