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13-Sep-2025 11:42 AM
By First Bihar
Bihar News: आगामी विधानसभा चुनाव होने में अब कुछ ही दिन शेष हैं। चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने दांव बैठाने में जुटी हैं। ऐसे में एक अहम सवाल यह भी है कि इस बार महिला उम्मीदवारों की कितनी भूमिका रहेगी और क्या उनकी संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है।
दरअसल, बिहार की राजनीति में कोई भी पार्टी हो उसका एक नारा काफी सुर्ख़ियों में रहता है वह है आधी आबादी तो अब सवाल यह है कि यह सिर्फ चुनावी नारा है या फिर इस बात को बिहार की राजनीतिक पार्टी अपने संगठन के अंदर प्रयोग भी करती है। हम यह बात इस वजह है कह रहे हैं क्योंकि पिछले कुछ विधानसभा चुनाव के आकड़े यह कहानी कहते हैं कि अब राज्यों की राजनीति में महिलाओं की रूचि कम हो रही है। इसको लेकर आज हम आपको एक रिपोर्ट पर ध्यान दिलवाने वाले हैं तो यह बतलाता है कि अब राज्यों की चुनाव में महिला की भागीदारी कितनी हो रही है?
विभाजन से पहले जब बिहार और झारखंड एक राज्य थे, तो कुल 1103 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था और उनमें से 169 महिलाएं सदन तक पहुंचीं। विभाजन के बाद हालांकि महिला प्रत्याशियों की संख्या बढ़ी, लेकिन उनकी सफलता दर गिर गई। आंकड़े बताते हैं कि विभाजन के बाद 1322 महिलाओं ने चुनाव लड़ा, लेकिन मात्र 116 महिलाएं ही विधानसभा तक पहुंच सकीं।
बात करें 1972 का विधानसभा चुनाव महिलाओं के लिए सबसे कठिन रहा। इस चुनाव में 45 महिलाओं को टिकट मिला, लेकिन उनमें से एक भी महिला जीत दर्ज नहीं कर सकी। यह अब तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन माना जाता है। इसके विपरीत, 2010 का विधानसभा चुनाव महिलाओं के लिए सुनहरा अध्याय साबित हुआ। इस चुनाव में रिकॉर्ड 34 महिलाएं जीतकर सदन में पहुंचीं। यह बिहार विधानसभा के इतिहास में महिलाओं की सर्वाधिक प्रतिनिधित्व वाली विधानसभा रही।
महिला प्रत्याशियों का ऐतिहासिक डेटा
वर्ष- महिला प्रत्याशी- जीतने वाली महिलाएं
1957 46 30
1962 42 25
1967 29 06
1969 20 04
1972 45 00
1977 96 13
1980 77 11
1985 103 15
1990 147 10
1995 263 11
2000 189 19
2005 (फरवरी) 234 03
2005 (अक्टूबर) 138 25
2010 307 34
2015 273 28
2020 370 26
इन आंकड़ों से साफ है कि महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उनकी जीत का प्रतिशत घटा है। जीत का प्रतिशत में विभाजन से पहले 15.3% रही, जबकि विभाजन के बाद महिलाओं के जीत की दर में काफी गिरावट होते हुए लगभग 8.8% हो गई है।
यह स्पष्ट करता है कि भले ही महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में ज्यादा उतर रही हैं, लेकिन उनकी सफलता दर गिर रही है। दलों को महिलाओं को केवल "आधी आबादी" कहकर वोट बैंक के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि उन्हें संगठन में नेतृत्व के मौके और ज्यादा टिकट देकर सशक्त बनाना चाहिए। अगर 2010 जैसा रिकॉर्ड फिर दोहराना है, तो दलों को रणनीतिक स्तर पर महिलाओं को चुनाव जिताने की तैयारी करनी होगी। अब देखना होगा कि आखिर बिहार में विधानसभा चुनाव में इस बार यानि 2025 में महिलाएं अपनी कितनी प्रतिशत भागिदारी को मजबूत करती है और चुनाव में एक अहम उम्मदवार के रुप में अपनी अस्तित्व को राजनीति में कितना स्थापित कर पाती है।