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Bihar News: बिहार में जल्द मिलेगा शुगर फ्री आम, मधुमेह रोगियों के लिए खुशखबरी

Bihar News: बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर में शुगर फ्री आम और ग्लूटेन मुक्त गेहूं पर शोध हुआ शुरू। मधुमेह रोगी भी अब बिना चिंता खा सकेंगे आम। पढ़े पूरी जानकारी..

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Fri, 20 Jun 2025 03:14:06 PM IST

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प्रतीकात्मक - फ़ोटो Google

Bihar News: बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर में एक क्रांतिकारी पहल शुरू हुई है, जिसके तहत शुगर फ्री आम और ग्लूटेन मुक्त गेहूं की किस्में विकसित की जाएंगी। यह अनुसंधान मधुमेह रोगियों और ग्लूटेन असहिष्णुता वाले लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने बताया है कि हाईटेक लैब में वरिष्ठ वैज्ञानिकों की टीम इस पर गहन अध्ययन कर रही है। इस पहल से मधुमेह रोगी बिना चिंता के आम का स्वाद ले सकेंगे और ग्लूटेन मुक्त गेहूं से बनी रोटी भी सेहत के लिए अनुकूल होगी।


BAU में आयोजित 11वीं आम प्रदर्शनी के दौरान मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संजय कुमार ने शुगर फ्री आम पर शोध की जरूरत पर जोर दिया। इस सुझाव को गंभीरता से लेते हुए डॉ. डी.आर. सिंह ने तुरंत इस दिशा में काम शुरू करने का ऐलान किया है। विश्वविद्यालय ने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठकें शुरू कर दी हैं और जल्द ही यह योजना धरातल पर उतरेगी। BAU का लक्ष्य है कि मधुमेह रोगियों के लिए कम ग्लूकोज वाले आम और ग्लूटेन असहिष्णुता वाले लोगों के लिए ग्लूटेन-मुक्त गेहूं की किस्में विकसित की जाएं, जो उनकी सेहत को ध्यान में रखकर तैयार हों।


BAU सबौर का आम अनुसंधान में गौरवशाली इतिहास रहा है। देश की पहली हाइब्रिड आम किस्में, महमूद बहार और प्रभाशंकर, यहीं से विकसित की गई थीं। विश्वविद्यालय बनने के बाद बीज रहित आम सहित कई अन्य किस्में भी विकसित की गई हैं। अब शुगर फ्री आम के लिए अनुसंधान में वनराज जैसी किस्मों पर ध्यान दिया जा सकता है, जिनमें पहले से ही कम शर्करा और अधिक अम्लीयता होती है। ग्लूटेन मुक्त गेहूं पर शोध से सीलियक रोग और ग्लूटेन संवेदनशीलता वाले लोगों को लाभ होगा, क्योंकि ग्लूटेन युक्त गेहूं से पाचन संबंधी समस्याएं और मधुमेह की जटिलताएं बढ़ सकती हैं।


कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने कहा है कि “हम मधुमेह रोगियों के लिए शुगर फ्री आम और ग्लूटेन असहिष्णुता वालों के लिए ग्लूटेन मुक्त गेहूं विकसित करने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। BAU मांग के अनुसार अनुसंधान को बढ़ावा दे रहा है और जल्द ही इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।” यह पहल न केवल बिहार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।