CBI Raid: रक्षा मंत्रालय में तैनात आर्मी अफसर रिश्वत लेते गिरफ्तार, घर से 2.36 करोड़ नकद बरामद

केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने रक्षा मंत्रालय से जुड़े एक बड़े भ्रष्टाचार मामले में सख्त कार्रवाई करते हुए उत्पादन विभाग में तैनात लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा को रिश्वतखोरी के आरोप में गिरफ्तार किया है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Sun, 21 Dec 2025 08:54:39 AM IST

CBI Raid: रक्षा मंत्रालय में तैनात आर्मी अफसर रिश्वत लेते गिरफ्तार, घर से 2.36 करोड़ नकद बरामद

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Defence Ministry : केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने रक्षा मंत्रालय से जुड़े एक बड़े रिश्वतखोरी मामले का खुलासा करते हुए शनिवार को एक सेवारत आर्मी अफसर को गिरफ्तार किया है। यह कार्रवाई रक्षा उत्पादन से जुड़े संवेदनशील मामलों में भ्रष्टाचार को लेकर अब तक की अहम कार्रवाइयों में से एक मानी जा रही है। गिरफ्तार अधिकारी की पहचान लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा के रूप में हुई है, जो रक्षा मंत्रालय के उत्पादन विभाग में तैनात थे।


CBI के मुताबिक, लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा पर बेंगलुरु स्थित एक निजी कंपनी से 3 लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप है। यह रिश्वत कंपनी को रक्षा उत्पादों के निर्माण और निर्यात से जुड़े मामलों में अनुचित लाभ पहुंचाने के बदले दी गई थी। जांच एजेंसी ने शर्मा को रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद उनके ठिकानों पर व्यापक तलाशी अभियान चलाया, जिसमें भारी मात्रा में नकदी और आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किए गए।


CBI की छापेमारी के दौरान दिल्ली स्थित लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा के आवास से कुल 2.36 करोड़ रुपये नकद जब्त किए गए। इनमें 3 लाख रुपये वही बताए जा रहे हैं, जो रिश्वत की रकम थी, जबकि शेष राशि के वैध स्रोतों को लेकर अधिकारी संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। इसके अलावा कई दस्तावेज, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और अन्य सामग्री भी बरामद की गई है, जिनकी जांच की जा रही है।


इस मामले में CBI ने शर्मा की पत्नी कर्नल काजल बाली को भी आरोपी बनाया है। कर्नल काजल बाली वर्तमान में राजस्थान के श्रीगंगानगर स्थित डिवीजन ऑर्डनेंस यूनिट (DOU) में कमांडिंग ऑफिसर के पद पर तैनात हैं। जांच के दौरान श्रीगंगानगर में उनके आवास से 10 लाख रुपये नकद बरामद किए गए। CBI का कहना है कि इस नकदी के स्रोतों की भी जांच की जा रही है और मामले में उनकी भूमिका की गहराई से पड़ताल की जाएगी।


CBI ने इस केस में एक बिचौलिये विनोद कुमार को भी गिरफ्तार किया है। एजेंसी के अनुसार, विनोद कुमार ने बेंगलुरु की कंपनी के निर्देश पर 18 दिसंबर को लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा को 3 लाख रुपये की रिश्वत दी थी। विनोद कुमार कथित तौर पर कंपनी और सैन्य अधिकारियों के बीच संपर्क का काम करता था और अवैध लेन-देन की व्यवस्था करता था।


CBI सूत्रों के मुताबिक, यह मामला 19 दिसंबर को मिली एक गोपनीय सूचना के आधार पर दर्ज किया गया था। सूचना में बताया गया था कि एक लेफ्टिनेंट कर्नल रक्षा उत्पादों के निर्माण और निर्यात से जुड़ी निजी कंपनियों के साथ मिलकर उन्हें सरकारी प्रक्रियाओं में अनुचित लाभ दिलाने की साजिश रच रहे हैं। इसके बाद CBI ने जाल बिछाया और रिश्वत लेते समय कार्रवाई की।


जांच एजेंसी का दावा है कि जिस कंपनी से रिश्वत ली गई, वह मूल रूप से दुबई स्थित है। इस कंपनी के भारत में संचालन की जिम्मेदारी राजीव यादव और रवजीत सिंह नाम के दो लोगों के पास थी। ये दोनों लगातार लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा के संपर्क में थे और कंपनी के लिए विभिन्न सरकारी विभागों और मंत्रालयों से अवैध फायदे हासिल करने की कोशिश कर रहे थे। CBI इन दोनों की भूमिका की भी जांच कर रही है।


मामले के खुलासे के बाद CBI ने दिल्ली, श्रीगंगानगर, बेंगलुरु और जम्मू समेत कई स्थानों पर एक साथ तलाशी अभियान चलाया। दिल्ली स्थित आवास से 2.23 करोड़ रुपये नकद, श्रीगंगानगर में 10 लाख रुपये और अन्य जगहों से महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किए गए हैं। अधिकारियों के अनुसार, लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा और उनकी पत्नी के कार्यालयों में भी तलाशी की कार्रवाई जारी है।


गिरफ्तार किए गए लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा और बिचौलिया विनोद कुमार को 20 दिसंबर को अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को 23 दिसंबर तक CBI की हिरासत में भेज दिया गया है। एजेंसी का कहना है कि इस दौरान उनसे पूछताछ कर नेटवर्क से जुड़े अन्य लोगों की पहचान की जाएगी।


यह मामला ऐसे समय सामने आया है, जब रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में बड़े पैमाने पर हथियारों और सैन्य उपकरणों की खरीद को मंजूरी दी है। अक्टूबर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) की बैठक में करीब 79,000 करोड़ रुपये के एडवांस हथियार और सैन्य उपकरण खरीदने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई थी। इससे पहले 5 अगस्त को भी लगभग 67,000 करोड़ रुपये के रक्षा सौदों को मंजूरी मिली थी। ऐसे में इस तरह का भ्रष्टाचार का मामला सामने आना रक्षा सौदों की पारदर्शिता और निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े करता है।