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07-Oct-2025 09:49 AM
By First Bihar
Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान होते ही राज्य की सियासत पूरी तरह गर्म हो गई है। दो चरणों में होने वाले इस चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने स्तर पर कमर कस ली है। जहां एनडीए और महागठबंधन अपनी पारंपरिक रणनीतियों के साथ जनता को लुभाने की तैयारी में जुटे हैं, वहीं जनसुराज अभियान के सूत्रधार और प्रसिद्ध चुनावी रणनीतिकार रह चुके प्रशांत किशोर ने एक बार फिर बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है।
दरअसल, सोमवार को पटना में पत्रकारों से बातचीत के दौरान प्रशांत किशोर ने ऐलान किया कि जनसुराज पार्टी इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी 9 अक्टूबर को अपने सभी उम्मीदवारों की सूची जारी करेगी, जिसमें उनका नाम भी शामिल होगा। हालांकि, उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वह किस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। प्रशांत किशोर के इस ऐलान के साथ ही बिहार की राजनीति में एक नया समीकरण बनने की संभावना तेज हो गई है।
चुनाव आयोग द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार, बिहार में दो चरणों में मतदान होंगे, पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को आयोजित किया जाएगा। मतगणना 14 नवंबर को होगी, जो पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस के दिन होगी। इस तारीख ने भी सियासी हलचल को और रोचक बना दिया है, क्योंकि राजनीतिक विश्लेषक इसे एक प्रतीकात्मक कदम के रूप में देख रहे हैं।
वहीं, पत्रकारों से बातचीत में प्रशांत किशोर ने दावा किया कि बिहार में इस बार जनता तीसरा विकल्प चुनेगी। उन्होंने कहा कि जनसुराज पार्टी को लगभग 28 प्रतिशत वोट मिलेंगे ये वही वोटर होंगे जिन्होंने न तो एनडीए को और न ही महागठबंधन को वोट दिया था। किशोर ने कहा, “पिछले चुनाव में दोनों गठबंधनों को मिलाकर लगभग 72 प्रतिशत वोट मिले थे। बाक़ी बचे हुए 28 प्रतिशत वोटर ऐसे हैं जो किसी भी गठबंधन से प्रभावित नहीं हैं। हमें उन्हीं लोगों का समर्थन मिलेगा। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर प्रशांत किशोर का यह दावा वास्तविकता में तब्दील होता है, तो बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। जनसुराज अगर 20 प्रतिशत से अधिक वोट भी हासिल कर लेती है, तो यह एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति होगी।
प्रशांत किशोर ने एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि “मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह नीतीश कुमार का आखिरी चुनाव है। जनवरी 2026 में वह अपने आवास एक अणे मार्ग में मकर संक्रांति नहीं मनाएंगे।”
उनके इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। किशोर का यह बयान इस ओर इशारा करता है कि चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन तय है। उन्होंने कहा कि जनता अब स्थायी नेतृत्व चाहती है, न कि बार-बार बदलने वाले गठबंधनों की राजनीति।
जनसुराज अभियान की शुरुआत प्रशांत किशोर ने 2022 में की थी, जब उन्होंने बिहार के 7000 से अधिक पंचायतों का दौरा कर जनता की समस्याओं को समझने की कोशिश की। उस समय से ही उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी राजनीति जाति या धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि विकास और सुशासन के मुद्दों पर केंद्रित है। अब जबकि चुनाव सिर पर है, जनसुराज की संगठनात्मक पकड़ काफी मजबूत मानी जा रही है। पार्टी ने कई सामाजिक वर्गों, शिक्षकों, बेरोजगार युवाओं, महिलाओं और किसानों को अपने साथ जोड़ने का दावा किया है।
बिहार की राजनीति में एनडीए और महागठबंधन के बीच अब तक सीधा मुकाबला रहा है। लेकिन प्रशांत किशोर के मैदान में आने से यह मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है। भाजपा और जदयू की ओर से जहां विकास और स्थिरता का मुद्दा उठाया जा रहा है, वहीं तेजस्वी यादव और कांग्रेस के नेतृत्व वाला महागठबंधन बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। ऐसे में प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी इन दोनों गठबंधनों के वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कर सकती है।
बिहार के मतदाता अब नई सोच और पारदर्शिता की उम्मीद कर रहे हैं। खासकर युवा वर्ग में प्रशांत किशोर की छवि एक ईमानदार और काम करने वाले नेता के रूप में बन रही है। सोशल मीडिया पर उनके अभियानों को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशांत किशोर अपने रणनीतिक अनुभव को राजनीतिक सफलता में बदल पाते हैं या नहीं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब सिर्फ एनडीए और महागठबंधन की लड़ाई नहीं रह गई है। जनसुराज पार्टी के प्रवेश से यह चुनाव नए समीकरणों और संभावनाओं से भर गया है। प्रशांत किशोर के ऐलान ने जहां सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है, वहीं जनता के बीच एक नई चर्चा शुरू हो गई है, क्या बिहार को तीसरा विकल्प मिलेगा? 9 अक्टूबर को जब जनसुराज अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करेगी, तब इस सवाल का आधा जवाब मिल जाएगा। लेकिन असली फैसला तो नवंबर में जनता ही करेगी, जब बिहार की सियासत एक नए मोड़ पर खड़ी होगी।