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09-Nov-2025 11:32 AM
By First Bihar
Bihar Chunav : बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण के प्रचार का शोर रविवार को थम जाएगा। 11 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले सियासी माहौल अपने चरम पर है। इसी बीच राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने एक विशेष इंटरव्यू में बड़ा बयान दिया है। स्वास्थ्य कारणों से प्रचार से दूर रहने वाले लालू ने कहा कि इस बार बिहार चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है और यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो राज्य से बेरोजगारी को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएगी।
लालू यादव ने यह बातचीत अपनी पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास, पटना स्थित 10 सर्कुलर रोड पर की। उन्होंने साफ कहा कि इस बार उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सत्ता से बाहर कर देगी। नीतीश कुमार के साथ दोबारा गठबंधन की संभावना पर सवाल पूछे जाने पर लालू यादव ने कहा, “अब हम नीतीश कुमार को स्वीकार नहीं करेंगे। उनका भरोसा कई बार टूट चुका है। हम उनके संपर्क में नहीं हैं और अब कोई संभावना नहीं है।”
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से बिहार की राजनीति में इस बात की चर्चा तेज थी कि यदि चुनाव के बाद एनडीए जीतता है और भाजपा नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाती, तो क्या जेडीयू फिर से महागठबंधन की ओर रुख कर सकती है? इस अटकल को बल तब मिला जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बयान दिया था कि “एनडीए नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री नवनिर्वाचित विधायक तय करेंगे।” शाह के इस बयान के बाद राजनीतिक हलचल बढ़ गई थी। हालांकि बाद में भाजपा नेताओं ने स्पष्ट किया कि जीत के बाद नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे।
इसी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए लालू प्रसाद के ‘जंगलराज’ पर भी निशाना साधा। लेकिन सवाल अब भी कायम है कि यदि एनडीए बहुमत पाता है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा।
बिहार की राजनीति में लालू यादव और नीतीश कुमार की कहानी पिछले 35 वर्षों से चलती आ रही है। दोनों ने एक-दूसरे के सहयोगी और विरोधी, दोनों की भूमिका निभाई है। 2015 और 2022 में नीतीश ने भाजपा से अलग होकर लालू के साथ हाथ मिलाया था। उस दौरान तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। बदले में लालू ने मुख्यमंत्री पद पर दावा नहीं किया और नीतीश को खुला रास्ता दिया।
नीतीश कुमार की राजनीतिक रणनीति हमेशा से जातीय समीकरणों पर आधारित रही है। 2005 में उन्होंने लालू से अलग होकर कुर्मी, कोइरी, अत्यंत पिछड़ी जातियों और महादलितों का नया गठजोड़ तैयार किया। उनकी अपनी जाति कुर्मी की आबादी जहां महज 2.8 प्रतिशत है, वहीं यादवों की आबादी 14 प्रतिशत से अधिक है। भाजपा के ऊपरी जातियों के वोट बैंक के साथ नीतीश ने एक मजबूत गठबंधन बनाया, जिसने लंबे समय तक बिहार की सत्ता पर पकड़ बनाए रखी।
नीतीश की राजनीतिक सूझबूझ से लालू परिवार का यादव वोट बैंक भाजपा की ओर नहीं खिसका। इससे भाजपा को स्वतंत्र रूप से बढ़त नहीं मिली और नीतीश की भूमिका निर्णायक बनी रही। लेकिन अब जब लालू यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि वह नीतीश के साथ कभी हाथ नहीं मिलाएंगे, तो बिहार की राजनीति में नए समीकरण बनते नजर आ रहे हैं।
चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में लालू यादव का यह बयान न केवल महागठबंधन के समर्थकों में जोश भर सकता है, बल्कि एनडीए के भीतर भी रणनीतिक हलचल बढ़ा सकता है। मंगलवार को होने वाले मतदान से पहले यह बयान बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है।