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21-Dec-2025 04:00 PM
By First Bihar
government job joining rules : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जुड़े मुस्लिम महिला डॉक्टर नुसरत प्रवीण के हिजाब विवाद ने एक बार फिर सुर्खियां बटोर ली हैं। इस पूरे मामले में अब नया मोड़ तब आया, जब डॉक्टर नुसरत प्रवीण ने नौकरी जॉइनिंग की आखिरी तारीख बीत जाने के बाद भी सरकारी सेवा में योगदान नहीं दिया। ऐसे में आम लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि अगर कोई उम्मीदवार सरकारी नौकरी का ऑफर लेटर मिलने के बाद भी जॉइन नहीं करता है तो उसका क्या होता है, नियम क्या कहते हैं और भविष्य पर इसका कितना असर पड़ता है।
दरअसल, सरकारी नौकरी का ऑफर लेटर किसी स्थायी अनुबंध की तरह नहीं होता, बल्कि इसके साथ स्पष्ट शर्तें जुड़ी होती हैं। हर ऑफर लेटर में यह साफ तौर पर उल्लेख किया जाता है कि उम्मीदवार को किस तारीख तक जॉइन करना अनिवार्य है। आमतौर पर यह समय सीमा 15 दिन से लेकर 2 महीने तक की होती है। यह अवधि विभाग, पद और भर्ती प्रक्रिया के अनुसार तय की जाती है। कई बार उम्मीदवार यह मान लेते हैं कि ऑफर लेटर मिलने के बाद वे कभी भी जॉइन कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।
डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (DoPT) के नियमों के अनुसार, यदि कोई उम्मीदवार तय समय सीमा के भीतर जॉइन नहीं करता है, तो उसका ऑफर लेटर स्वतः वैध नहीं रहता। ज्यादातर मामलों में विभाग की ओर से अलग से कोई नोटिस या चेतावनी भी नहीं दी जाती। यदि ऑफर लेटर जारी होने की तारीख से छह महीने के भीतर उम्मीदवार ने जॉइनिंग नहीं की, तो अपॉइंटमेंट अपने आप समाप्त माना जाता है। यानी उम्मीदवार का नाम उस पद के लिए चयनित सूची से हटा दिया जाता है।
अगर कोई उम्मीदवार ऑफर लेटर में दी गई आखिरी जॉइनिंग तारीख तक ड्यूटी पर उपस्थित नहीं होता है, तो विभाग आमतौर पर उसकी उम्मीदवारी रद्द कर देता है। इसके बाद उस पद को रिक्त मान लिया जाता है और भर्ती करने वाली अथॉरिटी वेटिंग लिस्ट में मौजूद अगले योग्य उम्मीदवार को मौका देती है। कई बार, यदि वेटिंग लिस्ट नहीं होती, तो अगली भर्ती प्रक्रिया या अगले चयनित उम्मीदवार की सिफारिश की जाती है। खास बात यह है कि ऐसे मामलों में अलग से टर्मिनेशन ऑर्डर जारी करने की आवश्यकता नहीं होती। सिर्फ जॉइन न करना ही पर्याप्त आधार माना जाता है।
हालांकि, कुछ परिस्थितियों में उम्मीदवार को जॉइनिंग के लिए अतिरिक्त समय भी दिया जा सकता है। लेकिन यह एक्सटेंशन अपने आप नहीं मिलता। इसके लिए उम्मीदवार को विभाग के सामने ठोस और उचित कारण प्रस्तुत करना होता है। जैसे गंभीर मेडिकल समस्या, परिवार में कोई आपात स्थिति, या ऐसी निजी मजबूरी जिसे टाला नहीं जा सकता। इन सभी मामलों में उम्मीदवार को लिखित आवेदन देना अनिवार्य होता है। विभाग आमतौर पर 1 से 3 महीने तक का एक्सटेंशन देता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह अवधि 6 महीने तक भी बढ़ाई जा सकती है, लेकिन यह पूरी तरह विभाग के विवेक पर निर्भर करता है।
अब सबसे अहम सवाल यह है कि सरकारी नौकरी जॉइन न करने का भविष्य पर क्या असर पड़ता है। आम धारणा के विपरीत, ज्यादातर मामलों में इसका उम्मीदवार के करियर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। जो उम्मीदवार एक सरकारी नौकरी जॉइन नहीं करता, वह भविष्य में यूपीएससी, एसएससी, राज्य लोक सेवा आयोग या किसी अन्य भर्ती संस्था द्वारा आयोजित परीक्षाओं में बैठने के लिए पूरी तरह से पात्र रहता है। सिर्फ एक ऑफर लेटर छोड़ देने पर किसी तरह की ब्लैकलिस्टिंग का प्रावधान नहीं है।
हालांकि, यदि किसी मामले में यह साबित हो जाए कि उम्मीदवार ने जानबूझकर गलत जानकारी दी थी, दस्तावेजों में धोखाधड़ी की थी या चयन प्रक्रिया के दौरान किसी तरह की अनियमितता की है, तो स्थिति अलग हो सकती है। ऐसे मामलों में संबंधित विभाग या भर्ती एजेंसी उम्मीदवार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती है, जिसमें भविष्य की भर्तियों पर रोक भी लग सकती है। लेकिन सामान्य परिस्थितियों में सिर्फ जॉइन न करने से ऐसा कुछ नहीं होता।
नुसरत प्रवीण के मामले को लेकर भी यही नियम लागू होते हैं। यदि उन्होंने निर्धारित समय सीमा के भीतर जॉइनिंग नहीं की और कोई वैध एक्सटेंशन नहीं लिया, तो उनका ऑफर स्वतः समाप्त माना जाएगा और संबंधित पद पर अगली प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि सरकारी नौकरी का ऑफर मिलना जितना बड़ी उपलब्धि है, उतना ही जरूरी है उससे जुड़ी शर्तों और नियमों को गंभीरता से समझना और समय पर निर्णय लेना।