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26-Dec-2024 10:04 PM
By First Bihar
इस साल प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी तक किया जाएगा। इस धार्मिक आयोजन में देश के 13 प्रमुख अखाड़ों के साधु-संत संगम में स्नान करेंगे। इन अखाड़ों में प्रमुख निरंजनी अखाड़ा है, जिसे भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में अद्वितीय परंपरा स्थापित करने वाला माना जाता है।
निरंजनी अखाड़ा: इतिहास और महत्व
निरंजनी अखाड़ा भारत के सबसे बड़े और प्रमुख अखाड़ों में से एक है। इसका मुख्य आश्रम हरिद्वार के मायापुर में स्थित है। इसे जूना अखाड़े के बाद सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली अखाड़ा माना जाता है। निरंजनी अखाड़ा भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय को अपना इष्टदेव मानता है।
अखाड़े की संपत्ति और संरचना
संपत्ति का विस्तार: प्रयागराज और आसपास के इलाकों में निरंजनी अखाड़े के मठ, मंदिर और जमीन की कीमत 300 करोड़ से अधिक है। अगर अन्य राज्यों की संपत्तियां भी जोड़ी जाएं, तो यह आंकड़ा 1000 करोड़ रुपये से अधिक हो जाता है।
सदस्यों की संख्या: अखाड़े में नागा संन्यासियों की संख्या 10,000 से अधिक है। महामंडलेश्वरों की संख्या 33 है, जबकि 1000 से ज्यादा महंत और श्रीमहंत भी इससे जुड़े हैं।
उच्च शिक्षित साधुओं का अखाड़ा
निरंजनी अखाड़ा साधु-संतों के उच्च शिक्षित होने के लिए भी जाना जाता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, यहां के करीब 70% साधु डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर और अन्य पेशेवर क्षेत्रों से जुड़े हैं। यह तथ्य इसे अन्य अखाड़ों से अलग बनाता है।
महाकुंभ में निरंजनी अखाड़ा की भूमिका
महाकुंभ के दौरान निरंजनी अखाड़ा की विशेष उपस्थिति रहेगी। अखाड़े के साधु-संत संगम में पवित्र स्नान करेंगे और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेंगे। इस आयोजन में भाग लेने के लिए अखाड़े के साधु-संत प्रयागराज में पहले ही पहुंचने लगे हैं।
प्रयागराज से अन्य राज्यों तक फैला है विस्तार
निरंजनी अखाड़े के मठ और आश्रम प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, मिर्जापुर, माउंट आबू, जयपुर, वाराणसी, नोएडा और वडोदरा सहित देश के कई शहरों में फैले हुए हैं।
महाकुंभ का महत्व और संदेश
महाकुंभ न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक भी है। निरंजनी अखाड़ा इस आयोजन में अपनी गहन धार्मिक परंपराओं और उच्च शिक्षित साधु-संतों के माध्यम से आस्था और शिक्षा का संगम प्रस्तुत करता है।
महाकुंभ से लौटते समय संगम का पवित्र जल और प्रसाद अपने साथ ले जाना शुभ माना जाता है। यह न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है, बल्कि घर की शांति और समृद्धि में भी सहायक होता है।