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11-Oct-2025 09:26 AM
By First Bihar
Bihar Election 2025: बिहार की सियासत में एक बड़ा फेरबदल होने जा रहा है। चर्चित सीटों में से एक मोकामा विधानसभा पर एक बार फिर दिलचस्प राजनीतिक मुकाबले की स्थिति बन रही है। मोकामा के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद सूरजभान सिंह अपनी पत्नी व पूर्व सांसद वीणा देवी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में आज शामिल होने जा रहे हैं। पार्टी की सदस्यता उन्हें तेजस्वी यादव खुद दिलाएंगे। यह कदम विधानसभा चुनाव से पहले न केवल राजनीतिक समीकरणों को बदलने वाला है बल्कि तेजस्वी यादव की जातीय और सामाजिक रणनीति को भी नया आयाम देने वाला है। माना जा रहा है कि मोकामा सीट से अनंत सिंह के खिलाफ सूरजभान सिंह के परिवार का कोई सदस्य मैदान में उतर सकता है।
दरअसल, सूरजभान सिंह का मोकामा से गहरा रिश्ता रहा है। साल 2000 में वे जेल में रहते हुए भी मोकामा विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते थे। उन्होंने उस वक्त के कद्दावर मंत्री और अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को बड़े अंतर से हराया था। दिलीप सिंह लगातार 10 वर्षों से मोकामा सीट पर काबिज थे। इस जीत ने सूरजभान को न सिर्फ क्षेत्र का बल्कि पूरे बिहार का एक प्रभावशाली और बाहुबली नेता बना दिया।
इसके बाद सूरजभान रामविलास पासवान के साथ लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) में शामिल हुए और पार्टी के सबसे ताकतवर चेहरों में से एक बन गए। साल 2004 में वे बेगूसराय जिले की बलिया लोकसभा सीट से एलजेपी के टिकट पर सांसद बने। लेकिन सजायाफ्ता होने के कारण उन्हें सक्रिय राजनीति से दूर रहना पड़ा। इसके बाद उन्होंने 2014 में अपनी पत्नी वीणा देवी को मुंगेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया, जहां वह सांसद बनीं। 2019 में उनके भाई चंदन सिंह ने नवादा सीट से लोजपा के टिकट पर जीत दर्ज की। इस तरह सूरजभान के परिवार में अब तक तीन पूर्व सांसद रह चुके हैं।
वहीं, रामविलास पासवान के निधन के बाद जब एलजेपी दो भागों में बंट गई, तब सूरजभान सिंह और चंदन सिंह ने चिराग पासवान के बजाय पारस गुट का साथ दिया। मगर 2024 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने पारस को किनारे कर दिया, तो सूरजभान परिवार की राजनीतिक जमीन डगमगाने लगी। सूरजभान के सामने दो रास्ते थे या तो रालोजपा में रहकर साइडलाइन हो जाना, या फिर नई शुरुआत के लिए किसी मजबूत राजनीतिक दल का हाथ थामना। अंततः उन्होंने तेजस्वी यादव को चुना और अब वे राजद की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने जा रहे हैं।
तेजस्वी यादव की यह रणनीति बेहद सोची-समझी मानी जा रही है। वे लंबे समय से आरजेडी को केवल ‘माय समीकरण’ (मुस्लिम-यादव) तक सीमित रहने से बाहर निकालना चाहते हैं। लोकसभा चुनाव में उन्होंने कुशवाहा वोट बैंक में सेंधमारी की थी, जिससे शाहाबाद और मगध क्षेत्रों में एनडीए को नुकसान झेलना पड़ा। अब वे भूमिहार, राजपूत और अन्य सवर्ण वर्गों में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सूरजभान सिंह जैसे प्रभावशाली भूमिहार नेता के पार्टी में आने से आरजेडी को सवर्ण मतदाताओं में नई पहचान मिलने की उम्मीद है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सूरजभान सिंह का आरजेडी में आना सिर्फ एक व्यक्ति का दल बदल नहीं बल्कि बिहार के भूमिहार वोट बैंक में संभावित दरार का संकेत है। इससे एनडीए की अंदरूनी मुश्किलें बढ़ सकती हैं, खासकर तब जब पारस गुट भी अब महागठबंधन के जरिए अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सूरजभान सिंह परिवार का यह कदम राजद को न केवल सवर्ण चेहरा देगा, बल्कि मोकामा और आसपास के इलाकों में उसकी पकड़ को भी मजबूत करेगा। तेजस्वी यादव की “ए टू जेड पार्टी” बनाने की कोशिश अब ज़मीन पर दिखने लगी है और सूरजभान सिंह का शामिल होना इसी नई राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण है।