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Bihar Chhath Festival : छठ पर्व में खुशियों पर छाया मातम: बिहार में डूबने से 83 लोगों की दर्दनाक मौत, कई की तलाश जारी

बिहार में छठ महापर्व की खुशियां मातम में बदल गईं। राज्यभर में डूबने की अलग-अलग घटनाओं में 83 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। श्रद्धालु अर्घ्य देते या घाट बनाते समय गहरे पानी में समा गए, जिससे कई परिवारों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 29 Oct 2025 08:30:20 AM IST

Bihar Chhath Festival : छठ पर्व में खुशियों पर छाया मातम: बिहार में डूबने से 83 लोगों की दर्दनाक मौत, कई की तलाश जारी

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Bihar Chhath Festival : बिहार के कई जिलों में छठ महापर्व की खुशियां इस बार दर्द और मातम में बदल गईं। भगवान भास्कर की उपासना के पावन पर्व के दौरान सोमवार और मंगलवार को पूरे राज्य में डूबने की घटनाओं ने लोगों को झकझोर दिया। जहां एक ओर श्रद्धालु घाटों पर सूर्य को अर्घ्य देने पहुंचे थे, वहीं कई परिवारों पर इस पर्व ने दुख का पहाड़ तोड़ दिया। ताजा आंकड़ों के अनुसार, राज्यभर में डूबने से अब तक 83 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कुछ लोगों की तलाश अभी भी जारी है।


राजधानी पटना इस हादसे का सबसे बड़ा गवाह बना। गंगा किनारे बने विभिन्न घाटों पर डूबने की घटनाओं में 15 लोग गहरे पानी में समा गए, जिनमें से नौ लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। जानकारी के मुताबिक, मोकामा में तीन, बाढ़, बिहटा और खगौल में दो-दो लोगों की जान चली गई। वहीं, मनेर में डूबे दो लोगों और अथमलगोला में एक युवक की तलाश अब तक जारी है। प्रशासन की ओर से एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार तलाशी अभियान में जुटी हैं।


खगौल और गोपालपुर में भी दर्दनाक घटनाएं हुईं। गोपालपुर के एक तालाब में डूबे युवक को ग्रामीणों ने बाहर निकालकर करीब एक घंटे तक सीपीआर देकर बचाने की कोशिश की, और आखिरकार उसकी जान बच गई। हालांकि अन्य स्थानों पर समय रहते मदद नहीं मिल पाने के कारण कई लोगों की जान नहीं बचाई जा सकी।


छठ पर्व के दौरान राज्य के विभिन्न हिस्सों से भी लगातार डूबने की खबरें आती रहीं। दक्षिण बिहार से 34, कोसी-सीमांचल और पूर्वी बिहार से 30, जबकि उत्तर बिहार से 19 लोगों की मौत हुई है। इनमें अधिकतर लोग छठ घाट तैयार करते समय, नहाने या अर्घ्य देने के दौरान गहरे पानी में चले गए।


वैशाली जिले के राघोपुर और महुआ में दो किशोर, छठ घाट बनाने के बाद नहाने के दौरान डूब गए। वहीं, महनार में एक छठव्रती महिला की जान चली गई। गोपालगंज जिले के भोरे थाने के दुबे जिगना गांव में दो, औरंगाबाद में दो, भोजपुर, बेगूसराय, नावानगर और रोहतास में एक-एक व्यक्ति की मौत की खबर है। छपरा में भी डूबने से एक व्यक्ति की जान चली गई।


छठ महापर्व पूरे बिहार की आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। लेकिन इस बार का पर्व कई परिवारों के लिए कभी न भूलने वाला दुख लेकर आया। जहां महिलाएं ‘सूर्यदेव’ से परिवार की सुख-समृद्धि की कामना कर रही थीं, वहीं घाटों पर कई घरों में मातम का माहौल बन गया। कई परिवारों के सदस्य, जो अर्घ्य देने या स्नान करने गए थे, वापस नहीं लौटे।


बढ़ती घटनाओं को देखते हुए राज्य सरकार ने सभी जिलों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। आपदा प्रबंधन विभाग ने बताया कि मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये का मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की गई है। साथ ही, जिला प्रशासन को निर्देश दिया गया है कि सभी प्रमुख घाटों पर सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत किया जाए और गहरे पानी वाले स्थानों को बैरिकेड किया जाए।


पटना जिला प्रशासन की ओर से बताया गया कि इस बार गंगा का जलस्तर सामान्य से कुछ अधिक था, जिसके कारण कई जगह घाट के किनारे गहरे हो गए थे। सुरक्षा के लिए पुलिस बल और गोताखोरों की तैनाती के बावजूद हादसों को रोका नहीं जा सका।


हर साल छठ पर्व पर बिहार के विभिन्न जिलों में डूबने की घटनाएं सामने आती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार भी जागरूकता और सतर्कता की कमी इन हादसों का बड़ा कारण रही। कई श्रद्धालु बिना सुरक्षा उपायों के घाटों पर चले जाते हैं। प्रशासन के मुताबिक, यदि श्रद्धालु तय सीमा के भीतर स्नान करें और बच्चों को अकेले पानी में न जाने दें, तो ऐसी घटनाओं को काफी हद तक रोका जा सकता है।


राज्यभर में इन घटनाओं के बाद शोक की लहर दौड़ गई है। मुख्यमंत्री और कई मंत्रियों ने ट्वीट कर मृतकों के प्रति संवेदना व्यक्त की है और परिवारों को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया है। वहीं, समाजसेवियों और स्थानीय संगठनों ने अपील की है कि छठ घाटों पर सुरक्षा के प्रति जागरूकता अभियान चलाया जाए ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी दोबारा न हो।


छठ महापर्व की पवित्रता और भक्ति के बीच यह त्रासदी बिहार के लिए गहरी चोट छोड़ गई है। श्रद्धालुओं की आस्था भले अडिग हो, लेकिन अब जरूरी है कि इस पर्व को सुरक्षित बनाने के लिए प्रशासन और समाज दोनों मिलकर ठोस कदम उठाएं — ताकि आने वाले वर्षों में छठ की आराधना सिर्फ भक्ति और खुशियों का प्रतीक बने, न कि किसी परिवार के लिए मातम की वजह।