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03-Sep-2025 06:34 PM
By Viveka Nand
Bihar News: बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. चुनाव का बिगुल बजने से पहले पक्ष-विपक्ष के कई दल के नेताओं में शह-मात का खेल जारी है. एक दल का प्रदेश प्रवक्ता राष्ट्रीय प्रवक्ता को हड़का रहा तो सत्ताधारी दल की हालत भी कमोबेश वैसी ही है. सत्ताधारी जमात के एक दल के प्रवक्ता टीम में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा. वैसे तो यह दल राष्ट्रीय नहीं है बल्कि मजबूत क्षेत्रीय पार्टी है. इस दल में कई प्रवक्ता हैं, पर विपक्ष के प्रहार को रोकने में कामयाब नहीं हो पा रहे. ऐसा नहीं कि पार्टी में जानकार प्रवक्ताओं की कमी है। लेकिन यहां तो खेल ही अलग है। जो प्रवक्ता तथ्य और तर्क से मजबूत हैं उन्हें जानबूझकर किनारे किया जा रहा है। सत्ताधारी क्षेत्रीय पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता को लेकर भी प्रदेश प्रवक्ताओं में भारी रोष है.
सत्ताधारी जमात की एक बड़ी क्षेत्रीय पार्टी की प्रवक्ता टीम में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक ओर जहां दल के दूसरे सबसे बड़े नेता से पंगा लेने की वजह से प्रदेश प्रवक्ता के भविष्य को लेकर तरह-तरह की चर्चा चल रही है, दूसरी तरफ पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता को लेकर प्रदेश के अन्य प्रवक्ताओं में रोष का माहौल है. पार्टी के जानकार बताते हैं कि प्रवक्ताओं की नियुक्ति में सामाजिक समीकरण का पूरा ध्यान रखा गया, लेकिन उन्हें उचित फोरम पर भेजने में ना तो सामाजिक समीकरण का और न ही योग्यता को तरजीह दी जा रही है. बताया जाता है कि यहां सेटिंग-गेटिंग का फार्मूला चल रहा. इसी फार्मूले के तहत एक-दो प्रवक्ता राष्ट्रीय चैनलों की घेराबंदी किए रहते हैं ।
सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ताओं में ज्यादा रोष इस बात को लेकर है कि यही इक्के-दुक्के लोग स्क्रीन पर रोज दखते हैं, ऑनएयर बेइज्जत होते हैं , सवालों का सही जवाब नहीं दे पाते हैं. बिहार में चुनाव का माहौल है, ऐसे में पार्टी की रोज-रोज मिट्टी पलीद हो रही है . पार्टी के एक वरिष्ठत प्रवक्ता ने बताया कि हमारे राष्ट्रीय प्रवक्ता का शैक्षणिक बेस एकदम से कमजोर है. खुद को अपडेट रखने की कोशिश भी नहीं करते. हर दिन कई प्लेटफार्म पर जाकर रोज-रोज एक ही बात बोलते हैं. राष्ट्रीय प्रवक्ता के पास न कोई फैक्ट होता है न फिगर और न ही कोई नवीनता होती है. ऐसे में उन्हें एंकरों की डांट फटकार भी सुनना पड़ता है. विपक्ष के एक प्रवक्ता ने तो उन पर अपशब्दों का भी प्रयोग किया. इसके बाद भी उन पर कोई असर नहीं होता.
सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के बारे में एक प्रवक्ता ने मजाकिया अंदाज में कहा कि वह नाश्ता पानी साथ लेकर बैठते हैं. चाहे जितना भी डिबेट हो, सबको निबटा कर ही चैन से बैठते हैं. भले ही तथ्य और जानकारी दे पाएं या नहीं. अपनी पार्टी और सरकार के पक्ष में बात कह पाएं या नहीं. विपक्ष की घेराबंदी कर पाएँ या नहीं, उन्हें इन सब बातों से मतलब नहीं, उन्हें तो सिर्फ स्क्रीन पर दिखना चाहिए। वैसे डिबेट फेस करने के लिए एक से डेढ़ घंटा पढ़ना पड़ता है , एक से दो लंबा डिबेट में शामिल होने के बाद कोई भी प्रवक्ता मानसिक तौर पर थक जाता है. ये राष्ट्रीय प्रवक्ता तो तीन-चार -पांच पांच जगह डिबेट करते हैं.इसके पीछे इनमें असुरक्षा की भावना होती है. इन्हें लगता है कि अगर हम नहीं गए और कोई दूसरा तेजतर्रार प्रवक्ता चला गया तो कहीं वो हिट न कर जाए , और उनका बाजार न गिर जाए । यही वजह है कि वे डिबेट को छोड़ना नहीं चाहते.
बताया जाता है कि विशेष परिस्थितियों में अगर वह मौजूद नहीं हैं,तब कमजोर प्रवक्ताओं को राष्ट्रीय चैनलों तक भी भेज देते हैं, भले ही पार्टी की क्यों न भद्द पिट जाय। जानकारी के अनुसार, इन बातों को लेकर दो दिन पहले ही पार्टी कार्यालय में (कार्यकारी) नेता के सामने ही प्रवक्ताओं ने राष्ट्रीय प्रवक्ता की पोल खोलने का प्रयास किया था . एक प्रवक्ता ने बताया कि राष्ट्रीय प्रवक्ता की करतूत और उनके द्वारा पार्टी की भद्द पिटवाने वाले प्रमाण के साथ जल्द ही राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलकर उनकी पोल खोलेंगे.