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संतान की दीर्घायु व खुशहाल जीवन के लिए माताओं ने रखा जितिया व्रत, कथा सुनने और पूजा-अर्चना के बाद कल पारण के साथ व्रत का होगा समापन

1st Bihar Published by: BADAL ROHAN Updated Wed, 29 Sep 2021 07:42:00 PM IST

संतान की दीर्घायु व खुशहाल जीवन के लिए माताओं ने रखा जितिया व्रत, कथा सुनने और पूजा-अर्चना के बाद कल पारण के साथ व्रत का होगा समापन

PATNA: हिंदू धर्म में जितिया व्रत का विशेष महत्व है। जितिया का त्योहार महिलाएं बड़ी उत्साह के साथ मनाती है। जितिया का त्योहार महिलाएं बहुत ही भक्तिभाव से साथ करती हैं। इसमें माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। जितिया व्रत के दौरान व्रत कथा सुनना बेहद लाभदायक होता है। संतान की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाने वाला व्रत जितिया आज है। पटना में आज शाम महिलाएं मंदिरों और घरों में पूजा करती नजर आईं। सबसे पहले वे एक जगह एकत्र हो गयी फिर कथा सुनने के बाद भगवान जीमूतवाहन की पूजा अर्चना की।


 जितिया व्रत के दौरान महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न जल ग्रहण किए इस व्रत को रखती हैं। मंगलवार को नहाय-खाय के साथ इसकी शुरुआत हुई थी। आज जितिया के दिन महिलाओं ने मंदिरों और अपने अपने घरों में पूजा अर्चना किया और संतान की दीर्घायू होने की कामना की। गुरुवार 30 सितंबर को पारण के साथ जितिया व्रत का समापन हो जाएगा। जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। लेकिन ज्यादात्तर लोग इसे जितिया के नाम से ही जानते हैं।


 इस व्रत को कर माताएं अपने बेटे-बेटियों की सुख-समृद्धि और उनके दीर्घायु जीवन की कामना करती हैं। इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा सुननें से जितिया व्रत कथा पढ़ने या सुनने से संतान की दीर्घायु, आरोग्य व सुखमय जीवन के संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है। इससे संतान को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है। इस व्रत को जिउतिया, जितिया, जीवित्पुत्रिका, जीमूतवाहन व्रत नाम से जाना जाता है। लेकिन ज्यादातर लोग इसे जितिया के नाम से ही जानते हैं। बच्चों के लिए रखा जाने वाला यह व्रत तीन दिनों तक चलता है।


 जितिया व्रत में पूरे दिन माताएं निराहार और निर्जला रहती हैं। शाम में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करती है। इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है। इनके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं और जितिया के अगले दिन पारण के बाद यथाशक्ति दान और दक्षिणा करती हैं। पारण के दिन प्रसाद और घर में बनाए गये भोजन को व्रती ग्रहण करती हैं।