DESK : चैत्र नवरात्रि का आज चौथा दिन है. आज हम मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की विधि विधान से पूजा-अर्चना करते है. कहा जाता है, मां कुष्मांडा संसार को अनेक कष्टों और विपदाओं से मुक्ति प्रदान करती हैं. अभी जो देश और दुनिया की हालत है उस में मां ही है जो अपने भक्तों के दुखों को दूर कर सकती है.
मां कुष्मांडा का स्वरूप
मां कुष्मांडा का दूसरा नाम अष्टभुजा भी है क्योंकि उनकी आठ भुजाएं हैं. मां के हाथों में धनुष, बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल है. वहीं एक हाथ में वे सिद्धियों और निधियों से युक्त जप की माला धारण करती हैं. उनकी मधुर मुस्कान हमें हंसते हुए कठिन से कठिन मार्ग पर चलकर सफलता पाने के लिए प्रेरित करती है. माता कुष्मांडा सिंह पर सवार हैं. असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए मां दुर्गा कुष्मांडा अवतार में प्रकट हुईं थी.
पूजा विधि
हर दिन की तरह मां की पूजा सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें. अगर संभव हो सके तो मां को लाल रंग के गुड़हल का पुष्प या फिर गुलाब का पुष्प अर्पित करें. माता को लाल रंग पुष्प अधिक प्रिय है. देवी मां को दही और हलवा का भोग लगाएं. पूजा के बाद दुर्गा चालीसा का पाठ और मां दुर्गा की आरती जरूर करनी चाहिए.
माता का मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
या
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कुष्मांडा की कथा
कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की है. ऐसी मान्यता है कि पूजा के दौरान उनकी कुम्हड़े की बलि दी जाए तो वे प्रसन्न होती हैं. ब्रह्माण्ड और कुम्हड़े से उनका जुड़ाव होने कारण वे कुष्मांडा के नाम से विख्यात हैं.