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Bihar politics : अल्लावरु कांग्रेस की डुबो रहे लुटिया ! बिहार में अपनों से ही कर रहे दगाबाजी,जानिए विधानसभा चुनाव को लेकर अंदरखाने क्या चल रही चर्चा

राहुल गांधी के करीबी नेताओं ने बिहार में पार्टी को दोबारा मजबूत करने के बजाय अपने निजी स्वार्थ को प्राथमिकता दी, जिससे महागठबंधन में तालमेल और सीट शेयरिंग दोनों प्रभावित हुए हैं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Tue, 21 Oct 2025 08:43:34 AM IST

Bihar politics :  अल्लावरु कांग्रेस की डुबो रहे लुटिया ! बिहार में अपनों से ही कर रहे दगाबाजी,जानिए  विधानसभा चुनाव को लेकर अंदरखाने क्या चल रही चर्चा

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Bihar politics : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने 60 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, लेकिन टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी में जबरदस्त घमासान मचा हुआ है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने खुलकर बगावत का झंडा उठा लिया है और पार्टी के प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु पर टिकट बेचने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। यही नहीं, कई दिग्गज नेताओं ने यह भी कहा कि राहुल गांधी के करीबी नेताओं ने बिहार कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का काम किया है।


राहुल गांधी ने बिहार में पार्टी को दोबारा खड़ा करने के लिए कृष्णा अल्लावरु को प्रदेश प्रभारी बनाया था। शाहनवाज आलम और देवेंद्र यादव को सह-प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन अब यही ‘टीम राहुल’ सियासी कठघरे में खड़ी नजर आ रही है।


कांग्रेस के कई मौजूदा विधायक और पूर्व मंत्री टिकट वितरण से नाराज हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि टिकटों का बंटवारा विचारधारा और संगठन की मजबूती के बजाय पैसे और सिफारिश के आधार पर हुआ है। तीन बार के विधायक मोहम्मद आफाक आलम ने तो साफ कहा कि “कांग्रेस में आज विचारधारा नहीं, पैसा बोल रहा है। जो पैसा दे रहा है, वही टिकट पा रहा है।” उनका टिकट काट दिया गया, जबकि वे लगातार तीन बार से जीतते आ रहे थे। 


पूर्व मंत्री छत्रपति यादव, कांग्रेस प्रवक्ता आनंद माधव, पूर्व विधायक गजानंद शाही, सुधीर कुमार ‘बंटी चौधरी’, बांका जिला अध्यक्ष कंचना सिंह, सारण जिला अध्यक्ष बच्चू कुमार वीरू, पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष राजकुमार राजन और नागेंद्र पासवान समेत एक दर्जन से ज्यादा नेताओं ने टिकट बंटवारे में पक्षपात और धनबल के इस्तेमाल की शिकायत की है।


आनंद माधव ने कहा कि प्रभारी और अध्यक्ष ने राहुल गांधी के निर्देशों की अवहेलना की और निजी स्वार्थ में टिकट बांटे। उनका कहना है कि उम्मीदवारों की सूची बनाते समय न तो संगठन की राय ली गई, न ही क्षेत्रीय संतुलन का ध्यान रखा गया। उन्होंने कहा कि कई ऐसे नेताओं को टिकट दिया गया जो पिछले पांच सालों से पार्टी के किसी कार्यक्रम में नजर तक नहीं आए। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इस बार पार्टी 10 सीट भी नहीं जीत पाएगी।


कांग्रेस सांसद तारिक अनवर ने भी टिकट वितरण पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि बरबीघा सीट से गजेंद्र शाही उर्फ मुन्ना शाही का टिकट काटा गया, जबकि वे पिछले चुनाव में मात्र 113 वोट से हारे थे। तारिक अनवर ने कहा कि ऐसे नेता को टिकट न देना कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने जैसा है।


दरअसल, राहुल गांधी के जिन रणनीतिकारों को बिहार की जिम्मेदारी दी गई है, उनमें से ज्यादातर नेताओं का चुनावी अनुभव शून्य है। कृष्णा अल्लावरु, शाहनवाज आलम और देवेंद्र यादव ने कभी विधानसभा या लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा। यही कारण है कि बिहार में कांग्रेस की रणनीति लगातार असफल साबित हो रही है। न तो ये नेता आरजेडी के साथ सीट शेयरिंग को सही दिशा दे पाए, न ही पार्टी में टिकट बंटवारे को पारदर्शी बना सके।


बिहार की कई सीटों पर अब महागठबंधन के सहयोगी दल आपस में भिड़े नजर आ रहे हैं। लालगंज, वैशाली, राजापाकर, बछवाड़ा, रोसड़ा, बिहार शरीफ, गौड़ाबौराम और कहलगांव जैसी सीटों पर कांग्रेस और आरजेडी दोनों के उम्मीदवार आमने-सामने हैं। यह स्थिति महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़ा कर रही है।


कांग्रेस के पारंपरिक गढ़ रहे कई सीटें अब उसके हाथ से निकल चुकी हैं। उदाहरण के तौर पर प्राणपुर सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तौकीर आलम चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्हें बरारी भेज दिया गया, जबकि आरजेडी ने प्राणपुर पर अपना उम्मीदवार उतार दिया। इसी तरह जाले सीट, जहां कांग्रेस हमेशा मुस्लिम प्रत्याशी को उतारती थी, इस बार ‘पैराशूट कैंडिडेट’ को टिकट दिया गया। पहले नौशाद को उम्मीदवार घोषित किया गया, फिर अचानक उनका टिकट काटकर ऋषि मिश्रा को प्रत्याशी बना दिया गया।


सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी के सिपहसालारों का लक्ष्य बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने से ज्यादा आरजेडी को कमजोर करना था। उन्हें लगता था कि बिहार में आरजेडी उसी वोट बैंक पर खड़ी है, जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था। इसी वजह से कांग्रेस तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा बनाने के लिए तैयार नहीं हुई। अब यही रणनीति पार्टी के गले की हड्डी बन गई है।


बिहार कांग्रेस इस समय दोहरी मार झेल रही है—एक तरफ महागठबंधन में समन्वय की कमी और दूसरी तरफ अपनी ही पार्टी में बगावत। टिकट बंटवारे की अव्यवस्था और अंदरूनी कलह ने कांग्रेस के लिए चुनावी लड़ाई को और कठिन बना दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि राहुल गांधी के “सिपहसालार” बिहार में पार्टी को खड़ा करेंगे या उसे और कमजोर कर देंगे।