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महाशिवरात्रि पर पूजा विधि, पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व का संगम

महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों के लिए अत्यंत विशेष और पावन होता है। यह दिन भगवान शिव, मां पार्वती के विवाह की स्मृति में मनाया जाता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह महापर्व मनाया जाता है, और 2025 में यह शुभ दिन 26 फरवरी को पड़ रहा है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sat, 08 Feb 2025 07:18:24 AM IST

Mahashivratri 2025

Mahashivratri 2025 - फ़ोटो Mahashivratri 2025

Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों के लिए अत्यंत विशेष और पावन होता है। यह दिन भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह की स्मृति में मनाया जाता है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह महापर्व मनाया जाता है, और 2025 में यह शुभ दिन 26 फरवरी को पड़ रहा है।

इस पावन पर्व का न केवल पौराणिक महत्व है, बल्कि इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्व है। शिवरात्रि की रात पृथ्वी की स्थिति इस प्रकार होती है कि व्यक्ति के भीतर की ऊर्जा अपने प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर प्रवाहित होती है। यही कारण है कि इस दिन पूरी रात जागरण और भक्ति के साथ मनाया जाता है, जिससे ऊर्जाओं के इस प्रवाह को अवरुद्ध न होने दिया जाए।

शिवलिंग, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है, इस दिन विशेष पूजा और अभिषेक के माध्यम से ऊर्जा को संतुलित और सशक्त बनाता है। महाशिवरात्रि न केवल भगवान शिव की भक्ति का दिन है, बल्कि यह आंतरिक शुद्धिकरण, ऊर्जा प्रवाह और ब्रह्मांडीय शक्ति के साथ जुड़ने का एक अनूठा अवसर भी प्रदान करता है।


महाशिवरात्रि का पर्व और तिथि

महाशिवरात्रि का पर्व शिवभक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की स्मृति में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इसे अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। इस वर्ष 2025 में महाशिवरात्रि 26 फरवरी को मनाई जाएगी। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाए जाने वाला यह महापर्व शिवभक्तों के लिए विशेष धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व रखता है।


महाशिवरात्रि का पौराणिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। इस दिन को भगवान शिव के भक्त उनकी अनंत कृपा पाने और अपने जीवन में सुख-शांति स्थापित करने के लिए उपवास, पूजा-अर्चना और रात्रि जागरण करके मनाते हैं। शिवपुराण में उल्लेख है कि इस दिन शिवलिंग का अभिषेक करने और भगवान शिव की पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के पापों का नाश होता है।


महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व

महाशिवरात्रि का पर्व न केवल पौराणिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। शिव को "आदियोगी" यानी प्रथम वैज्ञानिक माना गया है। इस दिन पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध ऐसी स्थिति में होता है कि व्यक्ति के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर प्रवाहित होती है। यह ऊर्जा प्रवाह भौतिक और मानसिक शक्ति को संतुलित करता है।

शिवलिंग ऊर्जा का प्रतीक है। यह गोल और लंबवत आकार ब्रह्मांडीय शक्ति को सोखने और पुनः प्रेषित करने में सक्षम माना जाता है। महाशिवरात्रि की रात को शिवलिंग का जल और दूध से अभिषेक करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। रात्रि में पूजा और जागरण के दौरान ऊर्जा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए भजन-कीर्तन और ध्यान का विशेष महत्व होता है।


महाशिवरात्रि पर पूजा विधि

स्नान और व्रत का संकल्प: महाशिवरात्रि के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।

शिवलिंग का अभिषेक: शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, गंगाजल, और बेलपत्र चढ़ाएं।

ध्यान और मंत्रोच्चारण: "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें और ध्यान करें।

रात्रि जागरण: पूरी रात जागकर भगवान शिव की पूजा करें और भजन-कीर्तन करें।

भोग और दान: भगवान शिव को फल और मिठाई का भोग अर्पित करें और जरूरतमंदों को दान करें।


महाशिवरात्रि का संदेश

महाशिवरात्रि आत्मा की शुद्धि और ऊर्जा के जागरण का पर्व है। यह दिन जीवन में शिवत्व (धैर्य, सत्य और संतुलन) को आत्मसात करने का अवसर प्रदान करता है। शिव की भक्ति न केवल जीवन के कष्टों को समाप्त करती है, बल्कि मोक्ष के द्वार भी खोलती है।

महाशिवरात्रि का यह पावन पर्व शिवभक्तों के लिए असीम श्रद्धा, भक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। इस दिन पूरे भक्ति भाव से भगवान शिव की आराधना करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, सुख और समृद्धि का आगमन होता है।