दिल्ली में सार्वजनिक स्थानों पर मना सकेंगे छठ पूजा, DDMA की बैठक में लिया गया फैसला

दिल्ली में सार्वजनिक स्थानों पर मना सकेंगे छठ पूजा, DDMA की बैठक में लिया गया फैसला

DELHI: कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा अब दिल्ली में भी मनायी जाएगी। दिल्ली में सार्वजनिक स्थलों पर छठ पूजा मनाने की अनुमति दी गयी है। डीडीएमए की हुई बैठक में यह फैसला लिया गया है। 


गौरतलब है कि कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में सार्वजनिक स्थानों पर छठ पूजा के आयोजन की अनुमति मांगी थी। इसे लेकर उपराज्यपाल और दिल्ली आपदा प्रबंधन अथॉरिटी यानी डीडीएमए के चेरमैन अनिल बैजल को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पत्र लिखा था। जिसके बाद डीडीएमए ने आज बुधवार को बैठक बुलाई थी। 


डीडीएमए की हुई बैठक में यह फैसला लिया गया कि अब दिल्ली में लोक आस्था का महापर्व का आयोजन होगा। दिल्ली के सार्वजनिक स्थलों पर इसका आयोजन किया जाएगा। हालांकि इस दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना अनिवार्य होगा।


 दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि सख्त कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए दिल्ली में सार्वजनिक स्थलों पर छठ पूजा की अनुमति दी गयी है। मनीष सिसोदिया ने यह भी कहा कि 1 नवंबर से दिल्ली के निजी और सरकारी स्कूल सभी कक्षाओं के लिए कुछ शर्तों के साथ खोलने का निर्णय लिया गया है। कोई भी स्कूल बच्चों को आने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। 


स्कूल सुनिश्चित करेंगे कि पढ़ाई ऑफलाइन और ऑनलाइन चले। इस वर्ष छठ पूजा का त्योहार 8 नवंबर को नहाय-खाय के साथ शुरू होगा। इसके अगले दिन यानी 9 नवंबर को खरना और 10 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा। पूजा के अंत में 11 नवंबर की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा।  


बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए दिल्ली में स्कूलों को बंद किया गया था। लंबे इंतजार के बाद दिल्ली के स्कूलों को फिर से खोलने का फैसला लिया गया है।  बुधवार को दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस बात ऐलान किया है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली में 1 नवंबर से सभी स्कूल खुल जाएंगे।


 DDMA की बैठक में स्कूल खोलने पर फैसला लिया गया है। स्कूल खोलने को लेकर सरकार ने यह भी तय किया है कि अगर जो पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं उनके लिए भी अलग से प्रावधान किया है। सरकार ने यह तय किया है कि कोई भी स्कूल बच्चों को स्कूल लाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर अभिभावकों की अनुमति जरूरी है।