MUZAFFARPUR: मुजफ्फरपुर में मोतियाबिंद ऑपरेशन मामले की जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक टीम का गठन किया था। पांच सदस्यीय टीम ने अपनी जांच रिपोर्ट में ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किए गए कमरे को संक्रमित माना है। वही जांच रिपोर्ट में स्टर्लाइजेशन में गड़बड़ी की बात भी सामने आई है। जिसके कारण लोगों की आंखों में इंफेक्शन हुआ और उनकी आंखों की रोशनी चली गयी।
गौरतलब है कि मुजफ्फरपुर के आई हॉस्पिटल में 22 नवंबर को 65 लोगों ने मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराया था। जिसके बाद से ही आंखों में तकलीफ होने लगी। समस्या इतनी बढ़ गयी कि लोगों के आंखों को निकालने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचा। अब तक करीब 17 लोगों के आंखों को निकाला जा चुका है। चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मियों की लापरवाही के कारण 17 लोगों की जिन्दगी में अंधेरा छा गया। अन्य मरीजों को बेहतर इलाज के लिए पटना भेजा गया है।
आंखों की रोशनी खोने वाले सभी लोग मेहनत-मजदूरी करने वाले हैं। इस लापरवाही के सामने आने के बाद से ही स्वास्थ्य महकमें में हड़कंप मच गया। स्वास्थ्य विभाग ने इसकी जांच के लिए एक टीम का गठन किया। मामले में प्राथमिकी दर्ज की गयी वही अस्पताल को सील कर दिया गया।
वही इस मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी हैं। इस मामले में अब तक राज्य सरकार ने क्या कार्रवाई की इसकी जानकारी भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने मांगी है। इस मामले पर प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से भी संज्ञान लिया गया। पीएमओ ने स्वास्थ्य विभाग से इस मामले में पूरी रिपोर्ट तलब की।
बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारी रविन्द्र नाथ चौधरी को मामले की जांच का जिम्मा सौंपा गया। मानवाधिकार के अधिवक्ता एसके झा की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय को मामले के संबंध में उचित कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा गया था। जिसके बाद पीएमओ ने संज्ञान लेते हुए यह कार्रवाई की।
मुजफ्फरपुर के आयुक्त, जिलाधिकारी, सिविल सर्जन समेत 23 लोगों पर इस मामले को लेकर परिवाद दायर किया गया। मुजफ्फरपुर में जो केस दर्ज किया गया है उसमें अस्पताल के सचिव और डॉक्टर दोनों को आरोपी बनाया गया। वही मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल को सील कर दिया गया। मुजफ्फरपुर मोतियाबिंद कांड को लेकर गुरुवार को बिहार विधान परिषद में भी खूब हंगामा हुआ था। जिसके बाद सरकार ने पीड़ितों का मुफ्त इलाज पटना के आईजीआईएमएस हॉस्पिटल में कराने का फैसला लिया।