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17-Dec-2025 08:30 AM
By First Bihar
Bihar News: बिहार में डेयरी उद्योग को मजबूत बनाने और पशुपालकों की आय बढ़ाने के लिए बिहार पशु विश्वविद्यालय ने सफेद क्रांति का ब्लूप्रिंट तैयार किया है। इसे विश्वविद्यालय के कुलपति और ‘मुर्रा मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से ख्यात पशु वैज्ञानिक डॉ. इंद्रजीत सिंह ने तैयार कराया है। ब्लूप्रिंट में राज्य के पशुपालकों को देसी गायों के साथ-साथ जर्सी गाय और भैंस पालन को बढ़ावा देने की सिफारिश की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, देसी गायों के साथ जर्सी गायों के पालन से पशुपालकों की आय में काफी इजाफा होगा। अमेरिका और कनाडा में होल्स्टीन फ्राइजियन (एचएफ) नस्ल की गाय के साथ जर्सी गाय पालन का सफल प्रयोग पहले ही हो चुका है। जर्सी गाय का आकार छोटा होने के कारण इसे पालने में लागत कम आती है और बीमारियों का जोखिम भी कम होता है। इसके साथ ही, उच्च गुणवत्ता वाला दूध उत्पादन संभव है।
राज्य के पशुपालकों के लिए पटना स्थित संजय गांधी डेयरी प्रौद्योगिकी संस्थान में एक मॉडल डेयरी फॉर्म तैयार किया जा रहा है। इस फार्म में देसी गायों के साथ जर्सी गायों को रखा जाएगा और इसकी क्षमता 2 लाख लीटर दूध उत्पादन की होगी। यहां गायों के भ्रूण पर वैज्ञानिक प्रयोग भी किए जा सकेंगे। इसके अलावा, बिहार में डेयरी खोलने वाले पशुपालकों को प्रशिक्षण देने की भी योजना है। डेयरी फार्म के लिए आवश्यक जर्सी गायें राज्य के बाहर से मंगाई गई हैं, ताकि उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके।
कुलपति डॉ. इंद्रजीत सिंह ने बताया कि यह ब्लूप्रिंट पहले पंजाब के डेयरी विकास की योजना के आधार पर तैयार किया गया था। अब इसे राज्य सरकार के समक्ष विचार के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। इस संबंध में कुलपति राज्य के पशुपालन मंत्री, कृषि मंत्री और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात कर ब्लूप्रिंट और पूरी योजना के दस्तावेज सौंपेंगे।
ब्लूप्रिंट में भैंस पालन को भी डेयरी ईकोसिस्टम का अहम हिस्सा बनाने पर जोर दिया गया है। भैंस में निवेश करने वाले पशुपालकों को लंबे समय में अधिक लाभ होने की संभावना है। एक भैंस अपने जीवनकाल में लगभग 18–19 बच्चे देती है और इसमें किए गए एक रुपये के निवेश पर 50–60 रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। बिहार पशु विश्वविद्यालय पशुपालकों के लिए उच्च गुणवत्ता की भैंसें केंद्रीय भैंस शोध संस्थान, हिसार से मंगाने की योजना भी बना रहा है। इस ब्लूप्रिंट से राज्य के पशुपालकों को आधुनिक डेयरी प्रबंधन, बेहतर नस्लों का पालन और वैज्ञानिक प्रशिक्षण मिलने से राज्य में डेयरी उद्योग को नई दिशा और आर्थिक समृद्धि मिल सकती है।