PATNA : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कभी राष्ट्रपति तो कभी उपराष्ट्रपति बनने की खूब चर्चा हो रही है। राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा भी खूब चली कि नीतीश राज्यसभा जा सकते हैं लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री का कद कितना बड़ा है इसको दिखाने के लिए जेडीयू के नेता ने आज अंबेडकर जयंती पर एक दिलचस्प विज्ञापन अखबारों में दिया है। दरअसल अंबेडकर जयंती के मौके पर दिए गए विज्ञापन में नीतीश कुमार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और संविधान निर्माता डॉ बाबा साहेब अंबेडकर के साथ खड़ा किया गया है। यह बताने की कोशिश की गई है कि नीतीश कुमार का कद सामाजिक सुधार की दिशा में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और बाबा साहब अंबेडकर की तरह है।
खास बात यह है कि बापू और अंबेडकर के साथ नीतीश कुमार की तस्वीर वाला यह विज्ञापन ना तो बिहार सरकार के किसी विभाग की तरफ से दिया गया और ना ही जनता दल यूनाइटेड की तरफ से। नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले बिहार सरकार के मंत्री और जेडीयू नेता अशोक चौधरी की तरफ से यह विज्ञापन आज के अखबारों में दिया गया है। मंत्री अशोक चौधरी के साथ-साथ समग्र दलित परिवार बिहार की तरफ से आवेदन छपा है। इस विज्ञापन में बताया गया है कि दलितों के कल्याण को लेकर नीतीश कुमार में क्या कीर्तिमान स्थापित किया, साथ ही साथ यह भी बताया गया है कि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ नीतीश कुमार कैसे निर्भीक होकर अभियान चला रहे हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के विकास के लिए साल 2007 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के गठन के लिए नीतीश कुमार का आभार जताया गया है। मुख्यमंत्री की तरफ से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए चलाई जा रही सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना के तहत मिलने वाली प्रोत्साहन राशि, आवासीय विद्यालयों की क्षमता बढ़ाए जाने के साथ-साथ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के छात्र छात्राओं के लिए छात्रावास के निर्माण के फैसले पर भी आभार जताया गया है।
जाहिर है अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति वर्ग के बीच नीतीश कुमार की छवि को हितैषी के तौर पर दिखाने का प्रयास इस विज्ञापन ने किया है। लेकिन इस विज्ञापन में जिस तरह एक कतार में राष्ट्रपिता और बाबा साहब अंबेडकर के साथ नीतीश कुमार को खड़ा किया गया है उसे लेकर अगर सियासी बयानबाजी शुरू हो तो बहुत अचरज नहीं होगा। देखना होगा विपक्ष की नजर इस विज्ञापन पर कब तक जा पाती है और सियासी बयानबाजी का सिलसिला कब रफ्तार पकड़ता है।