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13-Nov-2021 06:11 PM
PATNA: संविधान निर्माण समिति के प्रथम अध्यक्ष और जन्मजात चक्रवर्ती डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की उपेक्षा को लेकर राज्यसभा के पूर्व सांसद और भाजपा के संस्थापक सदस्य आरके सिन्हा ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा की 150वीं जयंती के मौके पर प्रेस वार्ता करते हुए आरके सिन्हा ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि डॉ सच्चिदानन्द सिन्हा 1891 में मात्र 20 वर्ष की आयु में बैरिस्टर बन गए थे।
जब वे बैरिस्टर की पढ़ाई करके पानी के जहाज से स्वदेश लौट रहे थे तब किसी ने उनसे मजाक में यह कह दिया था कि “भारत के नक्शे में बिहार कहां है, यह बताइए।“ उस समय बिहार बंगाल प्रान्त का ही एक भाग था। डॉक्टर सिन्हा को यह बात दिल में चुभ गई। आखिर वह बिहार को नक्शे पर दिखाते तो कैसे? पटना आते ही उन्होंने बिहार को अलग करने का आंदोलन शुरू कर दिया। 20 वर्षों के अथक जन आंदोलन और कानूनी लड़ाई के बाद 1911 में बिहार को अलग राज्य का मान्यता मिल गई। यह डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा की लड़ाई का ही नतीजा था।
भाजपा के वरिष्ठ नेता आरके सिन्हा ने आगे बताया कि डॉ सिन्हा अपने समय में देश के सबसे बड़े और सफल वकील थे। लेकिन उन्होंने अपनी आमदनी का ज्यादातर हिस्सा लोक कल्याण कार्य और आजादी के आंदोलन में खर्च कर दिया । आज जहां बिहार विधान सभा भवन और बिहार विधान परिषद के भवन खड़े हैं। हाल में इन दोनों भवनों की शताब्दी समारोह भी मनाए गए। वह जमीन डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा ने सरकार को दान स्वरूप दिए थे। उस जगह पर कभी डॉक्टर सिन्हा का कृषि फार्म हुआ करता था।
वहीं आज जहां बिहार विद्यालय परीक्षा समिति है, वह विशाल भव्य भवन उनका आवास हुआ करता था और सिन्हा लाइब्रेरी उनका व्यक्तिगत वकालत दफ्तर हुआ करता था, जिसमें उनकी एक संग्रहणीय लाइब्रेरी भी थी। पूर्व सांसद आरके सिन्हा ने कहा कि ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी और दानवीर की स्मृति में पटना में कोई स्मारक तक नहीं है। यह शर्म की बात है।
आरके सिन्हा ने बिहार सरकार से कड़े शब्दों में मांग की है कि मैं बिहार के यशस्वी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी और समस्त मंत्रिमण्डल का इस घोर अन्याय की ओर ध्यान आकृष्ठ करते हुये यह पुरजोर मांग करता हूं कि बिहार विधान सभा परिसर में और उनके गृह जिले आरा में और जन्मस्थान ग्राम मुरार, डुमराव में डॅा० सिन्हा की आदमकद प्रतिमा लगाई जाये और बिहार सरकार उनके को नाम “मृत्योपरान्त भारतरत्न” के लिये अनुशंसित करे।
आरके सिन्हा ने कहा जब कोलकाता विश्वविद्यालय से अलग होकर बिहार में पहला विश्वविद्यालय “पटना विश्वविद्यालय” बना था, तब डॉक्टर सच्चिदानन्द सिन्हा ही इस प्रथम विश्वविद्यालय के कुलपति बनाये गये और 9 वर्षों तक लगातार उप-कुलपति रहे । अतः यह उचित होगा की पटना या पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, का नाम “डॉक्टर सच्चिदानन्द सिन्हा विश्वविद्यालय” किया जाये। प्रेस वार्ता में पूर्व मंत्री रणजीत सिन्हा भी मौजूद थे।