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Bihar Election 2025: आपदा से बचाव के लिए 2005 से पहले बिहार में कोई काम होता था क्या? सीएम नीतीश ने फिर गिनाईं उपलब्धियां

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण से पहले सीएम नीतीश कुमार ने 2005 से पहले की बदहाली का जिक्र करते हुए आपदा प्रबंधन में अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं।

Bihar Election 2025

07-Nov-2025 08:31 PM

By FIRST BIHAR

Bihar Election 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद अब दूसरे चरण के चुनाव की तैयारियां जोरों पर है। आगामी 11 नवंबर को राज्य की 122 सीटों पर वोटिंग कराई जाएगी। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार राज्य के लोगों को 2005 के पहले की बदहाली बता रहे हैं। सीएम नीतीश यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार किस तरह से विकास की ऊंचाईयों को छू रहा है।


दूसरे चरण की वोटिंग से पहले सीएम नीतीश ने एक बार फिर से विपक्ष को आईना दिखाने की कोशिश की है और 2005 में बिहार की सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेने के बाद कैसे हर क्षेत्र में विकास किया। आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में पिछले 20 वर्षों के भीतर किए गए विकास को उन्होंने राज्य की जनता को बताया है और कहा है कि लोग इसे याद रखे कि कैसे बिहार को बदहाली से बाहर निकाला है और राज्य के विकास के लिए लगातार काम किए जा रहे हैं।


सीएम नीतीश कुमार ने एक्स पर लिखा, “वर्ष 2005 से पहले राज्य में आपदा से बचाव के लिए कोई काम नहीं होता था। बाढ़, सुखाड़, अगलगी, भूकंप आदि से बचाव के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं किए जाते थे। उत्तर बिहार के लोग बाढ़ से, तो दक्षिण-पश्चिम बिहार के लोग सूखे से परेशान रहते थे, लेकिन तत्कालीन सरकार को इसकी तनिक भी चिंता नहीं होती थी। प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए संसाधनों का घोर अभाव था। आपदा के नाम पर सरकारी खजाने में जमकर लूट-खसोट होती थी। बाढ़ पीड़ितों को जो थोड़ा बहुत मिलता था, उसके लिए भी उन्हें महीनों तक मशक्कत करनी पड़ती थी। सत्ता में बैठे लोग बाढ़ पीड़ित लोगों तक राहत-सामग्री पहुंचाने के नाम पर करोड़ों रुपए डकार गए थे। तब बाढ़ राहत घोटाले की चर्चा देश भर के अखबारों की सुर्खियां बनती थीं।


24 नवंबर 2005 को राज्य में जब नई सरकार का गठन हुआ, तो हमलोगों ने प्राथमिकता के आधार पर आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कई काम किए। सबसे पहले राज्य में हमलोगों ने अलग से आपदा प्रबंधन विभाग बनाया, ताकि आपदा से जुड़े हर तरह के काम एक ही छत के नीचे हो सके। वर्ष 2010 में आपदाओं के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) का सूत्रण किया गया, जिसमें बाढ़ एवं सुखाड़ की पूर्व तैयारियों, राहत एवं बचाव तथा बाढ़ एवं सुखाड़ के पश्चात् की जाने वाली कार्रवाइयों का स्पष्ट उल्लेख है। आपदा के वक्त बिना देर किए प्रभावित लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने की व्यवस्था की ताकि आपदा की घड़ी में लोगों को त्वरित राहत मिल सके। संकट के समय जरूरतमंद लोगों को तुरंत सूखा राहत सामग्री जैसे- चूड़ा, गुड़, आटा, चावल, दाल, चना, पीने के लिए पानी का पैकेट, जरूरी दवाइयां, तिरपाल, स्वच्छता किट, बाल्टी, साबुन, मोमबत्ती, माचिस और कपड़े जैसी बुनियादी घरेलू सामान पहुंचाने का इंतजाम किया गया। इसके साथ ही बाढ़ पीड़ित परिवारों को हमलोगों ने तत्काल एक क्विंटल अनाज देना शुरू किया। उस वक्त कुछ लोग ‘क्विंटलिया बाबा‘ कहने लगे थे। साथ ही प्रभावित लोगों के लिए सामुदायिक रसोई की भी व्यवस्था की जाती है।


