हड़ताल खत्म करेंगे बिहार के टीईटी शिक्षक, लेकिन सरकार के सामने रखी ये शर्त

हड़ताल खत्म करेंगे बिहार के टीईटी शिक्षक, लेकिन सरकार के सामने रखी ये शर्त

PATNA: बिहार के टीईटी शिक्षक कोरोना संकट के बीच हड़ताल खत्म करना चाहते हैं लेकिन संघ ने सरकार के सामने कुछ शर्त रखी है. अगर सरकार ने शर्ते मान ली तो हड़ताल जल्द ही खत्म हो जाएगा. इसको लेकर सरकार को पहल करनी होगी. संघ हड़ताल खत्म करने को तैयार है. 


टीईटी शिक्षक संघ के प्रदेश संयोजक अमित विक्रम ने कहा कि कि बिहार में लगभग पौने दो लाख नियमित शिक्षकों के पदों को रहस्मयी तरीके से डाईंग कैडर घोषित कर दिया गया. बिहार में 2006 के बाद से ही नियमित शिक्षकों के पद पर अचानक से बहाली बंद कर दी गयी. जबकि इसके लिए न तो किसी कमिटी और न ही किसी आयोग ने ऐसा सुझाव दिया था. शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित देश के लगभग सभी राज्यों में टीईटी शिक्षकों को नियमित शिक्षक के रूप में रखा गया है. बिहार में भी 2011 के नोटिफिकेशन में टीईटी शिक्षकों को नियुक्त करने की बात कही गई थी. परंतु सरकार ने एक सोची समझी रणनीति के तहत टीईटी शिक्षकों को भी नियोजित शिक्षक बना जो बिल्कुल गैरकानूनी है. इस संबंध में सरकार यह कहती है कि यह नियमित शिक्षकों का पद डाईंग कैडर हो गया है जबकि सरकार का यह कहना बिल्कुल असंवैधानिक है.


फऱवरी-मार्च का वेतन भुगतान करने की मांग

 उन्होंने सरकार से यह मांग की कि सरकार जल्द से जल्द टीईटी शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के कैडर में शामिल कर योग्य और प्रतिभावान शिक्षकों को उचित सम्मान प्रदान करे. यदि योग्यता की बात की जाए तो NCTE व RTE के प्रावधानों के अनुसार भी शिक्षक बनने के लिए टीईटी पास होना अनिवार्य है. हम उन सभी मापदंडों को भी पूरा करते हैं. उन्होंने कहा कि संघ का यह निर्णय है कि यदि सरकार नियमित शिक्षकों के डाईंग कैडर को पुनर्जीवित करें तो सवा लाख टीईटी शिक्षक हड़ताल स्थगित कर सकते हैं. साथ ही सरकार को अविलंब शिक्षकों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई वापस लेते हुए फरवरी एवं मार्च का वेतन भुगतान भी कर देना चाहिए.


सप्रीम कोर्ट के सुझाव को माने सरकार

संघ के प्रदेश महासचिव उदय शंकर सिंह, संगठन महामंत्री ज्ञानेश्वर शांडिल्य व कोषाध्यक्ष बलवंत सिंह ने बताया कि कई महीनों से बिहार के सवा लाख TET शिक्षक टीईटी शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले सहायक शिक्षक का दर्जा, वेतनमान व सेवाशर्त को लेकर आंदोलनरत हैं. माननीय उच्च न्यायालय पटना ने भी समान काम के बदले समान वेतन से सम्बंधित अपने न्यायिक निर्णय में नियोजित शिक्षकों के पक्ष में अपना फैसला दिया था लेकिन पटना उच्च न्यायालय के फैसले को नहीं मान कर बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर कर इसे चुनौती दिया, लेकिन 10 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया जिसके पैराग्राफ 78 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को स्पष्ट सुझाव दिया कि टीईटी शिक्षकों को बेहतर वेतन दिया जाना चाहिए परंतु राज्य सरकार शिक्षक विरोधी नीति कारण सुप्रीम कोर्ट के सुझावों को भी नहीं मान रही है.


27 फरवरी से हड़ताल पर शिक्षक

 संघ के प्रदेश सचिव सुबोध यादव एवं चंदन कुमार ने कहा कि टीईटी शिक्षक संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर बिहार के सवा लाख टीईटी शिक्षक 27 फरवरी से अपने न्यायोचित मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर है. इस से बिहार में पठन- पाठन का कार्य पूरी तरह से ठप हो गया है तथा मैट्रिक के उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में भी काफ़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है और स्थिति यह है कि अभी तक परीक्षाफल प्रकाशित नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा कि हमलोग विगत कई महीनों से धरना-प्रदर्शन, भिक्षाटन, सामूहिक मुंडन आदि प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी मांग करते आ रहे हैं. लेकिन सरकार हमारी मांगों को लगातार दरकिनार करती आ रही है. आज स्थिति यह है कि हजारों TET  के शिक्षक कम वेतन पर अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर नौकरी कर रहे हैं. घर परिवार से दूर इतनी दूरी पर कम वेतन में नौकरी करने में काफ़ी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ रहा है. जिसके कारण हमलोग लगातार कई वर्षों से सेवा शर्त की मांग भी कर रहे हैं. EPF के मामले में भी हमलोग उच्च न्यायालय पटना से केस जीते हुए हैं पर यह अहंकारी सरकार कुछ भी देना नहीं चाहती है.


यदि सरकार सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव,NCTE व RTE के तमाम मापदंडों को दरकिनार करती रही तो कोरोना संकट के बाद प्रदेश में एक ऐतिहासिक शिक्षक आंदोलन होगा जो सरकार को उखाड़ फेंकने की पृष्ठभूमि तैयार करेगा. TET शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देते हुए समान वेतनमान व समान सेवाशर्त प्रदान करें इसके लिए बिहार के लाखों TET शिक्षकों ने मुख्यमंत्री व राज्यपाल को पत्र लिखकर अपनी मांग से अवगत भी करवा दिया है. सरकार जल्द से जल्द हमारी मांगों को पूरा नहीं करती है तो इस ऐतिहासिक आंदोलन को नहीं रोका जा सकता है और इसके कारण बच्चों को जो नुकसान होगा इसकी सम्पूर्ण जवाबदेही सरकार की होगी.