DESK : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा पेश किया गया समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024 विधेयक सदन में पारित हो गया। विधानसभा में यूसीसी बिल पास होने के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। इस समान नागरिक संहिता 2024 विधेयक सदन में पारित होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मौजूगी में विधायकों ने जश्न मनाया और मिठाइयां बांटीं।
वहीं, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य विधानसभा में समान नागरिक संहिता(UCC) उत्तराखंड 2024 विधेयक पर कहा, ये कोई सामान्य विधेयक नहीं है. देवभूमि उत्तराखंड को इसका सौभाग्य मिला। भारत एक बहुत बड़ा देश है जिसमें बहुत सारे प्रदेश हैं लेकिन ये अवसर हमारे राज्य को मिला। हम सब गौरान्वित हैं कि हमें इतिहास लिखने और देवभूमि से देश को दिशा देने का अवसर मिला है।
मालूम हो कि, आजादी के बाद पहले जनसंघ और अब बीजेपी के मुख्य तीन एजेंडा रहे हैं। इनमें पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना था. दूसरा, अयोध्या में राममंदिर का निर्माण कराना और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कराना है। अब तक पहले दो एजेंडे पर काम खत्म हो चुका है। अब बारी यूनिफॉर्म सिविल कोड की है। ऐसे में उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता से संबंधित बिल 06 फरवरी को पेश किया और अगले दिन ही ये पास होकर अब कानून बन चुका है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड या यूसीसी है क्या?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम। दूसरे शब्दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे। संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है।
अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है। बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है।
समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था। इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है। इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है। हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया। राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया। हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिये अलग कानून रखे गए थे। ऐसे में अब यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात कही जा रही है।