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Bihar Unique Marriage: "जब ई-रिक्शा पर दुल्हनिया ले जाने आए दूल्हे राजा", बिहार में 11 जोड़ों की यह दहेज मुक्त शादी देश भर में चर्चा का विषय

Bihar Unique Marriage: सामूहिक विवाह में 11 जोड़ों ने रचाई दहेज मुक़्त शादी, ई-रिक्शा पर चढ़कर ब्याह रचाने पहुंचे सारे दूल्हे राजा, अब हर कोई कर रहा इस पहल की तारीफ, जो इस जिले में 2007 से चल रही।

Bihar Unique Marriage

06-May-2025 12:47 PM

By First Bihar

Bihar Unique Marriage: बांका जिले के रजौन प्रखंड का सोहानी गांव सोमवार की रात एक अनोखी मिसाल का गवाह बना। यहाँ कन्हैया मंडली और हरित रजौन संस्था ने मिलकर 11 जोड़ों की दहेज मुक्त सामूहिक शादी कराई। रात के सन्नाटे में जब पुनसिया गांव से बारात नाचते-गाते पहुंची, तो गाँव का माहौल उत्सव में बदल गया। दूल्हे ई-रिक्शा पर सवार होकर मंडप तक आए, और 11 अलग-अलग मंडपों में हिंदू रीति-रिवाजों के साथ फेरे और मंगलसूत्र की रस्में हुईं। यह आयोजन 2007 से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है, जो दहेज जैसी कुप्रथा को खत्म करने का संदेश देता है क्योंकि आज भी इस कुप्रथा की वजह से न जाने कितने बाप कर्जदार हो जाते हैं, कितने परिवार कमजोर हो जाते हैं।


बात करें इस चर्चित सामूहिक शादी की तो इसकी रौनक बारात आने के बाद देखते ही बनती थी। मेहमानों के लिए भव्य भोजन, ठंडे पेय और पानी का इंतजाम था। पूरी रात भजन-कीर्तन और जागरण की धुन गूंजती रही। कन्हैया सिंह, पर्यावरणविद डॉ. रवि रंजन और सुमित कुमार उर्फ बब्बू ने इस आयोजन को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हर मंडप में पंडितों ने वैदिक मंत्रों के साथ शादियां संपन्न कराईं। दहेज का नामोनिशान नहीं था औरहर जोड़े की मुस्कान बता रही थी कि सादगी में भी खुशी ढूंढी और पाई जा सकती है।


इस मौके पर बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार, बांका विधायक राम नारायण मंडल, जदयू के सुभानंद मुकेश और डॉ. हर्षवर्धन जैसे बड़े चेहरे मौजूद थे। उन्होंने दीप जलाकर कार्यक्रम शुरू किया और नवविवाहित जोड़ों को आशीर्वाद दिया। इन जोड़ों में गौरव-ममता, राकेश-साखो, सोनू-कल्पना, सुखनंदन-जुली, सूरज-नंदनी, रावण-करुणा, डब्लू-रंभा, सज्जन-नंदनी, सुरेंद्र-कंचन, कुंदन-मनीषा और जितेंद्र-सोनी शामिल थे।


सच कहा जाए तो ये आयोजन उन परिवारों के लिए वरदान है, जो आर्थिक तंगी की वजह से शादी का खर्च नहीं उठा पाते। दहेज मुक्त शादी की यह पहल बांका के लोगों में जागरूकता फैलाने का काम कर रही है। आयोजकों ने अगले साल और जोड़ों को इस मुहिम से जोड़ने का वादा किया है। इसमें कोई शक नहीं कि सोहानी गांव की यह परंपरा हर उस इंसान के लिए सबक है, जो दहेज के बोझ तले दबा है।