SIWAN : बिहार के सीवान जिला में शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बड़ी लापरवाही सामने आई है. आज मुख्यमंत्री के जनता दरबार में एक शख्स ने जिले के भगवानपुर हाट प्रखंड में हुई शिक्षक बहाली में बड़े फर्जीवाड़े की पोल खोलकर रख दी है. प्रखंड के मुंदीपुर गाँव के रहने वाले इस व्यक्ति ने यह आरोप लगाया है कि प्रखंड के शंकरपुर पंचायत में शिक्षक नियोजन में प्रवीण कुमार नाम के एक व्यक्ति ने नियोजन इकाई से मिली भगत करके 2016 में 2006 के पैनल में आवेदन पंजी, मेधा सूचि और काउंसिलिंग रजिस्टर में अपना नाम प्रविष्ट करा लिया जबकि वह 2006 के पैनल में आवेदक नहीं था. उन्होंने यह दावा किया कि जांच के क्रम में वो इस बात को साबित कर देंगे.
सीएम को दिए अपने आवेदन में उन्होंने बताया है कि इस संबंध में वो सीवान जिला के डीएम और डीपीओ को आवेदन दे लेकिन किसी ने भी संज्ञान नहीं लिया है. अपने आवेदन में सत्य प्रकाश ने लिखा है कि शिक्षक प्रवीण कुमार नवीन प्राथमिक विद्यालय, कोईरगांवा टोले मिश्रवलिया में पदस्थापित हैं. ग्राम पंचायत राज शंकरपुर के नियोजन इकाई के अंतर्गत इनकी बहाली हुई है. अपने आवेदन में उन्होंने शिक्षक प्रवीन कुमार पर यह आरोप लगाया है कि वर्ष 2012 के नियोजन में भी वो अभ्यर्थी थे जिसमें उन्होंने इंटरमिडिएट में अपना कुल मार्क्स 539 दर्शाया था और खुद को टीईटी पास भी बताया था. जबकि 2016 वाली प्रविष्टि में उन्होंने अपना मार्क्स 597 दर्शाया है. शिक्षक प्रवीण कुमार ने अपना वोकेशनल का मार्क्स जोड़ कर इतना दिखाया है. आवेदक के अनुसार उसके पास इस जानकारी से जुड़े सारे कागजात मौजूद हैं.
आवेदन में यह भी बताया गया है कि 2006 की वही मेधा सूचि 900 नंबर पर बनी है. उस स्थिति में प्रवीण कुमार का नंबर 539 ही होता है. जो लगभग 59.8 प्रतिशत है. जबकि उनकी बहाली 66.33 प्रतिशत पर हुई है. उन्होंने शिक्षक पर आरोप लगाया है कि नियोजन इकाई और प्राधिकार के साथ मिलीभगत प्रवीण कुमार ने फर्जी तरीके से अपनी बहाली करवाई है. उन्होंने बताया कि इस सम्बन्ध में शंकरपुर के नियोजन इकाई के पास भी आवेदन दिया था लेकिन उनके द्वारा किसी प्रकार की कारवाई नहीं की गई.
ऐसे में एक ही शिक्षक का एक ही नियोजन इकाई में दो विभिन्न नियोजन वर्ष में दो तरह का मार्क्स बताना और उसी आधार पर नौकरी में बने रहना, वेतन भी लेते रहना, तथा जिले के सभी पदाधिकारियों के संज्ञान में साक्ष्य के साथ लाने के बावजूद भी कार्रवाई का ना होना सारे पदाधिकारियों की लापरवाही या मिलीभगत के तरफ इशारा करता है. अब देखना है कि सुशासन की दावा करने वाली नीतीश सरकार में आवेदक सत्य प्रकाश को न्याय मिलता है या नहीं. क्योंकि जिस तरह आवेदक इतने लंबे समय से न्याय के लिए सरकारी कार्यालयों का चक्कर काट रहे हैं, उससे पता चलता है कि सीएम नीतीश के अफसर कितने लापरवाह हैं. अब जब खुद सीएम नीतीश के पास यह मामला पहुंचा है, तो देखना है कि अधिकारी इसको गंभीरता से लेते हैं या नहीं.