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पटना नगर निगम में लूट राज? दागी कंपनी को ठेका देना चाह रही थी मेयर, बैठक में जमकर हंगामा, मेयर पुत्र का कारनामा फिर सामने आया

पटना नगर निगम की बैठक में भ्रष्टाचार और नियम उल्लंघन के आरोपों को लेकर भारी हंगामा हुआ. मेयर द्वारा दागी कंपनी को ठेका देने के प्रयास और मेयर पुत्र की भूमिका पर सवाल उठे हैं.

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 25 Jun 2025 10:04:34 PM IST

BIHAR

बैठक में भारी हंगामा - फ़ोटो GOOGLE

PATNA: कमीशनखोरी, भ्रष्टाचार जैसे बेहद संगीन आरोपों की रिपोर्ट के बावजूद पटना नगर निगम में लूट का खेल जारी है. पटना नगर निगम बोर्ड की बैठक में आज मेयर ने बिना कायदे-कानून का पालन किये दागी कंपनी को ठेका देने का प्रस्ताव पेश कर दिया. इसके बाद बैठक में जमकर हंगामा हो गया. मेयर की ओऱ से पेश प्रस्ताव पारित नहीं किये गये. 


खास बात ये भी रही कि कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मामलों के आरोपी मेयरपुत्र शिशिर कुमार बैठक वाले कमरे के बाहर डटे रहे. शिशिर कुमार के बारे में पटना नगर निगम के आयुक्त राज्य सरकार को लंबी चौड़ी रिपोर्ट भेज चुके हैं. इसमें विस्तार से ये जानकारी दी जा चुकी है कि कैसे शिशिर कुमार अवैध वसूली कर नगर निगम में ठेका पट्टा बांट रहे हैं. शिशिर कुमार पर निगम की महिला पदाधिकारी समेत दूसरे अधिकारियों के साथ गाली-गलौज करने के एफआईआर दर्ज हो चुके हैं. फिर भी वे नगर निगम की बैठक के बाहर मौजूद रहे. उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की टीम को बैठक में जाने से रोका. जबकि उन्हें बैठक के कवरेज के लिए बुलाया गया था. 


पटना निगम बोर्ड की बैठक में हंगामा

पटना नगर निगम बोर्ड की बुधवार को बैठक हुई. इसमें पार्षदों ने जमकर हंगामा किया. मेयर ने नियम कानून का उल्लंघन कर तीन प्रस्ताव पेश कर दिये. ऐसे में प्रस्ताव संख्या 123, 124 और 125 को लेकर जमकर बहसबाजी हुई. करीब 4 घंटे तक चली बैठक में तीखी बहस और हंगामा हुआ और बैठक बेनतीजा रही. इसके बाद मेयर सीता साहू ने इस बैठक को रद्द कर दिया है. पटना नगर निगम के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि बोर्ड की बैठक में एजेंडों की संपुष्टि नहीं हो सकी. जनहित को लेकर किसी भी एजेंडे पर मुहर नहीं लगी. मेयर ने अब अगली बैठक बैठक 1 जुलाई को तय की है. 


मेयर ने नियम कानून की धज्जियां उड़ायी

दरअसल नगर निगम के नियमों के मुताबिक निगम बोर्ड में कोई भी प्रस्ताव पेश करने से पहले उसे सशक्त स्थायी समिति के सामने लाया जाता है. सशक्त स्थायी समिति से प्रस्ताव पारित होने के बाद उसे नगर निगम बोर्ड की बैठक में रखा जाता है. वहां से पारित होने के बाद उस फैसले पर अमल होता है. लेकिन नगर निगम की मेयर ने बिना सशक्त कमेटी में चर्चा किये सीधे निगम बोर्ड की बैठक में प्रस्ताव पेश कर दिया.


समर्थक भी हो गये विरोधी

मेयर के इस कारनामे के बाद उनके कट्टर समर्थक माने जाने वाले वार्ड पार्षद भी विरोधी हो गये. मेयर खेमे में रहने वाले वार्ड पार्षद डॉ इंद्रदीप चंद्रवंशी और डॉ आशीष सिन्हा विपक्षी खेमे में दिखे. दोनों ने मेयर के प्रस्ताव पर जोरदार असहमति जताई. उन्होंने कहा कि इन एजेंडों पर कभी कोई चर्चा ही नहीं हुई है, कोई प्रस्ताव ही नहीं लाया गया है तो फिर इसे कैसे पास कर दिया जाए।


दागी कंपनी को ठेका देने की कवायद

वार्ड पार्षद डॉ इंद्रदीप चंद्रवंशी ने मीडिया को बताया कि तीन ऐसे निर्णय पर मुहर लगाने की बात कही गई, जिस पर कभी चर्चा ही नहीं हुई थी। इसमें सबसे पहला यह था कि सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि पटना नगर निगम द्वारा किसी भी तरह की योजना बिना सशक्त स्थायी समिति और निगम पार्षद से स्वीकृति प्राप्त किए बिना नहीं कराया जाए. जबकि न्यायालय में विचाराधीन मामलों पर निर्णय नहीं लिया जाता है. यह सीधा आदेश का उल्लंघन है.


वार्ड पार्षद इंद्रदीप चंद्रवंशी ने बताया कि मेयर ने अमेजिंग इंडिया कंपनी को फिर से स्मार्ट पार्किंग का ठेका देने का प्रस्ताव पेश कर दिया. जबकि अमेजिंग इंडिया कॉन्ट्रैक्टर्स प्रा.लि. नाजायज कामों में लिप्त था. उसके खिलाफ एफआईआर हो चुकी है. स्मार्ट पार्किंग के ठेके से बेदखल होने के बाद भी अमेजिंग इंडिया पार्किंग का पैसा वसूल रही थी. 


उस पर रोक लगाने के लिए जब नगर आयुक्त ने अपने रेवेन्यू ऑफिसर को भेजा तो उसका अपहरण कर हत्या करने की कोशिश की गई. इस वाकये के बाद कंपनी के खिलाफ FIR दर्ज कर इस एजेंसी को टर्मिनेट किया गया. अब मेयर सीता साहू इसी एजेंसी को फिर से बहाल करने की कवायद में लगी हैं. 


कोर्ट में भी दागी कंपनी को बचाने की कोशिश

नगर निगम की ओर से स्मार्ट पार्किंग से बेदखल किये जाने के बाद अमेजिंग इंडिया कोर्ट में गयी है. कोर्ट में अमेजिंग इंडिया के खिलाफ एडवोकेट प्रसून सिन्हा नगर निगम की ओर से केस लड़ रहे हैं. मेयर सीता साहू अब ये कोशिश कर रही हैं कि वकील को काम से हटा दिया जाये. लिहाजा बोर्ड की बैठक में पुराने वकील को काम से मुक्त कर नए अधिवक्ताओं के पैनल के गठन का प्रस्ताव दिया गया. ये बिल्कुल गलत है और इसपर कभी कोई चर्चा ही नहीं हुई थी.