हमलोग 2007 से ही बाढ़ पीड़ितों की कठिनाइयों को देखते हुए आनुग्रहिक अनुदान देना शुरू किया, जो अब बढ़कर 7,000 रुपए हो चुका है, जो सीधे बाढ़ प्रभावित लोगों के खाते में डी०बी०टी० के माध्यम से भेज दी जाती है। हमलोगों का यह मानना है कि राज्य के खजाने पर पहला अधिकार आपदा पीड़ितों का है। ऐसे में आपदा की घड़ी में लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े, इसका हमलोग पूरा ख्याल रखते हैं।


प्रभावित इलाकों के लोगों के लिए सुरक्षित स्थान पर राहत शिविर बनाकर उनके लिए रसोई की व्यवस्था की जाती है, जहां खाने-पीने की पूरी व्यवस्था रहती है। राहत कैंपों में साफ-सफाई एवं भोजन की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। बाढ़ पीड़ितों के लिए सुबह का नाश्ता, दिन एवं रात्रि का पौष्टिक भोजन, बच्चों के लिए दूध, महिलाओं के लिए सैनेटरी नैपकिन आदि की व्यवस्था भी की जाती है। राहत शिविरों में बाढ़ पीड़ितों के स्वास्थ्य की देखभाल हेतु चिकित्सकों के नेतृत्व में चिकित्सा शिविर लगाकर बाढ़ पीड़ितों के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखा जाता है। छोटे बच्चों के लिए राहत शिविरों में आंगनबाड़ी केन्द्रों का भी संचालन कराया जाता है।


बाढ़ राहत शिविरों में शरण लेने वाले लोगों के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष से वस्त्र तथा बर्तन के साथ-साथ साबुन, तेल, कंघी आदि की व्यवस्था की जाती है। साथ ही बाढ़ अवधि में आबादी निष्क्रमण के दौरान नाव पर, अस्पताल में अथवा राहत शिविरों में जन्म लेने वाले प्रत्येक नवजात बच्चे के लिए 10 हजार रूपए एवं प्रत्येक नवजात बच्ची के लिए 15 हजार रूपए की राशि प्रदान की जाती है।


बाढ़ के दौरान बड़ी संख्या में पशु भी प्रभावित होते हैं। बाढ़ राहत शिविरों के समीप पशु राहत शिविरों का भी संचालन किया जाता है, जहां पशुओं के लिए चारा, पानी एवं चिकित्सा की उपयुक्त व्यवस्था रहती है। पशु शिविरों के अतिरिक्त बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में चलंत पशु चिकित्सा दल की भी प्रतिनियुक्ति की जाती है।


बरसात की आहट के साथ ही उत्तर बिहार में नेपाल से सटे हिमालय से निकलने वाली नदियों कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती और महानंदा नदी पर संबंधित विभागों के अधिकारियों को समुचित संसाधन उपलब्ध कराकर सतर्कता बरतने के निर्देश जारी कर दिए जाते हैं, ताकि अचानक इन नदियों में अधिक पानी आने पर संपत्ति, जान-माल और कृषि को होने वाले नुकसान कम किया जा सके। इसी प्रकार से सूखा प्रभावित दक्षिण-पश्चिम बिहार विशेषकर गया, नवादा, रोहतास और औरंगाबाद में कम वर्षापात की स्थिति को भांपते हुए जल संकट की स्थिति से निपटने के उपाय किए गए हैं। इसी तरह से अग्निकांड और भूकंप आने पर बचाव के लिए भी कई वैज्ञानिक उपाय किए गए।


