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15-Dec-2020 08:26 PM
PATNA : क्या बिहार बीजेपी के प्रभारी भूपेंद्र यादव सुपर सीएम के रोल में आ गये हैं. सत्ता के गलियारे में ये सवाल तैरने लगा है. बिहार में सरकार बनने के बाद जो फैसले 28 दिन तक रूके रहे, वे भूपेंद्र यादव के पटना पहुंचने के बाद ही लिये जाने लगे. सवाल ये उठ रहा है कि क्या भूपेंद्र य़ादव की मंजूरी के बाद ही सारे अहम फैसले लिये जा रहे हैं.
भूपेंद्र यादव के पटना पहुंचने के बाद ताबड़तोड़ फैसले
बिहार बीजेपी के प्रभारी भूपेंद्र यादव नयी सरकार के गठन के बाद वापस लौट गये थे. पार्टी ने उन्हें हैदराबाद में नगर निगम चुनाव का प्रभारी बनाया था, वे वहीं कैंप कर रहे थे. हैदराबाद चुनाव खत्म होने के बाद वे किसान आंदोलन में लगे और फिर गुजरात की यात्रा पर निकल गये. भूपेंद्र यादव गुजरात बीजेपी के भी प्रभारी हैं. भूपेंद्र यादव इन कामों में व्यस्त थे और इधर लग रहा था कि बिहार सरकार की रफ्तार पर ही ब्रेक लग गया है.
रविवार की शाम भूपेंद्र यादव वापस बिहार लौटे. उनके लौटने के साथ ही लगा कि सरकार एक्शन में आ गयी है. कैबिनेट की बैठक हुई और सरकार ने अगले पांच सालों के लिए अपना एजेंडा तय किया. बिहार में नयी विधानसभा का गठन तो हो गया था लेकिन विधानसभा की कमेटियों का गठन नहीं हो पा रहा था. भूपेंद्र यादव रविवार को पटना पहुंचे और सोमवार को विधानसभा की समितियों का भी एलान हो गया.
28 दिन से नहीं हो रही थी कैबिनेट की बैठक
बिहार में 16 नवंबर को नीतीश कुमार की नयी सरकार बनी थी. अगले दिन यानि 17 नवंबर को कैबिनेट की औपचारिक बैठक हुई जो संवैधानिक बाध्यता थी. उसके बाद से कैबिनेट की बैठक हुई ही नहीं. सत्ता से जुडे लोग हैरान थे. नीतीश कुमार के राज में ये अजूबा वाकया था जब हर सप्ताह होने वाली कैबिनेट की बैठक चार सप्ताह तक हुई ही नहीं.
भूपेंद्र यादव की हरी झंडी के कारण रूकी थी बैठक?
बीजेपी के एक नेता ने बताया कि पार्टी ने साफ कर दिया था कि नीतीश कैबिनेट की पहली बैठक में सरकार चलाने के एजेंडे को मंजूरी देनी होगी. इस एजेंडे में उन तमाम घोषणाओं को शामिल करना होगा जो बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किये थे.
बीजेपी नेता के मुताबिक उनकी शर्तों के मुताबिक नीतीश कुमार ने सरकार चलाने के लिए एजेंडा तैयार करवा लिया था. लेकिन इस पर फाइनल मुहर बीजेपी को लगानी थी. बिहार सरकार में दो डिप्टी सीएम समेत जो भी दूसरे नेता बीजेपी की नुमाइंदगी कर रहे हैं उनकी इतनी हैसियत नहीं थी कि वे इस एजेंडे को हरी झंडी देते. लिहाजा भूपेंद्र यादव के बिहार आने का इंतजार किया गया. सूत्रों के मुताबिक भूपेंद्र यादव के बिहार पहुंचने के बाद सरकार के एजेंडे को हरी झंडी दी गयी. इसके बाद ही कैबिनेट की बैठक बुलायी गयी और उसमें सुशासन के कार्यक्रमों को मंजूरी दी गयी.
भूपेंद्र यादव बिजी को नहीं हुआ मंत्रिमंडल विस्तार
दरअसल 16 नवंबर को जब नीतीश कुमार और उनकी कैबिनेट के दूसरे मंत्री शपथ ले रहे थे तभी ये तय हुआ था कि नवंबर के आखिर में कैबिनेट का विस्तार कर दिया जाये. लेकिन कैबिनेट का विस्तार बीजेपी की मंजूरी से ही होना था. भूपेंद्र यादव बिहार से बाहर व्यस्त थे लिहाजा कैबिनेट विस्तार पर बीजेपी फैसला नहीं ले पायी. नतीजा ये हुआ कि नीतीश कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पाया.
अब आलम ये है कि नीतीश कुमार के मंत्रियों के पास विभागों का अंबार है. शपथ ग्रहण में नीतीश के पांच मंत्रियों ने शपथ लिया था. लेकिन उनमें से एक मेवालाल चौधरी को इस्तीफा देना पड़ा. विजय चौधरी और अशोक चौधरी जैसे मंत्री एक साथ कई विभाग संभाल रहे हैं. वे जानते हैं कि जिन विभागों का काम वे अभी देख रहे हैं उनमें से कई को दूसरे मंत्री को देना है. लेकिन कौन सा विभाग उनके पास रहेगा ये उन्हें पता ही नहीं. लिहाजा मंत्री सिर्फ रस्म अदायगी कर रहे हैं.
कल ही हुआ विधानसभा की कमेटियों का गठन
नयी विधानसभा के गठन के बाद विधानसभा की समितियों का गठन किया जाता है. 22 समितियों के सभापति के साथ साथ विधायकों को उसका सदस्य बनाया जाता है. नयी विधानसभा के अस्तित्व में आने के बाद ही समितियों का भी गठन हो जाता है. इन समितियों के आधार पर ही विधायकों को यात्रा भत्ता मिलता है. लेकिन विधानसभा की समितियों का भी गठन तभी हुआ जब भूपेंद्र यादव पटना पहुंचे. जानकार बताते हैं कि भूपेंद्र यादव ने ही आखिरी मुहर लगायी कि किस पार्टी के हिस्से कितनी कमेटियों के सभापति का पद जाना है.
सियासी जानकार बताते हैं कि बीजेपी ने इस दफे नीतीश कुमार पर पूरी तरह प्रेशर बना कर रखा है. नीतीश इतनी बेबसी में कभी नहीं रहे. पिछले 15 सालों में सरकार उनकी मर्जी से ही चलती रही. लेकिन इस दफे बीजेपी उन्हें फ्री हैंड देने को तैयार नहीं है.
लेकिन सबसे दिलचस्प बात ये है कि बिहार में बीजेपी को ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके पास सरकार के बड़े फैसले पर सहमति देने का अधिकार हो. बीजेपी ने जिन दो नेताओं को डिप्टी सीएम बनाया है उन दोनों का कद ऐसा नहीं है कि वे नीतीश कुमार पर कोई दबाव बना सकें. लिहाजा हर बड़े फैसले में गेंद भूपेंद्र यादव के पाले में जानी है. जब तक उनकी सहमति नहीं होगी तब तक बिहार सरकार का कोई बडा फैसला शायद ही हो पाये.