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02-Jun-2025 12:55 PM
By First Bihar
Bihar News: बिहार के भागलपुर जिले से एक भ्रष्टाचार का खेल उजागर हुआ है, जहां जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल (JLNMC) एक बार फिर प्रशासनिक लापरवाही और वित्तीय अनुशासन की अनदेखी को लेकर विवादों में घिर गया है। कुछ माह पूर्व नर्सों के वेतन से जुड़े कथित वित्तीय घोटाले की जांच अब तक पूरी नहीं हो सकी थी कि अब एसी की खरीद में अनियमितता का मामला सामने आया है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, समस्तीपुर की एक निजी एजेंसी को मई 2025 में ₹17.44 लाख की लागत से कुल 35 एयर कंडीशनर (एसी) की आपूर्ति का निर्देश दिया गया। 17 मई को अस्पताल अधीक्षक कार्यालय द्वारा जारी आदेश के मुताबिक, एजेंसी को 21 दिनों के भीतर 25 एसी की आपूर्ति करनी थी, जिनमें 15 स्प्लिट एसी और 20 विंडो एसी शामिल थे। स्प्लिट एसी की दर ₹41,500 और विंडो एसी की दर ₹37,000 तय की गई थी।
हालांकि, इस पूरे आदेश पर विवाद तब खड़ा हुआ जब यह सामने आया कि जिस एजेंसी को यह ठेका दिया गया था, उसका अनुबंध मार्च 2025 में ही समाप्त हो चुका था। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि बिना वैध अनुबंध के किस आधार पर एजेंसी को आदेश जारी किया गया? क्या अनुबंध का नवीनीकरण हुआ है या फिर यह आदेश नियमों की खुली अनदेखी करते हुए जारी किया गया?
इस मामले पर जब पूर्व अधीक्षक डॉ. उदय नारायण सिंह से बातचीत की गई तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उनके कार्यकाल में इस एजेंसी से किसी भी प्रकार की एसी खरीद नहीं की गई थी। उन्होंने बताया कि एआरटीसी सेंटर के लिए केवल एक एसी खरीदा गया था, वह भी विभागीय फंड और क्रय समिति की स्वीकृति से हुआ था। उन्होंने यह भी जोड़ा कि मार्च में जब वे प्राचार्य बने थे, तब अस्पताल में एसी की कोई तत्काल आवश्यकता नहीं थी।
जब इस मुद्दे पर पूर्व अधीक्षक डॉ. हेमशंकर शर्मा से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई, तो उन्होंने खुद को मीटिंग में बताकर जवाब देने से परहेज किया। वहीं वर्तमान अधीक्षक डॉ. अविलेश कुमार से कई बार संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने किसी भी कॉल का जवाब नहीं दिया।
अस्पताल में एसी की संख्या को लेकर भी स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। अधीक्षक कार्यालय के पत्र में जहां 25 यूनिट की आपूर्ति का उल्लेख है, वहीं अस्पताल के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि 35 एसी तक की आपूर्ति पहले ही हो चुकी है। इस संख्या में अंतर को लेकर प्रशासन ने कोई स्पष्टिकरण नहीं दिया है, जिससे संदेह और गहराता जा रहा है।
यह मामला तब और अधिक गंभीर हो जाता है जब इसे पिछले मामलों की पृष्ठभूमि में देखा जाता है। पहले भी मेडिकल कॉलेज प्रशासन पर नर्सों के वेतन भुगतान में अनियमितता और नियमविरुद्ध निकासी का आरोप लग चुका है। उस मामले में भी फाइलें विभाग में लंबी अवधि तक लटकी रहीं और कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई।
अब जब एसी खरीद का यह नया मामला सामने आया है, तो अस्पताल प्रशासन की पारदर्शिता, जवाबदेही और वित्तीय अनुशासन को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अनुबंध समाप्त होने के बाद दिया गया आपूर्ति आदेश, अधिकारियों की चुप्पी, दस्तावेजों का अस्पष्ट रहना और एसी की संख्या में अंतर जैसी बातें इस पूरे मामले को और भी जटिल बना रही हैं।
फिलहाल यह भी स्पष्ट नहीं हो सका है कि एजेंसी को भुगतान की प्रक्रिया शुरू की गई है या नहीं। साथ ही यह जानकारी भी सामने नहीं आई है कि इस खरीद को विभागीय स्वीकृति प्राप्त है अथवा नहीं। यह भी अनिश्चित है कि क्रय समिति की बैठक इस आदेश से पहले हुई थी या नहीं। पूरे मामले में अब तक कोई आधिकारिक बयान अस्पताल प्रशासन या स्वास्थ्य विभाग की ओर से नहीं आया है, जिससे अस्पताल की कार्यप्रणाली पर और अधिक संदेह उत्पन्न हो रहा है। मामले की निष्पक्ष जांच और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी उठने लगी है।