DELHI : बिहार में जातीय गणना पर सुनवाई को लेकर जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। इस पर अब सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। जातीय गणना की रोक वाली याचिका पर 28 अप्रैल को सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि जनगणना क्षेत्र केंद्र सरकार का है। बिहार सरकार के पास जातीय गणना का अधिकार नहीं है। याचिका में इस संविधान के मूल अधिकारों का हनन बताया गया है। जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई की तारीख तय कर दी है।
मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की गई है, उसमें यह आधार बनाया गया है कि जनगणना कराना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। राज्य सरकार इसे नहीं करा सकती। वहीं, ट्रांसजेंडर की कोई जाति नहीं होती। यह जेंडर है, इसे बिहार में जाति में बांट दिया गया है, जो की गलत है। इसके आलावा बिहार सरकार के तरफ से कई जातियों को उनके मूल जातियों से हटा दिया गया है। अब इस मुद्दों पर सुनवाई को लेकर 28 अप्रैल को सुनवाई की तारीख तय किया है।
जानकारी को कि, सुप्रीम कोर्ट में स्वास्थ्य विभाग के रिटायर्ड हेड क्लर्क के बेटे अखिलेश सिंह समेत 10 से 12 लोग ने यह याचिका दर्ज करवाई थी कि बिहार में हो रही जाति आधारित गणना गलत है और इस पर रोक लगाने की मांग की थी। हालांक, उस समय ने सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई से इनकार करते हुए हाई कोर्ट जाने के लिए कह दिया था। इसके बाद फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई। दलील दी गई कि अगर इस पर तुरंत रोक नहीं लगाई गई तो जातिगत जनगणना पूरी हो जाएगी। फिर इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। जिसके बाद अब कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई की तारीख 28 मई तय की है।
आपको बताते चलें कि, जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार से इतर बिहार सरकार ने अपना निर्णय ले लिया है। राज्य सरकार अपने खर्च पर जातीय जनगणना कराएगी। इCM नीतीश कुमार ने यह साफ़ कह दिया था कि, राज्य सरकार बिना किसी के मदद के राज्य में जाति आधरित गणना करवाएगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति आधारित गणना की शुरुआत अपने पैतृक आवास बख्तियारपुर से की। जाति आधारित गणना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का परिवार शामिल हुआ। खुद नीतीश कुमार ने भी अपनी और अपने बेटे सहित भाई और उनके परिवार की गणना कराई थी।