आपदा से बचाव के लिए हमलोगों ने वर्ष 2007 में आपदा प्रबंधन अधिनियम-2005 की धारा 14 के तहत बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (BSDMA) का गठन किया। इसका मुख्य उद्देश्य आपदा प्रबंधन के लिए एक समग्र, सक्रिय और प्रौद्योगिकी-संचालित रणनीति विकसित कर एक सुरक्षित और आपदा प्रतिरोधी बिहार का निर्माण करना था। हमलोगों ने राज्य में बाढ़ से आपदा के समय लोगों के जानमाल की सुरक्षा के लिए कई उपाय किए हैं। वर्ष 2010 में नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (NDRF) की तर्ज पर राज्य में अपने स्तर से स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (SDRF) का गठन किया। एस०डी०आर०एफ० राज्य में बाढ़, भूकंप, आग और अन्य प्राकृतिक व मानव-जनित आपदाओं के दौरान खोज, बचाव और राहत कार्यों में अपनी अहम भूमिका निभा रही है।


इसी प्रकार से हमलोगों ने वर्ष 2011 में सूखा प्रबंधन नीति बनाई, जिसमें कृषि और जल संसाधन विभाग के समन्वय के कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए। वर्ष 2012 में लागू किए गए दूसरे कृषि रोड मैप में सूखा-रोधी फसलों और जल-संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया। इसके साथ ही जल-संरक्षण और सिंचाई परियोजनाओं के तहत वर्ष 2019 में राज्य में ‘जल-जीवन-हरियाली अभियान‘ की शुरुआत की गई। इसका उद्देश्य सूखे से निपटने के लिए वर्षा जल संग्रहण, तालाब पुनर्जीवन, पौधारोपण और भू-जलस्तर को बढ़ाना है। राज्य में बड़ी संख्या में जल संरचनाओं जैसे तालाब, आहर, पईन, कुएं और सोख्ता का जीर्णोद्धार एवं निर्माण कराया गया है। इससे भू-जल स्तर में काफी सुधार हुआ है। सूखा प्रभावित जिलों में मिनी लिफ्ट सिंचाई परियोजनाएं और सौर पंप सेट भी लगाए जा रहे हैं, ताकि राज्य में ‘हर खेत तक सिंचाई का पानी' पहुंचाया जा सके, फसलों की अच्छी पैदावार हो सके और किसानों की आमदनी बढ़े। कृषकों के लिए डेडिकेटेड कृषि फीडर की व्यवस्था की गई है ताकि किसानों को सिंचाई हेतु अनवरत बिजली मिलती रहे।


बाढ़ की समस्या के निदान के लिए तथा सिंचाई सुविधाओं के विकास के लिए लगातार काम किया जा रहा है। मार्च 2025 तक कुल 370 किलोमीटर नए तटबंध बनाकर लगभग 14 लाख हेक्टेयर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को सुरक्षित किया गया है। इसके अतिरिक्त लगभग 600 किलोमीटर तटबंधों का उच्चीकरण एवं सुदृढ़ीकरण कराया गया है। अब तटबंध टूटने की घटनाएं कम हुई हैं, जिससे बाढ़ की समस्या से लोगों को राहत मिली है। पश्चिमी कोसी नहर परियोजना, कमला बराज परियोजना, टाल क्षेत्र विकास योजना, अधूरी पड़ी दुर्गावती सिंचाई परियोजना तथा नदियों से गाद निकासी योजना के क्रियान्वयन से लोगों को न सिर्फ बाढ़ की समस्या से निजात मिली है अपितु किसानों को सिंचाई की व्यापक सुविधा उपलब्ध हुई है।


इस प्रकार से राज्यवासियों को विभिन्न प्रकार की आपदाओं से बचाने के लिए हमलोगों ने जो काम किए हैं, उसे आपलोग याद रखिएगा। आगे भी हमलोग इसी तरह काम करते रहेंगे और बाढ़ का स्थाई समाधान सुनिश्चित करेंगे। हमलोग जो कहते हैं, उसे पूरा भी करते हैं। जय बिहार!”