फागू चौहान की राज्यपाल पद पर नियुक्ति: शुरू हो गया BJP का मिशन बिहार

फागू चौहान की राज्यपाल पद पर नियुक्ति: शुरू हो गया BJP का मिशन बिहार

PATNA: आज दोपहर बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन जब पटना एक महिला कॉलेज में मुख्य अतिथि बन कर बैठे थे तो उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि बतौर राज्यपाल बिहार में ये उनका आखिरी सार्वजनिक कार्यक्रम है. कार्यक्रम के दौरान ही उनके सरकारी सेवक ने कान के पास आकर बुदबुदाया-सर, आपका ट्रांसफर मध्य प्रदेश हो गया है. हैरान लालजी टंडन ने पूछा-बिहार कौन आ रहे हैं. जवाब मिला, आपके ही सूबे से फागू चौहान. राजनीति के पुराने खिलाड़ी लालजी टंडन को शायद समझने में कोई परेशानी नहीं हुई होगी कि केंद्र में बैठी उनकी सरकार का इरादा क्या है. शुरू हो गया बीजेपी का मिशन 2020 फागू चौहान उत्तर प्रदेश के सीटिंग विधायक हैं. वे उत्तर प्रदेश पिछडा वर्ग आयोग के अध्यक्ष भी हैं. किसी सीटिंग विधायक या सांसद को इस्तीफा दिलाकर राज्यपाल बनाने का वाकया देश ने कभी कभी ही देखा होगा. परंपराओं के मुताबिक राज्यपाल जैसे प्रमुख संवैधानिक पद पर पर्याप्त सियासी या प्रशासनिक अनुभव वाले नेता की ही नियुक्ति होती है. फागू चौहान कभी मंत्री नहीं रहे . लेकिन बीजेपी के मिशन बिहार में फागू चौहान सबसे ज्यादा फिट बैठ रहे थे. लिहाजा उन्हें विधायकी छोड़ कर राजभवन में बिठाने का फैसला ले लिया गया. लालजी टंडन बीजेपी के अगले मिशन में बिहार में फिट नहीं बैठ रहे थे लिहाजा उन्हें वहां भेजा गया जहां चुनाव चार साल बाद होना है. लालजी टंडन मात्र 11 महीने बिहार के राज्यपाल रहे. फागू चौहान की नियुक्ति के मायने क्या हैं फागू चौहान उत्तर प्रदेश के जिस क्षेत्र में राजनीति करते आये हैं वह बिहार की सीमा से ठीक सटे है. आजमगढ से लेकर मऊ तक के इलाके में वे प्रमुख ओबोसी नेता है. फागू चौहान उत्तर प्रदेश की चौहान जाति से आते हैं जिसे बिहार में नोनिया जाति के नाम से जाना जाता है. बिहार में ये अति पिछड़ी जाति है और इस जाति के वोटरों की तादाद भी ठीक है. नोनिया या बेलदार को निषाद यानि मल्लाह जाति की उप जाति भी माना जाता है. ये बिहार का बड़ा वोट बैंक है. यही वो फैक्टर थे जो फागू चौहान को बिहार का राज्यपाल बनाने में काम आये. अति पिछड़े वोट बैंक पर बीजेपी की नजर दरअसल, BJP का नेतृत्व ये मान रहा है कि 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव उसे अकेले लड़ना पड़ सकता है. BJP जानती है कि बिहार में अति पिछड़े वोट बैंक का महत्व क्या है. ये ईवीएम से निकलने वाला वही जिन्न है जो किसी भी पार्टी को सत्ता में बिठा सकता है. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अति पिछड़े वोट बैंक की अनदेखी की थी, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा था. 2020 में पार्टी ये गलती नहीं दुहराने जा रही है. फागू चौहान की नियुक्ति तो पहला कदम है. आगे बहुत कुछ होना बाकी है.