PATNA : चार दिवसीय छठ पर्व का सबसे प्रमुख दिन होता है कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि। इस दिन व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। इस बार छठ पर्व में संध्या अर्घ्य 7 नवंबर को दिया जाएगा।
व्रतधारी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पास की ही किसी पवित्र नदी, तालाब, कुण्ड में जाते हैं और वहां पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। फिर अगली सुबह व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हुए उसे नमस्कार करते हैं और इसी के साथ छठ पर्व का समापन हो जाता है।
छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्य देव को अर्पित करने के लिए प्रसाद तैयार किया जाता है। फिर इस प्रसाद और फलों को एक बांस की टोकरी में सजाया जाता है। इसके बाद टोकरी की पूजा की जाती है। फिर सूर्य डूबने से पहले सभी व्रती पास के ही किसी तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं। वहां स्नान करके पानी में खड़े रहकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। बता दें सूर्य देव को अर्घ्य बांस या पीतल की टोकरी का इस्तेमाल करते हुए दिया जाता है।
अर्घ्य देने के लिए एक लोटे में पवित्र जल लें। फिर इसमें कच्चे दूध की कुछ बूंदे, साथ में लाल चंदन, फूल, अक्षत और कुश भी डाल दें। फिर सूर्य देव की तरफ देखते हुए सूर्य मंत्र का जाप करें और धीरे-धीरे अर्घ्य दें। ध्यान रहे कि अर्घ्य के जल ते छीटें आपके पैरों पर न पढ़ें।
सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद सजाए गए सूप से छठी मैया की विधि विधान पूजा की जाती है। फिर छठी मैया के गीत और व्रत कथा सुनी जाती है। इसके बाद छठ पूजा के चौथे दिन सुबह के समय उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।इसके बाद छठ का प्रसाद सभी में बांटा जाता है और इसी के साथ छठ व्रत का समापन हो जाता है।
इधर, एक और कथा के अनुसार, प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया अपनी पुत्री की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था।
छठ पूजा का व्रत लोक आस्था का सबसे बड़ा महापर्व माना जाता है। ये व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक होता है। छठ व्रत में मिट्टी के चूल्हे का ही प्रयोग करें। इसके साथ ही इस दिन मिट्टी के बर्तन ही इस्तेमाल करने चाहिए। मिट्टी के बर्तनों के बिना छठ पूजा का व्रत अधूरा माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन शुद्ध देशी घी में ही ठेकुआ प्रसाद बनाकर भोग लगाना चाहिए और भोग में गन्ने का प्रयोग जरूर करना चाहिए।