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28-Sep-2025 07:28 AM
By First Bihar
Bihar News: बिहार की राजनीति में ईमानदारी की मिसाल कायम करने वाले चौधरी सलाउद्दीन का नाम आज भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र से लगभग तीन दशक तक विधायक रहने वाले सलाउद्दीन कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार थे। उन्होंने 1957 से 1985 तक (1969 को छोड़कर) लगातार चुनाव जीते और बिहार सरकार में मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
लेकिन उनकी सबसे बड़ी पहचान थी उनकी सादगी और कर्तव्यनिष्ठा। विधायक बनते ही उन्होंने फैसला लिया कि वे सरकारी वेतन नहीं लेंगे। इसके बजाय, वेतन पंजी पर महज एक रुपया का हस्ताक्षर करके उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से अपना कर्तव्य निभाया। यह कदम उस दौर में भी अनोखा था, जब जनप्रतिनिधि वेतन बढ़ाने की मांग में सड़क पर भी उतर आते थे।
चौधरी सलाउद्दीन का जन्म नवाब परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने कभी वैभव का लोभ नहीं किया। 1952 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में पहला चुनाव लड़ा, जहां कांग्रेस के जियालाल मंडल से हार गए। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस जॉइन की और 1957, 1962 में जीत हासिल की। 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के रामचंद्र प्रसाद से हारने के बाद 1972, 1977, 1980 और 1985 में फिर कमबैक किया।
बाद में सरकार और साथी नेताओं के दबाव में बाद में उन्हें पूरा वेतन लेना पड़ा, लेकिन वे इसे समाज के जरूरतमंदों पर खर्च कर देते थे। उनकी यह नीति न सिर्फ व्यक्तिगत सादगी की मिसाल थी, बल्कि राजनीति में नैतिकता का प्रतीक भी बनी। आज के दौर में, जब विधायक वेतन और भत्तों की बढ़ोतरी की बात करते हैं, सलाउद्दीन की यह कहानी प्रेरणा देती है।
सलाउद्दीन सिर्फ विधायक या मंत्री ही नहीं थे, बल्कि सामाजिक कार्यों के सच्चे सिपाही थे। उन्होंने क्षेत्र में विकास कार्यों को गति दी। गरीबों, किसानों और अल्पसंख्यकों के लिए उनके कल्याणकारी प्रयास आज भी याद किए जाते हैं। सहरसा और आसपास के इलाकों में उनकी छवि एक ऐसे नेता की थी, जो सत्ता के लिए नहीं, सेवा के लिए जीता था। वरिष्ठ कांग्रेस नेता बीरेंद्र कुमार झा अनीश कहते हैं कि आज राजनीतिक मूल्यों के ह्रास के दौर में नई पीढ़ी को सलाउद्दीन जैसे नेताओं से सीखना चाहिए। उनकी ईमानदारी ने न सिर्फ कांग्रेस को मजबूत किया, बल्कि बिहार की राजनीति को एक नई दिशा भी दी।
चौधरी सलाउद्दीन का राजनीतिक सफर उनके परिवार में भी जारी रहा। उनके बेटे चौधरी महबूब अली कैशर विधायक, मंत्री और सांसद बने। वर्तमान में पौत्र चौधरी युसुफ सलाउद्दीन राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक हैं। इन सभी को दादा-बाबा की विरासत का फायदा मिला, लेकिन सलाउद्दीन की असली विरासत उनकी निस्वार्थ सेवा है। बिहार जैसे राज्य में, जहां भ्रष्टाचार की खबरें आम हैं, सलाउद्दीन की कहानी बताती है कि सच्ची राजनीति सेवा से ही संभव है। उनकी यादें आज भी सिमरी बख्तियारपुर की गलियों में गूंजती हैं।