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21-Dec-2025 02:57 PM
By First Bihar
Kalpavas Rituals: हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास को आध्यात्मिक साधना, तप और आत्मशुद्धि का महीना माना गया है। शास्त्रों और पुराणों में इसे अत्यंत पवित्र बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मास में किए गए जप, तप, दान और स्नान का पुण्य अक्षय होता है, यानी इसका फल कभी समाप्त नहीं होता। माघ मास में विशेष रूप से प्रयागराज के त्रिवेणी संगम तट पर कल्पवास का आयोजन किया जाता है, जो साधना और ब्रह्मचर्य का एक अनूठा अनुभव है। वर्ष 2026 में माघ मास की शुरुआत 4 जनवरी से होगी, और यह पूर्णिमा तक चलेगा।
कल्पवास का अर्थ है ‘कल्प’ यानी निश्चित काल और ‘वास’ यानी निवास। आध्यात्मिक दृष्टि से यह वह समय है जब व्यक्ति सांसारिक मोह-माया और भोग-विलास से दूरी बनाकर ईश्वर की उपासना में लीन रहता है। परंपरागत रूप से यह पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक चलता है, लेकिन श्रद्धालु अपनी सामर्थ्य के अनुसार 5, 11 या 21 दिनों के लिए भी संकल्प ले सकते हैं।
कल्पवास के दौरान साधक को नदी किनारे फूस की कुटिया में रहना होता है। प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा जल से स्नान, सात्विक भोजन, पूजा और भजन-कीर्तन अनिवार्य है। इस अवधि में नशा, क्रोध, झूठ, कटु वाणी और सांसारिक भोगों का पूर्ण त्याग करना आवश्यक है। तुलसी के पौधे की पूजा और संतों के सत्संग का पालन भी नियमों में शामिल है।
माघ स्नान की प्रमुख तिथियां इस प्रकार हैं: पौष पूर्णिमा– 3 जनवरी 2026, मकर संक्रांति – 15 जनवरी 2026, मौनी अमावस्या – 18 जनवरी 2026, माघ पूर्णिमा – 1 फरवरी 2026। शास्त्रों के अनुसार कल्पवास की अवधि पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक होती है। वर्ष 2026 में यह 3 जनवरी से शुरू होकर 1 फरवरी 2026 को समाप्त होगी। कल्पवास पूर्ण होने पर सत्यनारायण कथा का पाठ, ब्राह्मण भोज और सामर्थ्य अनुसार दान करना शुभ माना जाता है।
इस पवित्र समय का उद्देश्य केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास का माध्यम भी है। कल्पवास साधक को संयम, धैर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे उनका जीवन नैतिकता और धार्मिकता के मार्ग पर सुदृढ़ होता है।