PATNA: तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया की बर्बर हत्या के दोषी और बाहुबली आनंद मोहन समेत 27 अन्य बंदियों को जेल से रिहा करने का आदेश जारी कर दिया है। बिहार सरकार के विधि विभाग ने इस संबंध में नोटिफिकेशन भी जारी किया। नीतीश सरकार के इस फैसले को भाकपा माले ने भेदभावपूर्ण बताया। इसे लेकर माले विधायकों में खासा आक्रोश देखने को मिल रहा है। टाडा बंदियों की रिहाई की मांग को लेकर माले विधायकों ने 28 अप्रैल को पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष धरना देने का ऐलान किया है।14 साल की सजा काट चुके सभी दलित-गरीबों और शराबबंदी कानून के तहत जेलों में बंद दलित-गरीब कैदियों की रिहाई की भी मांग माले ने की है।
भाकपा-माले के मीडिया प्रभारी कुमार परवेज ने इस बात की जानकारी दी है। माले ने नीतीश सरकार से पूछा है कि भदासी (अरवल) कांड के टाडाबंदियों की रिहाई के सवाल पर सरकार चुप क्यों है? माले ने आरोप लगाया कि 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके बंदियों की रिहाई के मामले में सरकार का रवैया भेदभावपूर्ण है। इसलिए यह मांग की गयी है कि टाडा के तहत गलत तरीके से फंसाए गए भदासी कांड के शेष बचे बंदियों को अविलंब रिहा किया जाए। क्योंकि शेष बचे 6 टाडा बंदी दलित-अतिपिछड़े-पिछड़े समुदाय के है जो गंभीर रूप से बीमार हैं।
भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल ने सरकार द्वारा 14 वर्ष से अधिक की सजा काट चुके 27 बंदियों की रिहाई में बहुचर्चित भदासी (अरवल) कांड के शेष बचे 6 टाडाबंदियों को रिहा नहीं किए जाने पर गहरा क्षोभ प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि सरकार से पूछा है कि आखिर टाडाबंदियों की रिहाई पर उन्होंने चुप्पी क्यों साध रखी है? जबकि शेष बचे सभी 6 टाडा बंदी दलित-अतिपिछड़े व पिछड़े समुदाय के हैं और जिन्होंने कुल मिलाकर 22 साल की सजा काट ली है. यदि परिहार के साल भी जोड़ लिए जाएं तो यह अवधि 30 साल से अधिक हो जाती है. सब के सब बूढ़े हो चुके हैं और गंभीर रूप से बीमार हैं।
उन्होंने कहा कि भाकपा-माले विधायक दल ने विधानसभा सत्र के दौरान और कुछ दिन पहले ही टाडा बंदियों की रिहाई की मांग पर मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और इससे संबंधित एक ज्ञापन भी सौंपा था. उम्मीद की जा रही थी कि सरकार उन्हें रिहा करेगी, लेकिन उसने उपेक्षा का रूख अपनाया. सरकार के इस भेदभावपूर्ण फैसले से न्याय की उम्मीद में बैठे उनके परिजनों और हम सबको गहरी निराशा हुई है। बता दें कि 1988 में घटित दुर्भाग्यपूर्ण भदासी कांड में अधिकांशतः दलित-अतिपिछड़े समुदाय से आने वाले 14 निर्दोष लोगों को फंसा दिया गया था. उनके ऊपर जनविरोधी टाडा कानून उस वक्त लाद दिया गया था, जब पूरे देश में वह निरस्त हो चुका था।
गौरतलब है कि 4 अगस्त 2003 को सबको आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई थी. 14 में अब महज 6 लोग ही बचे हुए हैं, बाकि लोगों की उचित इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है. इसमें अरवल के लोकप्रिय नेता शाह चांद, मदन सिंह, सोहराई चौधरी, बालेश्वर चौधरी, महंगू चौधरी और माधव चौधरी के नाम शामिल हैं. विदित हो कि माधव चौधरी की मौत अभी हाल ही में विगत 8 अप्रैल 2023 को इलाज के दौरान पीएमसीएच में हो गई. उनकी उम्र करीब 62 साल थी।
उन्होंने आगे कहा कि इसी मामले में एक टाडा बंदी त्रिभुवन शर्मा की रिहाई पटना उच्च न्यायालय के आदेश से 2020 में हुई. इसका मतलब है कि सरकार के पास कोई कानूनी अड़चन भी नहीं है. हमने मुख्यमंत्री से साफ कहा था कि जिस आधार पर त्रिभुवन शर्मा की रिहाई हुई है, उसी आधार पर शेष टाडाबंदियों को भी रिहा किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
6 बंदियों में डॉ. जगदीश यादव, चुरामन भगत, अरविंद चौधरी, अजित साव, श्याम चौधरी और लक्ष्मण साव के नाम शामिल हैं. इसकी पूरी संभावना है कि कुछ और लोगों की मौत जेल में ही हो जाए. फिलहाल डाॅ. जगदीश यादव, चुरामन भगत व लक्ष्मण साव गंभीर रूप से बीमार हैं और अस्पताल में एडमिट हैं।
सरकार की इस भेदभावपूर्ण कार्रवाई के खिलाफ आगामी 28 अप्रैल को भाकपा-माले के सभी विधायक पटना में एक दिन का सांकेतिक धरना देंगे और धरना के माध्यम से शेष बचे 6 टाडाबंदियों की रिहाई की मांग उठायेंगे.साथ ही, भाकपा-माले 14 साल की सजा काट चुके सभी दलित-गरीबों और शराबबंदी कानून के तहत जेलों में बंद दलित-गरीब कैदियों की रिहाई की भी मांग कर रहे हैं।